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धरती के अंग-अंग

धरती के अंग-अंग


       ---:भारतका एक ब्राह्मण.
          संजय कुमार मिश्र"अणु"
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धरती के अंग-अंग-
से बिखेर रहा है रंग।
हस रही प्रकृति देखो-
देखकर के रास-रंग।।
         टपक रहा है रस सरस,
         खुब नाच रहा है अनंग।
         ये कोयल है कुक रही-
         सुस्वर सुन है लोग दंग।।
अटपट सब बोल रहा,
भुलकर के बात ढंग।
भेद भाव भुल स्वभाव-
कर रहा है खुब तंग।।
         भाव भरे दृष्टि देख-
         उठ रहा है नव तरंग।
         राह के वो चाह देख
         भर रहा है खुब उमंग।।
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वलिदाद,अरवल(बिहार)८०४४०२.
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