बिहार के हर नगरीय बस्ती और प्रत्येक ग्रामीण मंडल तक पहुंचेगा संघ
पटना, 16 मार्च। राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की अखिल भारतीय प्रतिनिधि सभा की बैठक 11-13 मार्च को कर्णावती (गुजरात) में संपन्न हुई। संघ की यह सर्वोच्च सभा है, जिसमें नीतिगत निर्णय लिये जाते हैं। तीन दिवसीय बैठक में यह निश्चित किया गया कि संघ आजादी का अमृत महोत्सव व्यापक पैमाने पर मनायेगा। राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ वर्ष 2025 में अपनी स्थापना के 100 वर्ष पूरा करने जा रहा है। इस निमित्त बिहार के लिए भी दीर्घकालीन योजनाएं बनी हैं।पटना के विश्व संवाद केन्द्र के सभागार में आयोजित पत्रकार वार्ता को संबोधित करते हुए राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के दक्षिण बिहार प्रांत संघचालक राजकुमार सिन्हा ने बताया कि राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की भारतवर्ष में 38,390 स्थानों पर 60,929 शाखाएं लगती हैं। इसके अलावा 20,681 साप्ताहिक मिलन और 7,923 स्थानों पर संघ मंडली लगती है। इस प्रकार देखा जाये तो देशभर में 50 प्रतिशत मंडलों तक संघ कार्य पहुंचा है। बैठक में आगामी दो वर्षों में सभी मंडलों में कार्य पहुंचाने का लक्ष्य निर्धारित कर तदनुरूप योजना बनी। इसी प्रकार शहरी क्षेत्रों में 45 प्रतिशत व्यक्तियों तक संघ कार्य है। दो वर्षों में शत-प्रतिशत बस्तियों, काॅलोनी/मुहल्ला तक संघ कार्य ले जाने का लक्ष्य एवं योजना निश्चित की गई है। दक्षिण बिहार में 438 स्थानों पर 700 शाखाएं लगती हैं। इसके अलावा 226 साप्ताहिक मिलन और 46 स्थानों पर संघ मंडली लगती है। उत्तर बिहार में 760 स्थानों पर 1,033 शाखाएं लगती हैं। इसके अलावा 413 स्थानों पर साप्ताहिक मिलन और 113 स्थानों पर संघ मंडली लगती है। इस प्रकार बिहार में 1198 स्थानों पर 1733 शाखाएं लगती हैं। इसके अलावा 639 स्थान पर साप्ताहिक मिलन और 159 स्थान पर संघ मंडली लगती है। 2025 में संघ के स्थापना के 100 वर्ष पूरे होने जा रहे हैं। प्रतिनिधि सभा की बैठक में यह निश्चित किया गया कि संघ स्थापना के शताब्दी वर्ष तक शहरी क्षेत्र की 10 हजार आबादी पर (बस्ती) तथा ग्रामीण क्षेत्र के प्रत्येक मंडल (8 से 10 गांवों का संच) में संघ कार्य प्रारंभ की जायेगी। बिहार में सेवा कार्य को भी एक नई दिशा दी जायेगी। अभी बिहार में 651 सेवा बस्तियां हैं। इसमें 186 बस्तियों में सेवा कार्य चल रहे हैं। शताब्दी वर्ष में सभी सेवा बस्तियों में सेवा प्रकल्प प्रारंभ करने की योजना बनायी जा रही है।कर्णावती की बैठक में राष्ट्रीय महत्व का एक प्रस्ताव भी पारित हुआ। यह प्रस्ताव भारत को स्वावलंबी बनाने हेतु कार्यों के अवसर बढ़ाने से संबंधित था। प्रतिनिधि सभा का मानना था कि प्राकृतिक संसाधनों की प्रचुरता, मानव शक्ति की विपुलता और अंतर्निहित उद्यम कौशल के चलते भारत विभिन्न क्षेत्रों में कार्य के पर्याप्त अवसर उत्पन्न कर अर्थव्यवस्था को उच्च स्तर पर ले जाने की क्षमता रखता है। रोजगार की इस चुनौती का सफलतापूर्वक सामना करने हेतु समूचे समाज को ऐसे अवसरों का लाभ उठाने में अपनी सक्रिय भूमिका निभानी होगी। प्रतिनिधि सभा में नागरिकों से रोजगार सृजन के भारत केन्द्रित प्रतिमान (माॅडल) पर काम करने का आह्वान भी किया। साथ ही विविध प्रकार के कार्य के अवसरों को बढ़ाते हुए शाश्वत मूल्यों पर आधारित एक स्वस्थ कार्य संस्कृति को प्रस्थापित करने का भी आह्वान किया। इससे भारत वैश्विक-आर्थिक परिदृश्य पर पुनः अपना उचित स्थान अंकित कर सकेगा।
कर्णावती में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सरकार्यवाह दत्तात्रेय होसबाले जी ने कहा कि संघ भारत बोध के विमर्श को आगे बढ़ाने के लिए विशेष प्रयास करेगा। भारत के हिन्दू समाज संस्कृति, इतिहास तथा यहां की जीवन पद्धति के बारे में एक सही चित्र को समाज के सम्मुख रखा जाना चाहिए। भारत के बारे में अज्ञानता या जान-बूझकर भ्रांति फैलाने का षड्यंत्र लंबे समय से किया जा रहा है। इस वैचारिक विमर्श को बदलकर तथ्यों पर आधारित भारत बोध के सही विमर्श को आगे बढ़ाना है।भारत स्वाधीनता का अमृत महोत्सव मना रहा है। स्वतंत्रता आंदोलन सार्वदेशिक और सर्वसमावेशी था। लेकिन, कई तथ्य सामने नहीं आये। भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन की सबसे बड़ी विशेषता थी कि यह केवल राजनैतिक नहीं अपितु राष्ट्र जीवन के सभी आयामों तथा सभी वर्गों के सहयोग से हुआ। सामाजिक-सांस्कृतिक आंदोलन था। इस उपनिवेशवादी आक्रमण का व्यापारिक हितों के साथ भारत को राजनैतिक, साम्राज्यवादी और धार्मिक रूप से गुलाम बनाने का एक निश्चित उद्देश्य था। बिहार में स्व के अधिकार के लिए अनेक सपूतों ने अपना बलिदान दिया। गोपालगंज के फतेह बहादुर शाही हों या फिर भागलपुर के तिलका मांझी, अंग्रेजों के आगमन का सबने पुरजोर विरोध किया। आजादी के प्रथम स्वतंत्रता आंदोलन में कुंवर सिंह के नेतृत्व में लड़े गये संघर्ष के कारण बिहार के लोगों ने स्वतंत्रता पायी। अंग्रेजों ने धृष्टतापूर्वक निशान सिंह को तोप के मुंह से बांधकर उड़ा दिया। वहीं हरकिशुन सिंह को फांसी दी गई। इस आंदोलन के सेनानी जिधर निकलते थे, वहां की जनता उनका खुलेमन से स्वागत करती थी। अंग्रेजों के विरूद्ध संघर्ष में सन्यासी लड़ाई लड़ रहे थे। वहीं नोनिया समाज भी इस संघर्ष में अपनी आहुति डाल रहा था। बिहार में संघ ऐसे गुमनाम योद्धाओं के बारे में लोगों को जागरूक करेगा।कोरोना के कारण विद्यार्थिंयों की पढ़ाई प्रभावित हुई तो लोगों का रोजगार भी प्रभावित हुआ। संघ के स्वयंसेवक पढ़ाई और स्वाबलंबन के लिए लगतार कार्य कर रहे हैं। इस वर्ष संघ समाज की कर्मण्यता बढ़ाने के लिए विशेष प्रयास करेगा। पत्रकार वार्ता में रा.स्व.संघ के क्षेत्र प्रचार-प्रमुख (बिहार-झारखंड) राजेश पाण्डेय भी उपस्थित थे।
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