धरती के अंग-अंग
---:भारतका एक ब्राह्मण.
संजय कुमार मिश्र"अणु"
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धरती के अंग-अंग-
से बिखेर रहा है रंग।
हस रही प्रकृति देखो-
देखकर के रास-रंग।।
टपक रहा है रस सरस,
खुब नाच रहा है अनंग।
ये कोयल है कुक रही-
सुस्वर सुन है लोग दंग।।
अटपट सब बोल रहा,
भुलकर के बात ढंग।
भेद भाव भुल स्वभाव-
कर रहा है खुब तंग।।
भाव भरे दृष्टि देख-
उठ रहा है नव तरंग।
राह के वो चाह देख
भर रहा है खुब उमंग।।
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