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समरसता की परम्पराएं, एक अकेला थक जाएगा...

समरसता की परम्पराएं, एक अकेला थक जाएगा...

(अशोक त्रिपाठी-हिन्दुस्तान समाचार फीचर सेवा)
पुरानी फिल्म ‘नया दौर’ मंे एक गाना था- साथी हाथ बढ़ाना, एक अकेला थक जाएगा, मिलकर बोझ उठाना.... हो सकता है, इसको मैं हूबहू उन्हीं शब्दों में न लिख पाया हूं लेकिन सारांश यही था कि मिलकर काम करें। महाराज अग्रसेन ने जिनके नाम पर अग्रवाल वंश चला, उन्हांेने भी एक रुपये, एक ईंट की परम्परा से गांव मंे नये आये व्यक्ति की मदद की परम्परा शुरू की थी। गांवों मंे पहले छप्पर छाया जाता था। इसे बनाने के लिए तो मजदूर लगाने पड़ते थे लेकिन दीवार पर रखने की क्षमता किसी भी एक व्यक्ति में नहीं होती थी। गांव के लोग इकट्ठे होकर छप्पर रखवाते थे। यह सभी कार्य निःशुल्क कराये जाते थे। सहयोग की परम्परा कई मामलों मंे देखी जाती थी। आजकल तो शादी-व्याह मंे सभी सामान किराये पर मिल जाता है लेकिन लगभग पांच दशक पूर्व गांवों मंे कोई सामान किराये पर नहीं लिया जाता था। घर-घर से चारपाई और कालीन मांगी जाती थी। दूध भी व्यवहार मंे मिल जाता था। यहां तक कि तरकारी, अमिया भी लोग दे देते थे। ये परम्पराएं अब धीरे-धीरे लुप्त होती जा रही हैं लेकिन जहां कहीं ये परम्पराएं आज भी कायम हैं तो उन्हें देखकर सुखद आश्चर्य होता है। राजस्थान के बाड़मेर मंे गेहूं की की फसल की कटाई आज भी इसी सहयोग की परम्परा से होती है और आपस मंे मिलकर सभी किसान अपनी-अपनी फसल खलिहान तक पहुंचा देते हैं। राजस्थान मंे यह लाह परम्परा कही जाती है। इस परम्परा में सुरीले लोेकगीत गाते हुए किसान परिवार फसल की कटाई करते हैं।

आधुनिकता के दौर में एक तरफ जहां लोग फसलों की कटाई के लिए तरह-तरह की मशीनों का उपयोग करते नजर आते हैं। वहीं, दूसरी ओर राजस्थान मंे ग्रामीण अंचलों में दशकों से चली आ रही लाह परंपरा के तहत आज भी लोकगीतों के साथ किसान परिवार मिलजुलकर बिना किसी मजदूरी लिये खेत में खड़ी फसल की कटाई कर रहे हैं। इस परंपरा का मुख्य उद्देश्य बिना किसी पारिश्रमिक के फसलों की कटाई में एक-दूसरे की मदद करना है। कुछ ऐसा ही नजारा बाड़मेर जिले के किसानों के खेतों में रबी की फसल कटाई के दौरान देखने को मिल रहा है, जहां आस पास के कई किसान इकट्ठा होकर भीणत गायन के साथ खेत में उगी पूरी फसल की कटाई कर रहे हैं। इसे फसल कटाई उत्सव भी कंहा जाता है। इनणतियों को बाद मंे सामूहिक भोज कराया जाता है। लाह का एकमात्र उद्देश्य किसान को अतिरिक्त खर्चे से बचाना और आपसी सहयोग को बढ़ावा देना है। राजस्थान मंे जिस किसान के यहां लाह का आयोजन होता है, उनकी ओर से सहयोग करने वाले सभी किसानों के लिए मारवाड़ी अंदाज में भोज का आयोजन किया जाता है, जिसमें बाजरे की रोटी, भरपूर देसी घी-गुड़ का चूरमा और देसी साग खिलाकर आवभगत की जाती है। इसे ग्रामीणों की भाषा में भाणतियों के लिए लाह की लहर कहा जाता है।

इसमंे कोई संदेह नहीं कि किसान अपनी पूरी जमा-पूजी खेत में फसल उगाने के लिए डाल देते हैं। फसल पकने के दौरान किसी प्रकार की प्राकृतिक आपदा आंधी-तूफान व बेमौसम बारिश आदि से बचने के लिए इसी लाह परंपरा के चलते एक-दूसरे का सहयोग कर पकी हुई फसल कुछ ही समय में काट ली जाती है या कटी हुई फसल एकत्र कर ली जाती है। इससे किसान होने वाले नुकसान से बच जाता है। लाह परंपरा के तहत कुम्हारों की बेरी के भादुओं की पाल के एक खेत में सामूहिक फसल कटाई के दौरान नाचते गाते बच्चों महिलाओं व बुजुर्गों में भी एक अलग सा जोश दिखाई देता है। कई बुजुर्गों में फसल कटाई के दौरान युवाओं सी फुर्ती नजर आती हैं। भिणत के साथ लय और ताल से ताल मिलाकर नाचते-गाते देखते ही देखते कई बीघा में फसल की कटाई कर दी जाती है। लाह परंपरा दशकों से चली आ रही है। इस परम्परा के तहत हंसी-खुशी गाते-नाचते सामूहिक रूप से फसल कटाई कर ली जाती है और इस दौरान थकान भी महसूस नहीं होती

इस अवसर पर बाजरे रो सोगरो, ग्वार फळी रो साग, सात मिठाई करे जेड़ो है इण किसान रो भाग। जैसे लोकोक्तियों और लोकगीतों के साथ गांव के किसान मिलजुल कर किसी एक के खेत में फसल की कटाई करते हैं। लाह एक सामाजिक परम्परा सामूहिक रूप से करते है। कार्य लोकगीत रामयो व खेले की भिणत का गायन कर लाह फसल काटने में जुट जाते हैं पुरुष व महिलाएं गीत गाते फसल की कटाई करते हंै।

महाराजा अग्रसेन को समाजवाद का अग्रदूत कहा जाता है। अपने क्षेत्र मंे सच्चे समाजवाद की स्थापना के लिए उन्होंने नियम बनाया था कि उनके नगर मंे बाहर से आकर बसने वाले व्यक्ति की सहायता के लिए नगर का प्रत्येक निवासी उसे एक रुपया और एक ईंट देगा जिससे आसानी से उसके रहने के लिए घर और व्यापार के लिए धन की व्यवस्था हो जाए। माना जाता है कि महाभारत के युद्ध मंे महाराज वल्लभ सेन अपने पुत्र अग्रसेन तथा सेना के साथ पांडवों के पक्ष मंे लड़ते हुए भीष्म पितामह के वाणों से वीरगति प्राप्त की थी। इसके बाद अग्रसेन जी ने राज्य की बागडोर संभाली थी। सूर्यवंश मंे जन्म में अग्रसेन जी महाभारत युद्ध के समय 15 वर्ष के थे। माना जाता है कि महाराजा अग्रसेन ने 108 वर्षों तक राज किया था। वर्तमान मंे राजस्थान और हरियाणा राज्य के बीच लुप्त हो चुकी सरस्वती नदी के किनारे प्रताप नगर स्थित था। यहां के राजा थे वल्लभ सेन। उनके अग्रसेन और शूरसेन नामक दो पुत्र थे। अग्रसेन महाराजा वल्लभ सेन के बड़े बेटे थे। अग्रसेन ने अग्रोहा राज्य की स्थापना की थी। इस प्रकार सहयोग की परम्परा हमारे देश मंे सैकड़ों साल से चली आ रही थी और इसने समाज को एक भावनात्मक डोर से बांध रखा था। भौतिकवाद की चकाचैंध मंे इस प्रकार की परम्पराएं समाप्त हो गयीं लेकिन जहां कहीं ऐसा सहयोग दिखाई पड़ता है तो अपने देश की परम्पराओं पर गर्व की अनुभूति होती है।
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