बिहार का प्रथम गौरव गान
संकलन ज्योतिन्द्र मिश्र
भारत जननी के ह्रदय हार,
हे !प्यारे गौरव मय बिहार
अगणित
निधियों से भरा हुआ, तू तेजपूर्ण प्यारा प्रदेश
है जाग रही
तव विमल कीर्त्ति, तेरी गुण गाथाएं आशेष
तू शोभित
नंदन वन समान, तेरी सुखमय छवि है अनंत
प्रतिपल तरु
पल्लव द्रुम दल पर, छाया रहता मनहर वसन्त
तू है सुषमा
का शुभ्र सार
हे ! प्यारे
गौरवमय बिहार ।।१।।
परिधान हरित
से सजी हुई,सुन्दरता का मृदु हास यहॉं
धन- धान्य
पूर्ण सुभगा सुखदा,कमला का मधुर निवास यहॉं
प्रिय
प्रकृति बाला है झूम रही,निज यौवन मद में मतवाली
लहरा लहरा
कर लुटा रही, लतिकाएँ सौरभ की डाली
तेरी अनुपम
शोभा अपार
हे ! प्यारे
गौरवमय बिहार ।।२।।
है दिखा रही
अभिराम अमित, निज छटा श्याम तन गिरिमाला
जिसके पट से
चमकाती है, प्राची कंचन रवि का प्याला
तेरे उर पर
जयमाल सदृश , गंगा की धारा बलखाती
कल कल
निनादिनी वेणु बजा ,रागिनी तेरे यश को गाती
तू ही भारत
का नव श्रृंगार
हे! प्यारे
गौरव मय बिहार ।।३।।
तू दृढ़
पर्वत की भांति वीर, कितने क्षति वैभव देख चुका
तू दे
रत्नाकर के समान , भारत को रत्न अनेक चुका
हे! दिवानाथ
सम तेज पुंज , तव सुयश रश्मियाँ छ्हराती
राकेश
ज्योत्स्ना के समान ,नित कीर्त्ति कलाएँ लहराती
गूंजी जग
में तेरी पुकार
हे! प्यारे
गौरवमय बिहार ।।४।।
ऋषि कौशिक
का कटु कष्ट यहॉं, सुखधाम राम ने दूर किया
मारीच ताड़का
का गुमान ,निज धनुष बाण से चूर किया
फिर यही
दिव्य निज पद रज से ,गौतम की प्रिय नारी तारी
जो शिला
रूपिणी रहती थी , वर्षातप। सह संकट भारी
तू बना अवनि
पर स्वर्ग द्वार
हे! प्यारे
गौरवमय बिहार ।।५।।
तू ही
प्यारी जन्म भूमि , प्रिय पतिपद प्राणा सीता की
तूने देखी
हैं क्रीड़ाएं , मंजुल -जग-जननि। पुनीता की
श्रीराम
जानकी का मनहर , तू ने देखा है मंजु - मिलन
तू ने देखा शिव
चाप भंग,फिर परशुराम का गर्व गहन
देखें ऋषि
नृप सब सत्य सार
हे!प्यारे
गौरवमय बिहार ।।६।।
मिथिला पति
देखे नृप विदेह, सीता को देखा स्वयंवरा
उन कर कोमल
स्मृतियों से ,चित्रित मिथिला की वसुंधरा
ललचाते जिस
पर थे सुरेश ,तू ने अलभ्य वह लाभ लिए
जिनकी सुधि
से ही भावुक मन, प्रफुलित होते वह भाव लिए
तू तुलसी
मानस का आधार
हे! प्यारे
गौरवमय बिहार ।।७।।
मुंगेर यही
कह रहा मौन , नृप कर्ण यहीं थे बलशाली
निज प्रजा
प्राण सुषमा निधान, दुर्घष सत्य के प्रतिपाली
दिनराज
पुत्र दानी महान थे , युद्ध कला निधि कहलाए
सुरराज
इंद्र ने हो याचक , जिनके सम्मुख कर फैलाये
थे धीर वीर अतिशय
उदार
हे! प्यारे गौरवमय
बिहार ।।८।।
नवरत्न
शिरोमणि कालिदास ,कवि कंज यहॉं उत्पन्न हुए
जिनकी रचना
से भारत में , शुचि सरस् काव्य संपन्न हुए
थी कपिलवस्तु
की धन्य भूमि , जहां शांत बुद्ध अवतार हुआ
वैराग्य
त्याग करुणा सप्रेम का , मंजू रूप साकार हुआ
सिखलाया जग
को ज्ञान सार
हे! प्यारे
गौरवमय बिहार ।।९।।
तू ने अशोक
युग में पाया, साम्राज्य सुखद उन्नति प्रधान
उत्पन्न
किये नीतिज्ञ विज्ञ , चाणक्य चतुर द्विजवर समान
पाटलिपुत्र
के कण कण में ,इतिहास समुज्ज्वल दीप्ति मान
हो चुके
यहीं पर चन्द्र गुप्त ,दिग्विजयी कल कौशल निधान
तू सौख्य
सार हे गुणागार
हे ! प्यारे
गौरवमय बिहार ।।१०।।
विद्यापति
से कवि भूषण में, काव्यामृत तू ने पान किया
गुण मंडित
मण्डन भारति का , तू ने अनन्त आह्वान किया
दिनकर समान
प्रतिभाशाली कवि, प्रभा आज भी जगा रहे
फुलवारी नव
रचनाओं के ,सुरभित सुमनों की लगा रहे
कवियों के तू
हृदयोद्गार
हे प्यारे
गौरवमय बिहार ।।११।।
है बुद्ध
गया सम पुण्य तीर्थ , वर वैद्यनाथ सुखधाम यहॉं
प्राचीन
युगों की कहते हैं ,जो स्वर्ण कथा अभिराम यहॉं
वह विद्यालय
नालंदा का ,अभिमान देश का आज हुआ
थी ख्यात
प्राप्त जिसकी जग में ,इस भव्य भूमि का ताज हुआ
तू हरता जन
मन के विकार
हे ! प्यारे
गौरवमय बिहार ।।१२।।
कल और
कारखाने अनेक , तेरे प्रतिपालित चमक रहे
अभ्रक
जगव्यापी सार खनिज तव वक्षस्थल में दमक रहे
कंचन पूरित
कनक मटिया ,जहां बहती सरिता बरणारी
जगती तल की
विधि ने दी है, अनमोल रत्न निधियां सारी
तू नव
मणियों का रत्न हार
हे! प्यारे गौरव
मय बिहार ।।१३।।
सोया था जब
भारत अचेत , निज शान और अभिमान लुटा
तब तेरी ही
झंकारों से , था देश प्रेम का गान उठा
चंपारण में
ही सर्व प्रथम , गांधी ने स्वत्व विचार किया
स्वाधीन भाव
की ज्योति जगा ,खादी का विपुल प्रचार किया
कर दिया दूर
फिर देश भार
हे! प्यारे
गौरवमय बिहार ।।१४।।
जग वंदनीय
आलोक पूर्ण , तू भारत माँ का प्राण बना
सहृदय लिए तू
दीन हीन , पद दलित कृषक दल त्राण बना
तू निश्चित
उन्नत पथ पर दृढ़ ,चलता है अमिट प्रभाव भरे
तू है भारत
का अंत स्थल , जिसमें अनेक सद्भाव भरे
सहता चाहे
कितना प्रहार
हे ! प्यारे
गौरवमय बिहार ।।१५।।
तेरा असीम
वैभव विलोक ,दुर्दैव दुष्ट ने हो अधीर
भूकम्प
भयानक से क्षण में ,डाला था तेरा हृदय चीर
कितनी
अमूल्य निधियाँ छीनी , कितनों का ऊष्ण रक्त पीया
नत करने को
तव भव्य भाल ,कितना ही प्रबल प्रयत्न किया
थी त्राहि
त्राहि सबकी पुकार
हे! प्यारे
गौरवमय बिहार ।।१६।।
पर वीर
सैनिक के समान , तू कमर बांध उठ खड़ा हुआ
सब विपदाओं
के जाल तोड़ ,स्वतंत्र युद्ध में खड़ा हुआ
तू धन्य
धन्य सद्गुणागार ,भारत भू पर तू अग्रगण्य
सच्चे
स्वदेश सेवी तेरे ,सेवा व्रतधारी पुत्रधन्य
तू वीर भूमि
भावुक उदार
हे , प्यारे गौरव मय बिहार ।।१७।।
राजेन्द्र
वीर की जय ध्वनि से ,आज विश्व सब गूँज रहा
कर आगे
जिसका राष्ट्र चरण , स्वातंत्र्य देवि के पूज रहा
नर , वीर , खनिज और रत्न
खान ,जगती का तू कल्याण करे
तेरे लालों
की दिव्य दीप्ति , जन मन पंकज में प्राण भरे
तुझको
प्रणाम है कोटि वार
हे! प्यारे
गौरवमय बिहार।।१८।।
© किशोरी देवी चतुर्वेदी
सौजन्य --ब्रज वल्लभ चतुर्वेदी
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