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वेदनाओं के भंवर में

वेदनाओं के भंवर में

कब तलक उलझे रहेंगे
भूली बिसरी यादों संग
क्या यूं ही जलते रहेंगे?

जीवन क्या मृत्यु क्या
बैठकर इस पर विचारें
जो दिया ईश्वर ने हमको
आभार कह उसको पुकारें।

ज़िन्दगी एक सफर है
साथ चलते राही अनेकों
सबकी मन्जिल जुदा जुदा
मुकाम आया बिछड़े अनेकों।

हैं सफर के अनुभव अपार
खुशी गम अवसाद प्यार
सीखते हैं हम सफर में
जो अच्छा लगा उसका आभार।

यह सफर की परिणीति है
फूल बगिया में महकते
सुख दुःख खुशी और क्रंदन
बच्चों से ही घर चहकते।

जी रहे बुढ़ापे में बचपन
याद आता सारा लड़कपन
आभार उस सहयात्री का
जिसने सजाया सारा जीवन।

कब हुए थे इतने व्यथित
कब सफर में थे थकित
निराशा भाव से मिला क्या
सोच कर कहना पथिक।

जब जब फंसी कश्ती डगर में
हौसलों की पतवार संग थी
निकाल लाये तूफां से कश्ती
जब कभी वह बीच भंवर थी।

हैं बहुत सी मधुर यादें
उनको ही सम्बल बना लो
तन्हाइयों को कर दो जुदा
स्वप्न में उनसे विदा लो।

है बहुत मुश्किल लगेगा
धार के विपरीत चलना
जो मिला उसमें बहुत कुछ
जो बचा सब मृगतृष्णा।

डॉ अ कीर्ति वर्द्धन 
53 महालक्ष्मी एनक्लेव 
मुज़फ़्फ़रनगर 
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