पत्रकारिता जगत का स्तम्भ गणेशशंकर विद्यार्थी
सत्येन्द्र कुमार पाठक
गणेश शंकर विद्यार्थ भारतीय पत्रकार, भारतीय राष्ट्रीय सम्मेलन के नेता और स्वतंत्रता आंदोलन के कार्यकर्ता थे। वह असहयोग आंदोलन और भारत के स्वतंत्रता आंदोलन में एक महत्वपूर्ण व्यक्ति थे, जिन्होंने कभी विक्टॉर ह्यूगो के उपन्यास नाइंटी-थ्री का अनुवाद किया और ज्यादातर हिंदी भाषा के समाचार पत्र, प्रताप के संस्थापक-संपादक के रूप में जाने जाते हैं। गणेशशंकर 'विद्यार्थी' का जन्म आश्विन शुक्ल चतुर्दशी तिथि , रविवार विक्रम संवत 1947 ( 26 अक्टूबर 1890 ई.) को उत्तरप्रदेश के फतेहपुर जिले के हथगांव निवासी एवं मुंगावली एंग्लो वर्नाक्यूलर स्कूल के हेडमास्टर मुंशी जयनारायण की पत्नी गोमती देवी पुत्र थे । विद्यार्थी जी की 1905 ई. में भेलसा से अंग्रेजी मिडिल परीक्षा पास करने के बाद 1907 ई. में प्राइवेट परीक्षार्थी के रूप में कानपुर से एंट्रेंस परीक्षा पास करके आगे की पढ़ाई के लिए इलाहाबाद के कायस्थ पाठशाला कालेज में भर्ती हुए। अध्ययन में पत्रकारिता की ओर झुकाव हुआ और भारत में अंग्रेज़ी राज के यशस्वी लेखक पंडित सुन्दर लाल के हिंदी साप्ताहिक कर्मयोगी के संपादन में सहयोग देने लगे। कालेज में पढ़ने के बाद 1908 ई. में कानपुर के करेंसी आफिस में 30 रु. मासिक की नौकरी की। परंतु अंग्रेज अफसर से झगड़ा हो जाने के कारण उसे छोड़कर पृथ्वीनाथ हाई स्कूल, कानपुर में 1910 ई. तक अध्यापकी की। विद्यार्थी जी अध्यापन अवधि में सरस्वती, कर्मयोगी, स्वराज्य (उर्दू) तथा हितवार्ता (कलकत्ता) में लेख लिखने लगे थे । 1911 में विद्यार्थी जी सरस्वती में पं॰ महावीरप्रसाद द्विवेदी के सहायक के रूप में नियुक्त हुए। "अभ्युदय" में सहायक संपादक सितंबर, 1913 तक रहे। 9 नवम्बर 1913 को कानपुर से स्वयं अपना हिंदी साप्ताहिक प्रताप के प्रकाशन के समय से 'विद्यार्थी' जी का राजनीतिक, सामाजिक और प्रौढ़ साहित्यिक जीवन प्रारंभ हुआ। लोकमान्य तिलक को अपना राजनीतिक गुरु माना, किंतु राजनीति में गांधी जी के अवतरण के बाद आप उनके अनन्य भक्त हो गए। श्रीमती एनीं बेसेंट के 'होमरूल' आंदोलन में विद्यार्थी जी ने काम किया और कानपुर के मजदूर वर्ग के एक छात्र नेता हो गए। कांग्रेस के विभिन्न आंदोलनों में भाग लेने तथा अधिकारियों के अत्याचारों के विरुद्ध निर्भीक होकर "प्रताप" में लेख लिखने के संबंध में ये 5 बार जेल गए और "प्रताप" से कई बार जमानत माँगी गई। वे उत्तर प्रदेश के चोटी के कांग्रेस नेता हो गए। 1925 ई. में कांग्रेस के कानपुर अधिवेशन की स्वागत-समिति के प्रधानमंत्री हुए तथा 1930 ई. में प्रांतीय कांग्रेस कमेटी के अध्यक्ष हुए। सन् 1930 ई. के सत्याग्रह आंदोलन के अपने प्रदेश के सर्वप्रथम "डिक्टेटर" नियुक्त हुए। साप्ताहिक "प्रताप" के प्रकाशन के 7 वर्ष बाद 1920 ई. में विद्यार्थी जी ने प्रताप को दैनिक कर दिया और "प्रभा" नाम की एक साहित्यिक तथा राजनीतिक मासिक पत्रिका प्रेस से प्रारम्भ की थी । "प्रताप" किसानों और मजदूरों का हिमायती पत्र रहा है । "चिट्ठी पत्री" स्तंभ "प्रताप" की विशेषता थी। विद्यार्थी ने कितने ही नवयुवकों को पत्रकार, लेखक और कवि बनने की प्रेरणा तथा ट्रेनिंग दी। ये "प्रताप" में सुरुचि और भाषा की सरलता पर विशेष ध्यान देते थे । विद्यार्थी जी ने जेल जीवन में इन्होंने विक्टर ह्यूगो के दो उपन्यासों, "ला मिजरेबिल्स" तथा "नाइंटी थ्री" का अनुवाद किया। हिंदी साहित्य सम्मलेन के 19 वें (गोरखपुर) अधिवेशन के ये सभापति चुने गए। विद्यार्थी जी बड़े सुधारवादी किंतु साथ ही धर्मपरायण और ईश्वरभक्त थे। कानपुर के सांप्रदायिक दंगे में 25 मार्च 1931 ई. को विद्यार्थी जी की हत्या कर दी गई । विद्यार्थी जी की कलम से उपजी पत्रकारिता राष्ट्रीय चेतना का माध्यम जीवंत है ।
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