शेरवा पर सोहे माई तोहरी सुरतिया भोजपुरी देवी गीतों में माँ की उपासना
(हिफी डेस्क-हिन्दुस्तान समाचार फीचर सेवा)
शक्ति की प्रतीक माँ विन्ध्यवासिनी दुर्गा देवी जी को उनके उपासक सहज भोजपुरी गीतों को गाकर भी प्रसन्न करते रहे हैं। माँ जगदम्बा के आदिशक्ति होने के कारण उनका आदिमानव, आदिवासी समाज, गिरिजन, हरिजन एवं कम पढ़ी-लिखी जनता जनार्दन का भी सीधा वास्ता रहा है। वह माँ जगदम्बा जो स्वयं वाणीरूपा है, वही वाणी, बुद्धि, विद्या प्रदायिनी भी है। वह माँ अपने हर बच्चे के हर बोली वाणी को बखूबी समझती है और उनकी सहज भावना से सुगमता से रीझकर प्रसन्न हो जाती है। पूर्वांचल के विन्ध्याचल मण्डल स्थित मिर्जापुर जनपद के विन्ध्याचल पहाड़ पर जगदम्बा रानी का पौराणिक काल के पूर्व से वास है। माँ जगदम्बा विन्ध्याचल में विन्ध्यपर्वत पर आदिकाल से निवास करती हैं। माँ प्रकृति के सिंहरूपी विन्ध्यपर्वत के मस्तक पर विराजमान हैं, सिंहवाहिनी हैं इसी कारण उनमें दुर्गा का समाहित रूप भी उनके उपासक दर्शन करते हैं। सिंह अहंकार का प्रतीक हैं अहंकार का मर्दन कर उसके मस्तक पर बसा बनाकर जगत का नियंत्रण करने के कारण ही मां का लोक कल्याणकारी रूप जग विख्यात है। मैं अहंकार रूपी सिंह पर सवार होकर मानव जीवन में सुख समृद्धि एवं वैभव का मार्ग प्रशस्त करती है। माँ विन्ध्यवासिनी को इसी कारण वैभव प्रदायिनी भी कहा जाता है। वैसे तो माँ विन्ध्याचल में अपने तीनों रूपों में स्थित है जिसमें दुर्गारूप विन्ध्यवासिनी माँ भी हैं जो अपने श्रद्धालु भक्तों को जीवन में वैभव प्रदान करती हैं। विन्ध्याचल के कालखोह में महाकाली रूप में विद्यमान हैं जो महाकाली भक्तांे को भयमुक्त करती हैं। विन्ध्याचल के अष्टभुजा पर्वत पर माँ अष्टभुजा विद्यारूप में भक्तों को दर्शन प्रदान करती हैं। विद्या की कृपा मात्र से जीवन में मानव आमूल-चूल परिवर्तित करता है। माँ विद्या की यात्रा कृपा से मानवजीवन में मानव होने के गौरव के साथ खुशहाली का मार्ग प्रशस्त हो जाता है। माँ अष्टभुजा सहित तीनों देवियों के त्रिकोण की परिक्रमा ‘यात्रा’ द्वारा दर्शन करके दीव भक्त त्रिकोणात्मक उपलब्धियां भी हासिल कर लेते हैं क्योंकि जिस भक्त के जीवन में वैभव, भयमुक्त एवं ज्ञानमय प्रकाशयुक्त जीवन है वह जीवन वास्तव में परिपूर्णता एवं सफलता का द्योतक बनता है।
माँ विन्ध्यवासिनी की आराधना के लिए आज भी ग्रामीणजन जो मंत्रों एवं उसके रहस्यों को नहीं समझ सकते हैं, उन्होंने अपने सहज भोजपुरी गीतों के द्वारा माँ के उपासना का मार्ग ढंूढ रखा है। भोजपुरी के कई एक ऐसे देवीगीत हैं जिनमें वही मंत्र शक्ति है जिसे गाकर भक्तगण देवी माँ को सहजता से प्रसन्न कर लेते हैं-
भक्त आरती उतारे जय-जय अम्बे पुकारे, आवा आवा अम्बे माँ।
चक्र कमल त्रिशूल हाथ में गले में मुण्ड की माला,
शंख फूंक बैरी ललकारे सद्र भेरव की माला,
शंख फूंक बैरी ललकारे सद्र भेरव की माला,
जग के तू रक्षा करवइया, तन मन तोहये बारे। भक्त आरती...
जय-जय-जय दुर्गे महारानी
तोहरा बाट निहारी।
कबो त होइहै राउर कृपा मन अज्ञान बिचारी।
पड़ल राह में झंखत बानी, मइया जल्दी आरे। भक्त आरती...
सहज स्वभाव स्नेह शील फिर ममता की तू मूरत,
रखिया दया गया सबका पर विश्वमोहिनी सूरत।
निशदिन नया सिंगार सजाके भोला बाट निहारे। भक्त आरती...
भोजपुरी गीतों में माँ के भव्य रूप सौन्दर्य के वर्णनों के साथ धाम की महिमा का सहज उल्लेख करके भोजपुरी गायक श्रोता भक्तों के साथ देवी माँ को भी प्रसन्न कर लेता है-
शेरवा पर सोहे माई तोहरी सुरतिया,
तोहरी सुरतिया के उतरे अरतिया,
शहनाई ढोलक बाजे झंझवा टनाटन
बाजे शंख अडरी हारी घण्टवा टनाटन
लगड़न के माई त पहाड़ पर चढ़वलू
अन्हरन से गीता अ रामायण पढ़वलू
गूंगवन के खोल देलू कंठवा टनाटन। बाजे शंख...
भोजपुरी गीतों में माँ की आरती आराधना के साथ उपासना के भी सशक्त भाव विद्यमान हैं। भोजपुरी आरती में जिस तरह की मंत्रमुग्ध करने की सामथ्र्य देखने को मिलती है वह किसी भी तरह से देववाणी संस्कृत के मंत्रों से कम सामथ्र्य नहीं रखते हैं। भोजपुरी के प्रख्यात गायक पं. मनोज तिवारी ‘मृदुल’ जब भी कहीं भोजपुरी समाज में भोजपुरी देवीगीत की प्रस्तुति करते हैं तो निश्चित रूप से उसी मंत्र शक्ति से मुग्ध जनता जनार्दन को देखकर भोजपुरी देवी गीतों के सामथ्र्य का अन्दाजा लगाया जा सकता है। उनके द्वारा गाया जाने वाला निम्नलिखित देवी गीत सदैव भक्तों में देवी भक्ति की गंगा प्रवाहित कर देता है-
पर्वत-पर्वत घुमे मइया होके शेर सवार, बोल महारानी
जगदम्बा जगजननी कहनी दुष्टन के संहार बोल महारानी
हे दुर्गा तू त्रेता युग में बनके अइलू सीता
महाभारत के कृष्ण के मुख से बनके निकलू गीता।
तू ही काली तू ही शीतला तोहरो रूप हजार। बोल महारानी
भोजपुरी समाज में माँ के धाम के प्रति अगाध भक्ति देखने को मिलता है। जिसे देखने की एक मिसाल नीचे के देवीगीत में देखने को मिलता है-
चल चली माई के मन्दिरवा ए धनिया की पूरा होई आस।
पूरी मन के मुदरिया की पूरा होई आस,
मइया के चुनरी चढ़ावल जाई ललकी की पूरा होई आस।
भोजपुरी गीतों के गायक माँ की उपासना में माँ के लालपताका मंदिर धाम की महिला को जिस तरह प्रस्तुत करते हैं, उसका एक सहज रूप इस देवी गीत में देखने को मिलता है-
लाल रे भवनवां क लाल ध्वजा बा हे मइया
तोरी लाली रे चुनरिया हे मइया हम त अबोध नाहीं कुछहू गियनवा हे मइया
बाटे लमहर डगरिया हे मइया लूर न सहूर बाटे पूजवा का तोहरे हे मइया
खाली जनी गोड़धरिया हे मइया मन के कपूर बारी श्रद्धा के दियना हे मइया...
भोजपुरी गीतों में श्रद्धालु अपने को महामाया के समक्ष भिखारी की तरह अपने को प्रस्तुत करके उससे दया की भीख मांगने में नहीं थकते हैं-
आज तोहरी दुअरिया पर अम्बे भिखारी आइल बा।
भीख देइ द दया के हे मइया सवाली आइल बा।
तोहरी शरण में के नाहिं आइल देखत मुरतिया मनवा मोहाइल,
कइके हिम्मत ई बालक त तोहरी दुआरी आइल बा।
ज्ञान कहां बा महिमा बखानी, हम अज्ञानी तू गुण खानी,
हम त जयकार बोलहूं न जानी, अनाड़ी आइल बा। आज तोहरी...
विन्ध्याचल वासी महारानी, मैहर वैष्णो तोहरउ निशानी,
नैन हमरे तरफ भी घुमा द दुःखारी आइल बा। ‘महामाया’ जगदम्बा विन्ध्यावासिनी स्वयं प्रकृतिरूपा योगमाया रूपा नन्दजा कल्याणी हैं। उनकी उपासना कर मानव जीवन के हर भव बाधा से मुक्त हो जाता है।
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