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कहां गए वो दिन

कहां गए वो दिन

कहां गए वो दिन प्यार भरे, कहां गई सुहानी रातें। 
कहां गए वो अपने सारे, कहां गई वो मीठी बातें। 
कहां गए वो दिन,कहां गए वो दिन।

आधुनिकता के चक्कर में, धन के पीछे भाग रहे। 
मनमर्जी के घोड़े दौड़ाए, रातदिन जन जाग रहे। 
भागमभाग भरे जीवन में, अब ना होती मुलाकाते। 
राग द्वेष लालच ने घेरा, वादें प्रलोभन की है बातें। 
कहां गए वो दिन,कहां गए वो दिन

पेड़ लगा चित्र खींचे, अखबारों में खबर दान की।
स्वाभिमान गायब हो गया, भूख बढ़ी सम्मान की। 
विनयशीलता रहा ढूंढता, टूट रहे अब रिश्ते नाते। 
अपनापन अनमोल खोया, प्रीत भरी मीठी बातें।
कहां गए वो दिन, कहां गए वो दिन।

कलयुग सारा कलपुर्जों का, दर्द किस बात का। 
अब तो बस आदर होता है, लूट खसोट घात का। 
दुर्गुणों ने डाला डेरा, संस्कारों का हनन हो गया। 
घृणा द्वेष ईर्ष्या फैली, मानवता का पतन हो गया। 
स्वार्थ के वशीभूत हो गए, घर परिवार रिश्ते नाते। 
भाईचारा सद्भावों की तो, अब रह गई थोथी बातें।
कहां गए वो दिन, कहां गए वो दिन।
रमाकांत सोनी सुदर्शन
नवलगढ़ जिला झुंझुनू राजस्थान
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