यही तालिबानी वे कबाइली थे जिन्होंने अक्टूबर 1947 में कश्मीर को, वहाँ की संपत्ति को, हिंदू और सिखों की महिलाओं और बच्चियों की इज्जत को लूटा था:-लेखक - अतुल मालवीय
इन्हीं कबाइलियों के छद्मरूप में पाकिस्तानी सेना ने कश्मीर के उस हिस्से पर कब्जा कर लिया था जिसे हम "POK" कहते हैं
पाकिस्तान और अफगानिस्तान के बीच खैबर पख्तूनवा का वह बॉर्डर जिसे हम इतिहास में "खैबर दर्रे" के नाम से जानते हैं और जो आज तालिबानी ताकतों का केंद्र बना हुआ है, के निवासी हैं 90 साल के "मुहम्मद हसन कुरैशी"| वे बूढ़े जरूर हैं लेकिन उनकी याददाश्त सलामत है| उन्हें लगता है जैसे कल की ही घटना हो जब आज से 74 वर्ष पहले अक्टूबर 1947 में पूरे एरिया में सुगबुगाहट थी कि कश्मीरी सिखों का "मुज़फ्फराबाद" पर हमला होने वाला है| ध्यान रहे महाराजा रणजीत सिंह के समय में महान सेनापति "हरिसिंह नलवा" ने पूरे कश्मीर को "खालसा साम्राज्य" का हिस्सा बना दिया था| लेकिन कुछ ही दिनों बाद सुनने में आया कि कबाइली हमला करने वाले हैं| जम्मू कश्मीर के तत्कालीन महाराजा हरिसिंह की ढुलमुल नीति के कारण अनिश्चितता की स्थिति बनी हुई थी|
मुहम्मद हसन कुरैशी बताते हैं कि 21 अक्टूबर 1947 की शाम उन्होंने और उनके अनेक दोस्तों ने पहाड़ी के ऊपर से देखा कि अफगानिस्तान स्थित पश्चिमी घाटी की तरफ से सैकड़ों खुले ट्रकों पर चढ़कर कबाइली पठान बतरासी पहाड़ी से पास के ही कस्बे "गढ़ी हबीबुल्लाह" की तरफ बढ़ रहे हैं| हम गाँव वाले चिंता के मारे पूरी रात सो नहीं पाए| सुबह होते होते तो ये कबाइली जिनकी संख्या दो हज़ार से कम न थी, हाथों में पुरानी स्टाइल की लंबी बंदूकें (मस्कट), गंडासे, तलवारें, कुल्हाड़ियाँ और भाले लिए हुए गाँव में आंधी तूफ़ान की तरह घुसने लगे| गढ़ी हबीबुल्लाह से महाराजा के सैनिक पलायन कर चुके थे, कबाइलियों ने आसानी से इस पर कब्जा कर लिया|
उसी दिन बिना देर किये कबाइली अब निकट ही स्थित प्रमुख शहर "मुज़फ्फराबाद" की ओर बढ़े, जहाँ हिंदुओं और सिखों की अच्छी खासी आबादी थी| हमने उन्हें पहाड़ी की ओर से जाने वाला शॉर्टकट बता दिया| महाराजा हरिसिंह के अधिकांश सैनिक तो भाग गए थे, लेकिन उनमें से लगभग पांच सौ मुस्लिम सैनिकों कबाइलियों के साथ हो लिए| कश्मीर घाटी में खैबर और अन्य इलाकों से कबाइलियों का आना जारी था और 22 अक्टूबर को इनकी संख्या बीस हज़ार हो गयी| शाम होते होते मुज़फ्फराबाद का पतन हो गया| विभिन्न फ्रंटियर कबीले - वज़ीर, महसूद, तुरी, युसूफजई के नेतृत्व में आसान लेकिन ज्यादा दूरी वाले लोहार गली की तरफ से दूसरे दिन सुबह पहुंचे|
हज़ारों कबाइलियों ने मुज़फ्फराबाद को लूटना शुरू कर दिया, वे दुकानों को लूटते जाते थे, कीमती सामानों को ट्रकों में रख लेते और फिर दुकानों, बाज़ारों में आग लगा देते| जो भी अरबी में "कलमा" नहीं पढ़ पाता वे उसका क़त्ल कर देते| हिंदू और सिख औरतों, बच्चियों को वे घसीटते हुए ले जाते और बांधकर नीचे से बोरियों की तरह फेंककर ट्रकों में डाल देते| कबाइली सरदार हर औरत या बच्ची की बरादमगी पर चिल्लाते हुए प्रसन्नता व्यक्त करते और आपस में बंटवारा करने लगते| सैकड़ों महिलाओं ने अपनी इज्ज़त बचाने के लिए नदी में कूदकर जान देना पसंद किया| मुज़फ्फराबाद की सड़कें, गलियाँ लाशों से, जले हुए सामान, दुकानों और मकानों के मलबों से पटी पड़ी थीं, नदी में जहाँ देखो वहाँ लाशें ही तैरती नज़र आती थीं|
तीन दिनों तक मुज़फ्फराबाद लूटने के बाद अब कबाइलियों का अगला निशाना पूर्व दिशा में 170 किलोमीटर दूर "श्रीनगर" था| अफगानिस्तान, पाकिस्तान के कबाइली ही नहीं बल्कि अब उनके वेश में पाकिस्तानी सेना भी इस अभियान में शामिल हो चुकी थी| अब पचास हज़ार से भी अधिक हो चुके ये लुटेरे तीन तरफ से "जम्मू कश्मीर" की राजधानी और सबसे महत्वपूर्ण शहर "श्रीनगर" को घेरने और लूटने के नापाक इरादे से "झेलम नदी" पार कर आगे बढ़े| रास्ते में "उरी", "कुपवाड़ा" और "बारामूला" पर कबाइलियों ने कब्जा कर लिया| यहाँ भी लूटपाट और वहशीपन का वही मंज़र दोहराया गया|
रास्ते में हिंदू, सिख या तो डर के मारे भागने पर मजबूर हुए या क़त्ल कर दिए गए| मुस्लिम महिलायें इन कबाइलियों की मदद करने के इरादे से इनके लिए खाना पकाकर लातीं लेकिन ये उन पर भी यकीन नहीं करते, इन्हें संदेह होता कि कहीं खाने में ज़हर न मिला हो| इसके विपरीत ये उनकी भेड़ बकरियों, मुर्गे मुर्गियों को लूटकर उन्हें जंगल में आग पर पकाकर खाना पसंद करते| अब ये श्रीनगर की बाहरी सीमा पर पहुँच चुके थे| जंगलों में इन्होंने श्रीनगर पर कब्जा करने, उसके बाजारों से कीमती सामान लूटने और हिंदू तथा सिख महिलाओं को अपना गुलाम बनाने की कल्पना करके ही जश्न मनाना शुरू कर दिया|
ऐसा ही भयावह नज़ारा था मीरपुर में जहाँ कबाइलियों ने 400 हिंदुओं और सिख औरतों का अपहरण कर लिया और बाद में इन्हें रावलपिंडी के वेश्या बाजार में बेच दिया गया।
इन कबाइलियों और उनके छद्मरूप में पाकिस्तानी सैनिकों को इस बात की भनक भी नहीं थी कि जम्मू भाग चुके महाराजा हरिसिंह ने 26 अक्टूबर को "जम्मू कश्मीर" के भारत में विलय के समझौते पर हस्ताक्षर कर दिए थे और सरदार पटेल ने कमान स्वयं अपने हाथ में लेते हुए "डकोटा" विमानों से क्षतिग्रस्त हो चुके श्रीनगर हवाईअड्डे पर असंभव दिखने वाले मिशन के तहत भारतीय फ़ौज को कश्मीर बचाने के लिए भेज दिया| एक एक विमान ने मात्र एक दिन में अनेक बार श्रीनगर हवाईअड्डे पर लैंडिंग की| कुल 45 डकोटा विमानों को इस कार्य में लगाया गया| भारतीय सैनिक सिर्फ चाय पीकर ही बिना समय गँवाए कबाइलियों पर टूट पड़े| अगले दिन सड़क मार्ग से भी भारतीय थलसेना के रणबांकुरे श्रीनगर पहुँच गए|
श्रीनगर की बाहरी सीमा पर स्थित जंगल में आग जलाकर बकरे और भेड़ें भून रहे कबाइलियों पर एक जगह तो भारतीय वायुसेना ने ऐसी बमबारी की कि सैकड़ों लोगों के चीथड़े उड़ गए और जंगल में कई किलोमीटर तक उनकी लाशों के टुकड़े चारों तरफ छितरा गए| कबाइली भारतीय सेना का अधिक समय तक सामना न कर सके और पीठ दिखाकर भागने को मजबूर हुए| नवंबर 1947 तक कबाइली और पाकिस्तानी सेना "बारामूला, कुपवाड़ा और उरी" खाली कर पीछे हट गए|
पाकिस्तानी रिटायर्ड मेजर आगा हुमायूं अमीन ने अपनी पुस्तक "The 1947-48 Kashmir War: The War of Lost Opportunities" में स्पष्ट लिखा है कि इस कबाइली अटैक के आर्किटेक्ट थे "पाकिस्तानी मेजर जनरल अकबर खान" जिन्होंने साबित कर दिखाया कि किस तरह से हमेशा हिंसा और मारकाट में लगे रहने वाले कबाइलियों का युद्ध में पाकिस्तान की तरफ से बेहतर उपयोग किया जा सकता है| इसके बाद 1965 में पाकिस्तानी तानाशाह जनरल अयूब खान ने और बाद में जनरल परवेज़ मुशर्रफ ने कारगिल युद्ध के माध्यम से बार बार कश्मीर पर कब्जा करने का प्रयास किया लेकिन भारतीय सेना के पराक्रम के सामने उन्हें मुँह की खानी पड़ी|
इस बात के स्पष्ट प्रमाण हैं कि ये कबाइली जिन्हें भारत जीते या पाकिस्तान, इस बात से कोई लेना देना नहीं थी, खैबर पार कर अपने वतन अफगानिस्तान लौटे और बड़े शान से अपने अपने कबीलों में लूटी हुई दौलत के साथ साथ सिख और हिंदुओं की महिलाओं, बच्चियों का भी प्रदर्शन करते थे| जिसके पास जितनी औरतें, उसका रुतबा उतना ही बढ़ जाता| क्या ये सुनकर आपका खून नहीं खौल जायेगा कि इन कबाइलियों ने न सिर्फ इन औरतों के साथ अमानवीय व्यवहार और बलात्कार किये बल्कि जब उनका इनसे जी भर जाता तो ये भरे बाज़ार सरेराम उनकी नीलामी भी कर देते|वही हिंसक हमलावर कबाइली आज के तालिबान हैं|
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