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श्री राम भगवान के द्वारा प्रतिष्ठित पंचमुखी शिव मंदिर जो है मगध क्षेत्र के रामपुर चाय में|

श्री राम भगवान के द्वारा प्रतिष्ठित पंचमुखी शिव मंदिर जो है मगध क्षेत्र के रामपुर चाय में|

विष्णु कान्त मिश्र 
अरवल, करपी प्रखंड के रामपुर चाय गांव ऐतिहासिक गांव है. औरंगाबाद सीमा पर अवस्थित गांव देवकुंड से नजदीक सटे हुए है. इस गांव में पंचमुखी शिव मंदिर है. जिसे गांव वासी बताते है कि रामायण काल में भगवान श्रीराम खुद इस मंदिर का स्थापना किये थे. लेकिन एतिहासिक जोड़ तोड़ और प्रशासनिक और अनदेखी के कारण यह मंदिर धार्मिक स्थल होने के कारण भी गुमनामी में है. सरकार अगर चाहती तो इसे पर्यटन के रामायण सर्किट से जोड़कर धार्मिक स्थल बना सकती है. ग्रामवासी बताते है कि श्री राम भगवान के द्वारा प्रतिष्ठित मगध क्षेत्र के रामपुर चाय में पंचमुखी शिव मंदिर का वर्णन धार्मिक ग्रंथों में भी मौजूद है.
इस सम्बंध मे गाँव के ही निवासी चंद्रमौलि पांडेय ने  बताया कि यह शिवलिंग लाखो वर्ष पुराना है. इस मंदिर का जीर्णोद्धार सैकड़ों बार हुआ. सरकार द्वारा यह मंदिर उपेक्षित है. सरकार अगर इसे पर्यटन के मानचित्र पर लाए तो इस क्षेत्र के लिए विकास के नए द्वार खुल जाएंगे. आसपास के दर्जनों गांव के लोग पूजा अनुष्ठान रुद्राभिषेक महामृत्युंजय पाठ के लिए यहां आते रहते हैं. श्रावण मास में बहुत दूर-दूर से लोग यहां जल चढ़ाने आते हैं. मंदिर के आसपास पोखर है. अगर उसमें सीढ़ी बना दिया जाए तो बिहार का महत्वपूर्ण छठ पर्व जिसमें बहुत भीड़ होती है उसमें भी छठ व्रतियों को अर्घ्य देने में  सहूलियत होगी. उन्होंने बताया कि रामपुर चवनाश्रम से लगभग डेढ़ माइल पश्चिम है प्रसिद्ध योगीराज लालबाबू महात्मा के अनुसार रामसर के नाम से रामपुर में चौवन सरोवर थे. जो पिछले सर्वे में दर्ज है. जिसे बाद में भरकर खेत बनाया गया. वहां खुदाई में पक्के बहुत बड़े व्यास के कुएं निकले. जो पुनः खेत बनाने के क्रम में भर दिए गए. दस-दस , बारह-बारह हाथ के पत्थर और कहीं-कहीं पत्थर तथा ईट की पक्की सीढ़ियां आदि भीतर मे मकान की नींव खोदते या कुआं खोदते समय पाई जाती है. अतः इस से भी प्रमाणित होता है कि रामपुर चाय पौराणिक काल का जनपद है. प्रसिद्ध भूगोल विद डॉक्टर रामप्यारे सिंह ने प्रमाणित किया है कि रामपुर चाय रामायण काल की हिरणबाहु नदी के पश्चिमी तट पर था. काल क्रम में यह नदी नष्ट हो गई. दधीचि पत्नी तथा महर्षि चवन की पुत्रवधू सरस्वती यात्रा करते हुए रामपुर चाय के पास ही रुकी थी. किंवदन्ती है कि श्री रामचंद्र जी की छोटी मां सुमित्रा जी का मायका रामपुर चाय ही था.

 उन्होंने बताया कि ब्रह्मपुराण में इस गांव का वर्णन है. ब्रह्मपुराण में कहा गया है कि स्वयं मर्यादा पुरुषोत्तम भगवान श्री रामचंद्र जी द्वारा स्थापित इस शिवलिंग का दर्शन मात्र कर लेने से प्राणी पाप मुक्त हो जाता है. ब्रह्म पुराण में वर्णित मगध में कौन कौन से तीर्थ भोग और मोक्ष प्रदान करने वाले हैं. नारद जी के इस प्रश्न के उत्तर में ब्रह्मा जी ने कहा कि मगध के उन पवित्र तीर्थों का नाम सुन लो जहां एक बार भी यात्रा कर मानव पुण्य भाजन हो जाता है. ये हैं देवकुंड, गया क्षेत्र ,राजगृह वन ,देव ,रामपुर और नदी श्रेष्ठ पुनपुन श्लोक में भी वर्णित है कि देवकुंडम गया क्षेत्रम तथा राजगृहम वनम, देवम रामपुरम  चैव नदी श्रेष्ठा पुनः पुना यस्या : संदर्शनादेव सर्व पापम प्रनसयति. आनंद रामायण यात्रा कांड सर्ग पांच के अनुसार राज गद्दी पाने के बाद श्री राम चंद्र जी ने सीता से पूछा कि तुम्हारे चित्त में अब कौन-कौन सी अभिलाषा है. तब सीताजी ने कहा कि जब अपने पिताजी की आज्ञा से मैंने और लक्ष्मण जी के साथ अयोध्या से दंडक वन की यात्रा की थी. और गंगा पार होने का प्रसंग आया था तभी नौका पर मैंने संकल्प लिया था कि जब वनवास से सकुशल लौट आएंगे तब हे गंगे हम तीनों मिलकर तुम्हारी पूजा करेंगे. लौटते समय माताओं, श्री भरत और शत्रुघ्न आदि के व्याकुल होने के कारण शीघ्रता में भूल गई थी. अतः मेरी प्रार्थना है कि माताओं बंधुओं के साथ गंगा की यात्रा की जाए. गंगा पूजन यात्रा की तैयारी की गई. साथ ही सदाव्रत का इंतजाम भी किया गया. और घोषणा किया गया कि कोई भी अतिथि सत्कार पाए बिना यहां से जाने नहीं पावे. इसी बीच अगस्त ऋषि प्रयाग से गंगा यात्रा की इक्षा से चले आ रहे थे. और असल में उन्हें गया धाम जाना था. संजोग बस सदाव्रत के पास पहुंच गए. पहरेदारो ने कहा कि खा पीकर सुख पूर्वक आगे बढ़े. दुतों की बात सुनकर अगस्त जी उल्टे पांव लौट पड़े. उन्होंने निश्चय किया कि श्री रामचंद्र जी इसी यात्रा से लौट कर अयोध्या चले जाएंगे तो और और देशों में लोगों को इनका दर्शन कैसे शुलभ हो सकेगा. तथा पापों को भस्म करने वाले राम तीर्थों एवं मोक्षप्रद शिवलिंगो की स्थापन कैसे हो सकेगी. यह सोचकर ऋषि ने दूतों से कहा कि जिन्होंने ब्रह्मपुत्र रावण का वध किया और ब्रह्म हत्या से मुक्त कराने वाले यज्ञ नहीं किए तो उनका अन्न  कैसे खाऊँ.  इस बात कि दुतों से जानकारी मिलने पर महाराज ने अगस्त जी का अभिप्राय जान सभा में मंत्रियों और राजगुरु से मंत्रणा कर पहले तीर्थ यात्रा, तब यज्ञ करने का निश्चय किया. तीर्थ यात्रा के प्रसंग में श्री रामचंद्र जी काशी में श्री विश्वनाथ जी से विदा होकर आकाश मार्ग से पृथक विमान द्वारा करनासा नदी देखते हुए रामपुर में रामेश्वर नाथ, पंचमुखी महादेव मधुश्रवा में महेश्वर नाथ देवकुंड में दूधेश्वरनाथ महादेव आदि की स्थापना की.हमारे खबरों को शेयर करना न भूलें| हमारे यूटूब चैनल से अवश्य जुड़ें https://www.youtube.com/divyarashminews https://www.facebook.com/divyarashmimag

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