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मोहब्बत को जीते है

मोहब्बत को जीते है

जो जीते है मोहब्बत में
वो कुछ अलग ही होते है। 
जमाने की झंझटों से 
ये बहुत दूर होते है। 
इनकी दुनिया भी
बहुत सीमित होती है। 
बस अपने आप में ही
ये बहुत खुश रहते है।। 

मोहब्बत में बड़े बड़े 
पत्थर दिल पिघलते है। 
जो पत्थर होते हुये भी
मोहब्बत को तरसते है। 
की कोई तो हमें समझे
और मेरे स्वरूप को जाने।
और अपनी बाहों में 
हमें वो थामें।। 

मोहब्बत वो जन्नत है
जिसमें सभी रहना चहाते है। 
अपने मेहबूब को लेकर
वो इसमें बसना चाहते है। 
मोहब्बत होती है ऐसी
जिसमें फूल कांटे होते है। 
पराग उसे ही मिलता है
जो इनसे डरता नहीं है।। 

जय जिनेंद्र 
संजय जैन "बीना" मुंबई
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