पोस्टल बैलेट का आकलन निराधार
(डॉ दिलीप अग्निहोत्री-हिन्दुस्तान समाचार फीचर सेवा)
केंद्र में भाजपा की पूर्ण बहुमत सरकार को अनेक लोग सहज रूप में स्वीकार नहीं कर सके थे। सात वर्ष बाद भी उनका यही नजरिया कायम है। वह यह तथ्य स्वीकार करने को तैयार नहीं कि नरेंद्र मोदी आज भी देश के सर्वाधिक लोकप्रिय नेता है। आमजन के बीच उनकी विश्वसनीयता शिखर पर है। यही कारण है कि लगातार दूसरी बार उनके नेतृत्व में भाजपा को सरकार बनाने का जनादेश मिला था। अनेक प्रदेशों में भी भाजपा को मोदी के नेतृत्व का लाभ मिलता है। योगी आदित्यनाथ भी व्यक्तिगत व राजनीतिक जीवन में नरेंद्र मोदी की तरह है। दोनों में समाज सेवा व संन्यास का अलग अलग रूप में समन्वय दिखाई देता है, जिसमें परिवारवाद के लिए कोई जगह नहीं है। इनका पूरा जीवन देश समाज के प्रति समर्पित है। विपक्ष इनसे मुकाबले का तरीका ही नहीं समझ सका क्योंकि विपक्षी नेता सेवा व समर्पण के उस धरातल पर पहुंचने की कल्पना ही नहीं कर सकते। यही कारण है कि यह पार्टियां अपनी पराजय पर आत्मचिंतन करने से बचती हैं। इसके लिए उन्होंने एक नायाब तरीका निकाल लिया है। किसी प्रदेश में इनकी सरकार बन गई तो इसे अपनी लोकप्रियता बताया गया। जीत का जश्न मनाने अन्य विपक्षी नेता भी वहां पहुंच जाते है लेकिन भाजपा को जनादेश मिला तो ईवीएम की खैर नहीं। विगत सात वर्षों से यह चल रहा है। इस शोध ग्रन्थ में एक नया अध्याय जुड़ा है। उत्तर प्रदेश में पोस्टल बैलेट के आधार पर पूरे चुनाव की सीटों का आकलन कर लिया गया। यह आंकड़ा तीन सौ प्लस तक पहुंच गया। कहा गया कि भाजपा चालाकी बेईमानी से जीत गई जबकि बैलेट पोस्टल पर पुरानी पेंशन बहाली व तीन सौ यूनिट फ्री बिजली वादे का असर हुआ। कहा गया कि पोस्टल बैलेट में समाजवादी पार्टी गठबंधन को करीब इक्यावन प्रतिशत वोट मिले हैं। इस हिसाब से कुल तीन सौ चार सीटों पर सपा गठबंधन की जीत चुनाव का सच बयान कर रही है। वैसे भी प्रदेश के मतदाताओं ने सपा की ढाई गुना सीटें बढ़ाकर अपना रुझान जता दिया है। बैलेट पोस्टल की सुविधा सरकारी सेवा के लोगों को मिलती है। इनमें भी उन लोगों ने उत्साह दिखाया जिन्हें पुरानी पेंशन का लाभ नहीं मिल रहा है। अनेक लोगों ने सोशल मीडिया पर अभियान भी चलाया था। इनका कहना था कि राष्ट्रवाद कानून व्यवस्था विकास आदि के मुद्दे अगले चुनाव में देखे जाएंगे। इस बार केवल पुरानी पेंशन बहाली के वादे पर वोट करना है। दो सौ फ्री यूनिट बिजली वादे से सरकार बनने के उदाहरण है। उत्तर प्रदेश में तो तीन सौ यूनिट फ्री बिजली का वादा किया गया था। इन वादों को गेंम चेंजर कहा जा रहा था। पोस्टल बैलेट का प्रयोग करने वालों के लिए पुरानी पेंशन बहाली सर्वाधिक महत्वपूर्ण था।
वैसे भी भाजपा को छोड़ कर देश से प्रायः सभी दल व्यक्ति व परिवारवादी हैं। अन्य प्राथमिकता इसके बाद ही प्रारंभ होती है। वह अपनी इस कमजोरी को छिपाना चाहते हैं। इसके लिए पिछड़ों दलितों अल्पसंख्यकों आदि की दुहाई दी जाती है। इस परम्परागत राजनीति से ऊपर उठने का इनके पास कोई विजन ही नहीं, जबकि लोग जागरूक हो चुके है। वह असलियत को देखते व समझते है। गरीबों, किसानों आदि के हित में सभी सरकारों का रिपोर्ट कार्ड जनता के सामने रहता है। करोड़ों की संख्या में कल्याणकारी योजनाओं से लाभांवित होने वाले लोग है। इनके ऊपर जाति मजहब के समीकरण ज्यादा महत्व नहीं रखते। लोकलुभावन वादों में कोई कसर न छोड़ने के बाद भी विपक्ष को सरलता नहीं मिली। मुकाबले में एकमात्र दल था। इसलिए उसकी सीटें बढ़ाना स्वाभाविक था लेकिन बेशुमार वादों के बाद भी उसे सत्ता से दूर रखने का मतदाताओं ने निर्णय लिया। इस पराजय पर आत्मचिंतन की आवश्यकता थी लेकिन फिर ईवीएम व बेईमानी की बात हुई। कहा गया कि जनता ने सपा को भाजपा का विकल्प मान लिया है जबकि यह तब सच होता जब सपा को बहुमत मिलता। इस चुनाव में उसे एक मात्र विपक्षी अवश्य माना गया। फिलहाल वह कांग्रेस व बसपा की विकल्प अवश्य बनी है लेकिन इस आधार पर पांच वर्ष बाद का निष्कर्ष नहीं निकल सकता। पांच वर्ष बाद मतदाता सरकार व मुख्य विपक्षी पार्टी के कार्यों के आधार पर निर्णय करेंगे। उत्तर प्रदेश में बीजेपी पर छल प्रपंच से चुनाव जीतने का आरोप लगाना निराधार है। कांग्रेस व बसपा लड़ ही नहीं सकी। ऐसे में सपा की सीटें व मत प्रतिशत बढा। इसके पहले बसपा व सपा को पूरे बहुमत से सरकार चलाने का अवसर मिला था। योगी सरकार के कार्यकाल में दो वर्ष वैश्विक महामारी कोरोना का प्रकोप रहा। इससे अनेक बाधाओं का सामना करना पड़ा। अनेक विकास कार्यों पर प्रतिकूल प्रभाव भी पड़ा। इसके बाद भी भाजपा को पूर्ण बहुमत मिला। परिस्थितियों को देखते हुए यह सफलता भी कम नहीं है। लेकिन ईवीएम को लेकर फिर वही अंदाज सामने है। मतलब भाजपा ईवीएम से विजयी होती है। गैर भाजपा पार्टियां अपनी लोकप्रियता व नैतिक राजनीति से परचम फहराती है। ममता बनर्जी, कुमार स्वामी कमलनाथ,अशोक गहलोत,हेमंत सोरोंन आदि लोकप्रयिता से मुख्यमंत्री बने जबकि योगी आदित्यनाथ की वापसी पर ईवीएम को कोसा जा रहा है। आमजन इस दोहरे मापदंड को देख व समझ रहे हैं।
सच्चाई को सहज रूप में स्वीकार करना चाहिए। तीन सौ यूनिट बिजली का वादा बहुत लोक लुभावन था लेकिन बिजली की आपूर्ति का मुद्दा भी चर्चा में रहा। यह किसी पार्टी के कहने की बात नहीं थी। इसका लोगों को प्रत्यक्ष अनुभव रहा है। करोड़ों गरीबों को अनेक योजनाओं का सीधा लाभ मिला। करीब पैतालीस लाख गरीबों को आवास मिला। पांच साल पहले तक यूपी में किसान सरकारों की प्राथमिकता से बाहर था,लेकिन आज वह राजनीति के एजेंडे में शामिल है। किसानों के उत्थान के लिए,उनकी आय में दोगुना वृद्धि के लिए लगातार कदम उठाए गए हैं। सरकार ने दो करोड़ इकसठ लाख शौचालय बनाकर तैयार किए जिसका लाभ दस करोड़ लोगों को मिला है। जिला मुख्यालयों में दस घंटे बिजली और तहसील मुख्यालय पर बाइस घंटे बिजली की सुविधा दी जा रही है, वहीं ग्रामीण क्षेत्रों में अठारह घंटे बिजली पहुंचाने का काम सरकार कर रही है। किसान व गरीब कल्याण,लाखों करोड़ के निवेश, अवस्थापना सुविधाओं का विस्तार, पांच एक्सप्रेस वे पर कार्य,स्वास्थ्य आदि तमाम और क्षेत्रों में भी पिछली सरकारों के रिकार्ड को बहुत पीछे छोड़ दिया गया है। राज्य सरकार की कार्यपद्धति में बदलाव से आय भी बढ़ी है। शीघ्र ही स्टेट जीएसटी से होने वाली आय एक लाख करोड़ रुपये की सीमा को पार कर लेगी। राज्य सरकार ने अब तक गन्ना किसानों को करीब डेढ़ लाख करोड़ रुपए के गन्ना मूल्य का भुगतान कराया है। कोरोना काल में भी सभी एक सौ उन्नीस चीनी मिलें संचालित की गईं। प्रधानमंत्री किसान सम्मान निधि के अन्तर्गत प्रदेश के दो करोड़ बयालीस लाख किसानों को लाभान्वित किया गया है। इसके लिए राज्य को भारत सरकार से प्रथम पुरस्कार भी प्राप्त हुआ है। व्यापार का वातावरण बना है और प्रदेश देश में ईज ऑफ डूइंग बिजनेस में दूसरे स्थान पर आ गया है। आज प्रदेश में तेजी के साथ निजी निवेश हो रहा है। मतदाता इन सभी बातों को देखते हैं।
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