सच को सच कहने की हिम्मत करता हूं
झूठ- कपट चापलूसी से सदा बचता हूं।
सामने देखकर गिरता हुआ आचरण,
संस्कारवान कहने से कुछ को डरता हूं।
अर्धनग्न घूमती बेटियों को हम क्या कहें,
आयना जरा दिखाया आरोप लगने लगे।
जानता हूं सब कभी खराब नहीं होते,
खराब पर अंगुली उठी, आरोप लगने लगे।
महिला मुक्ति के पक्षधर भी आगे आ गये,
नारी विरोधी का आरोप हम पर लगा गये।
हमने सिखाया बहन बेटी पत्नी को बढ़ना,
बस नशे का विरोध जताया, क्रोध दिखा गये।
बेटों को भी हम सिखाते सबका सम्मान करना,
नारी जाति के लिये, संस्कारों का ध्यान रखना।
जिसे अपना समझते हैं उसको तो समझायेंगें,
सबको चाहिए समाजिक नियमों का मान करना।
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