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श्रद्धा व विश्वास से परिपूर्ण है गणगौर पूजा

श्रद्धा व विश्वास से परिपूर्ण है गणगौर पूजा

(आर.एस. द्विवेदी-हिन्दुस्तान समाचार फीचर सेवा)

राजस्थान में 18 दिन तक चलने वाली गणगौर पूजा देती है कुंवारी लड़कियों को अटल सौभाग्य देती है। गणगौर शब्द दो शब्दों से मिलकर बना है, जिसका गण शब्द महादेव शिव का और गौर माता पार्वती का प्रतीक है। गणगौर राजस्थान का एक प्रमुख उत्सव है। यह त्योहार गौरी और शिव की शादी और प्रेम का जश्न के रूप में मनाया जाता है। गणगौर पर शादीशुदा महिलाएं अपने पति की लंबी उम्र के लिए और कुंवारी लड़कियां अच्छा पति पाने के लिए माता पार्वती और शिव की पूजा करती हैं। इस बार गणगौर उत्सव 18 मार्च से 4 अप्रैल तक मनाया जाएगा।

माना जाता है कि पुराने समय में माता पार्वती ने भगवान शिव को पति के रूप में पाने के लिए बहुत तपस्या और व्रत किया था। इसी के अनुसार, माता पार्वती ने अपनी भक्ति और प्रेम से भगवान शिव का प्यार जीत लिया था और उसके बाद पार्वती माता अपने भक्तों के वैवाहिक आंनद का आशीर्वाद देने के लिए गणगौर के दौरान अपने घर आई और यहां 18 दिन तक गणगौर पूजी। इसके बाद विदाई के दिन एक बड़ा उत्सव हुआ और भगवान शिव उन्हें वापिस अपने साथ ले गए। गणगौर त्योहार मार्च और अप्रैल के महीने में आता है। यह त्योहार होली के अगले दिन से लेकर 18 दिन तक मनाया जाता है, जिसमें शादीशुदा और कुंवारी लड़कियां मिलकर पूजा- अर्चना करती हैं।

इस उत्सव पर महिलाएं पहले मिट्टी और होली की राख मिलाकर शिव और पार्वती की मूर्ति बनाती हैं, फिर उनका पूरा श्रृंगार कर उनकी पूजा करती हैं। इसके साथ ही शादीशुदा महिलाएं और कुंवारी लड़कियां दिनभर व्रत रखती हैं और मिट्टी और राख को किसी बर्तन में भरकर उसमें जौ बोती हैं। सभी महिलाएं और लड़कियां एक-एक कर दीवार पर 16 बिंदी-मेहंदी, काजल और कुमकुम की लगाती हैं और यह 16 बिंदी 16 श्रृंगार से जुड़ी हुई होती है। यह बिंदी शादीशुदा महिलाएं माता पार्वती के अपने जीवन में ऐसे रंग बिखेरे रखने और कुंवारी लड़कियां अपने आने वाले सुहाग की कांमना के लिए लगाती हैं। इसके साथ हीं, सभी मिलकर खूब हंसी-ठिठोली करती हैं। गणगौर का आखरी दिन भव्य होता है। कई पर्यटक और स्थानीय लोग बड़ी संख्या में महिलाओं के जुलूस को देखने के लिए इकट्ठा होते हैं, जो गौरी और इस्सर की मूर्तियों को अपने सिर पर झील, नदी और बगीचे में ले जाती हैं, और गौरी-शिव को विदाई दी जाती है। वहीं, उनकी मूर्तियों को जल में विसर्जित किया जाता है। इसके साथ हीं, सभी महिलाएं और लड़कियां मिलकर लोकगीतों पर डांस करती और गीत गाती हैं। 18 दिन के इस उत्सव में शादीशुदा महिलाएं 16 श्रृंगार कर अपने सुखी वैवाहिक जीवन की कांमना करती हैं।

राजस्थान सिर्फ ऐतिहासिक किलों, समृद्ध इतिहास और खूबसूरत पर्यटन स्थलों के लिए ही नहीं जाना जाता बल्कि यहां के पर्व भी लोगो का ध्यान अपनी ओर आकर्षित करते हैं। भारत ही नहीं, विश्व के पर्यटन मानचित्र पर महत्वपूर्ण स्थान रखने वाले राजस्थान में आयोजित होने वाले मेले एवं उत्सव इसे और विशिष्ट रूप प्रदान करते हैं। राजस्थान में गणगौर का त्यौहार होली के बाद से ही आरम्भ हो चुका है। माना जाता गणगौर अपने पीहर आती है और फिर पीछे पीछे ईशर उसे वापस लेने आता है और आखिर मे चैत्र शुक्ल द्वितीया व तृतीया को गणगौर को अपने ससुराल के लिए विदा किया जाता है। यह लोकप्रिय मेला हिंदू देवता गौरी माता के सम्मान में आयोजित किया जाता है।

जयपुर में गणगौर महिलाओं का उत्सव नाम से भी प्रसिद्ध है। कुंवारी लड़कियां मनपसंद वर की कामना करती हैं तो विवाहित महिलाएं अपने पति की दीर्घायु की कामना करती हैं। अलग-अलग समूहों में महिलाओं द्वारा लोकगीत गाते हुए फूल तोड़ने तथा कुओं से पानी भरने का दृश्य लोगों की निगाहें ठहरा रहा है तो कहीं मोड़ रहा है। लोक संगीत की धुनें पारंपरिक लोक नृत्य पर हावी हो रही हैं। कैसे मनाया जाता है गणगौर का पर्व ज्यादातर महिलाओं द्वारा अपने पति के कल्याण के लिए मनाया जाता है। उत्सव के एक भाग के रूप में, महिलाओं द्वारा मेहँदी (हिना पत्तियों का एक खुशबूदार पेस्ट) का इस्तेमाल किया जाता है जिससे वो अपने हाथ और पैर को सजा सकें। राजस्थान में गणगौर उत्सव बड़े धूमधाम से मनाया जाता है। गणगौर त्योहार को उमंग, उत्साह और जोश से मनाया जाता है। स्त्रियां गहने-कपड़ों से सजी-धजी रहती हैं। उनकी आपसी चुहलबाजी सरस-सुंदर हैं। साथ ही शिक्षाप्रद छोटी-छोटी कहानियां, चुटकुले नाचना और गाना तो इस त्योहार का मुख्य अंग है ही। घरों के आंगन में सालेड़ा आदि नाच की धूम मची रहती है। राजस्थान की राजधानी जयपुर में गणगौर काफी धूमधाम से मनाया जाता है। महिलाएं रंग बिरंगे परिधानों में सज संवरकर गौरी और शिव की आराधना करती हैं। दिल्ली से जयपुर हवाईजहाज, ट्रेन और बस द्वारा आसानी से पहुंचा जा सकता है। उदयपुर में भी इस त्यौहार को बखूबी देखा जा सकता है..क्योंकि उदयपुर में गणगौर नाव प्रसिद्ध है। पारंपरिक परिधानों में महिलाएं शहर के मुख्य मार्गों से होते हुए पिछौला झील के गणगौर घाट पर देवी पार्वती की मूर्तियों की पूजा-अर्चना करती हैं। दिल्ली से उदयपुर हवाईजहाज ,ट्रेन और बस द्वारा आसानी से पहुंचा जा सकता है। जोधपुर में भी इस त्यौहार को काफी धूमधाम से मनाया जाता है..। महिलायें इस पर्व पर टोलियों में जाकर नदी किनारे देवी गौरी की आराधना करती हैं और, मंगल गीत गाती हैं। यहां हवाईजहाज, ट्रेन और बस द्वारा आसानी से पहुंचा जा सकता है। अगर आप गणगौर के समय राजस्थान में हैं तो वहां के खास व्यंजनों यानी कुट्टू की पूरी, सिंघाड़े का हलवा, कद्दू का रायता,कच्चे केले की चाट और केले की बर्फी खाना बिल्कुल भी न भूले। त्योहार का भरपूर मजा तो तरह-तरह के व्यंजन से ही मिलता है।
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