महाशिवरात्रि
संकलन अश्विनी कुमार तिवारी
किसी भी मास के कृष्णपक्ष की चतुर्दशी शिवरात्रि कही जाती है , किन्तु माघ ( फाल्गुन, पूर्णिमान्त ) की चतुर्दशी सबसे महत्वपूर्ण है और महाशिवरात्रि कहलाती है ।
गरुड (1/124) , स्कन्द (1/1/32) , पद्म (6/240), अग्नि (193) आदि पुराणों में इसका वर्णन है ।
कोई भी व्यक्ति इस दिन उपवास करके बिल्व-पत्तियों से शिव की पूजा करता है और रात्रि भर 'जागर' (जागरण) करता है, शिव उसे आनन्द एवं मोक्ष प्रदान करते हैं और व्यक्ति स्वयं शिव हो जाता है ।
स्वयम्भूलिंगमभ्यर्च्य सोपवास: सजागर: ||
ईशानाय नम: ||
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आद्यं पुरुषमीशानं पुरुहूतं पुरुष्टुतम् |
ऋतमेकाक्षरं ब्रह्म व्यक्ताव्यक्तं सनातनम् ||
असच्च सदसच्चैव यद् विश्वं सदसत्परम् |
परावराणां स्रष्टारं पुराणं परमव्ययम् ||
महाभारत आदिपर्व 1/22-23
महाशिवरात्रि अर्थात् अमान्त माघ मास की कृष्णपक्ष की चतुर्दशी तिथि या पूर्णिमान्त फाल्गुन मास की कृष्ण चतुर्दशी तिथि पर की जाने वाली पूजा, व्रत, उत्सव तथा जागरण।
शिवधर्म ग्रन्थ में शिवरात्रि पर रामलीला खेले जाने की भी बात कही गई है।
कश्मीर में शिवरात्रि हररात्रि है जो बिगड़कर हेरात कही जाती है, विगत वर्ष बंदीपुरा संबल में शिव मन्दिर की सफाई, जलाभिषेक तथा प्रसाद में अखरोट वितरण भी वहाँ के मुस्लिमों ने किया था।
कहते हैं कि भोलेनाथ और उमा पार्वती का विवाह इसी तिथि को हुआ था। खगोलीय दृष्टि से सूर्य एवं चन्द्रमा के मिलन की रात्रि है तथा संवत्सर की गणना का आधार माघ अमावस्या रही है, काल गणना के हेतु से यह त्योहार चतुर्दशी से तीन दिन पहले से लेकर दो दिन बाद प्रतिपदा तक चलता था।
भारतवर्ष में धनिष्ठा नक्षत्र में उत्तरायणारम्भ होने के समय कालगणना नियम बने थे, एक हजार वर्षों में अयन सरक कर श्रवण में जा पहुँचा था। यह एक बड़ा कारण 'श्रवण' का अनेक त्योहारों से जुड़े होने में है।
इस कारण महाशिवरात्रि को कुछ ग्रन्थ त्रयोदशी तिथि से संयुक्त प्रदोष व्यापिनी चतुर्दशी तिथि ग्रहण कर मनाये जाने की बात करते हैं, इसमें कारण 'नक्षत्र का प्राधान्य' है।
चूँकि तीज-त्योहारों के मनाये जाने सम्बन्धी नियम निर्देश बहुत पहले निश्चित किये गये थे इस कारण अब कालगणना सम्बन्ध नहीं रहा।
काल के भी ईश्वर महाकालेश्वर की जय बोलते हुये उत्सव मनाइये, आशुतोष तो अवढर दानी हैं ही किसी को भी निराश नहीं करते हैं। मन्दिरों में काँच न फैलायें और न बहुत अधिक फूल पत्तियाँ ले जाना आवश्यक है केवल जल चढ़ा देने से भी शिव उतने ही प्रसन्न होते हैं।
✍🏻अत्रि विक्रमार्क अन्तर्वेदी
क्या आपलोगों को पता है कि पूर्वोत्तर की कई जनजातियों में शिव एक लोकदेवता है | अपने-अपने तरीके से मतलब अपनेवाले वर्जन में वे शिव को लोकदेवता के रूप में पूजते हैं |
बोड़ो-कछाड़ी जनजाति में शिव कृषि देवता है,जिनके लिये वे बाथौ पूजा करते हैं | उनके लोकगीतों में शिव साधारण गृहस्थ और कृषक है जैसे पड़ोस का ही कोई इंसान हो | लक्ष्मी,सरस्वती दो बेटी और गणेश,कार्तिक दो बेटें साथ ही भीम नामक गौपालक को लेकर सात लोगों के परिवार को पालने के लिये वे खेती करते हैं | यहाँ महाभारत भी मिक्स हो गया हों तो परवाह न करें बस भाव को देखें |
राभा जनजातिवालों के लिये शिव का स्थानीय नाम शिर्गीरिश देवता है | देउरी जनजातियों के लिये शिव का स्थानीय नाम कुंडी है | पार्वती का नाम है मामा | शिव-पार्वती को वे गिरा-गिरास भी बोलते हैं |
आहोम लोगों ने तो बाद में हिंदू धर्म को अपनाया | पर जब भी अपनाया शिव भगवान को अपने तरीके से लिया | राजाओं ने शिव के नाम पर बहुत से मंदिर भी बनवाये जिनके लिये स्थानीय शब्द दौल अथवा देवालय अधिक प्रचलित है | शिवसागर,नुमलीगढ़,नेघेरिटिंग आदि में स्थित शिव दौल या देवालय हैं जो आहोम राजाओं के द्वारा बनवाये गये थे |
पूरा वर्णन यहाँ एक पोस्ट में तो नहीं लिख सकती | बस सार यही है कि यहाँ की कई जनजातियों के लोक-जीवन में शिव समाया हुआ है | लोग कृषिजीवी है,सरल है तो उनकी कल्पनाओं में ईश्वर भी उन्हीं लोगों की तरह ढल गया है | तभी तो वो अपना सा लगता है |
वे जंगल में रहते हैं तो शिव का जीवन भी वैसा है | वे खेती करते हैं तो शिव भी कृषक है | वे बलि-विधान मानते हैं तो शिव के लिये की जानेवाली स्थानीय पूजा पद्धति में भी वो सब चीज़ें शामिल है |
वे संस्कृत नहीं पढ़े हैं | आर्षग्रंथों में लिखी बातें नहीं जानते हैं | पूजा पद्धति भी नहीं पता है | बस बूढ़ा गोसाईं,पगला गोसाईं,बोलिया गोसाईं,गिरा-गिरास आदि अपनी भाषा के शब्दों के नामों से वे अपनी तरह से उनकी उपासना करते हैं,मंत्र पढ़ते हैं और खुद को धार्मिक मान संतुष्ट होते हैं |
असम के हर एक ज़िले में जनजातियों के बहुत सारे शिव मंदिर हैं | उनमें से देउशाल मंदिर,वसुंधरी थान,नागशंकर मंदिर,शिंगोरी मंदिर आदि हैं | मंदिरों के ढाँचे,शिवलिंग,प्रतिमा आदि भी अलग तरह के दिख जायेंगे | उस पर एक आलेख कभी अलग से..
यहाँ तो लोग कुछ और देखने आते हैं | पर कभी ऐसे मंदिरों में आयेंगे तो आपलोगों को सुखद आश्चर्य होगा | जब देखेंगे कि जनजातीय शिव मंदिरों में जनजातीय पुरोहितों के द्वारा उनकी अपनी भाषा के मंत्र पाठ से शिव की पूजा हो रही है | हो सकता है जानकार लोग उसमें बहुत सी गलतियाँ निकालें | पर याद रखना आवश्यक है कि जनजातिवालों ने शिव को अपने हिसाब से ग्रहण किया हुआ है | या यूँ कहें शिवजी ने जनजातिवालों को उनके हिसाब से ग्रहण कर लिया है |
✍🏻राजश्री डी
ये कुछ प्राचीन शहर हैं इजराइल और यमन के।
कुछ खास इन सब में ??
खास है तभी पोस्ट कर रहा हूँ..!!
खास है इनके नाम।
पहला, दक्षिण इजराइल के प्राचीन शहर का.. नाम .. "शिवटा" (Shivta) !!
इसे बसाने वाले 'नाबातियन' ट्राइब के लोग।
ये शहर बसा है नेगेव मरुस्थल में।
इससे मात्र 43 किलोमीटर दूर और एक शहर है.. नाम है 'तेल शिवा' (Tel Sheva) या 'बीर शिवा' (Beer Sheva)।
बाइबल में एक राज्य का बड़ा नाम है.. बल्कि कई मर्तबा जिक्र भी हुआ है और वो यहूदी और इस्लाम में भी प्रचलित है।.. उस राज्य का नाम है 'शेबा' (Sheba) .. उसकी राजधानी यमन के प्राचीन शहर 'शिभम' (Shibham या Shibam) मानी जाती है, जरा नाम मे गौर करें।
ये सभी साइट्स यूनेस्को के वर्ल्ड हेरिटेज में शामिल हैं।
अरबी,हिब्रू में Sheba का मतलब टीला होता है.. लाइक शिवलिंग।
ये सभी शहर कालांतर में क्रिश्चन और इस्लामिक राज के तले आते गए और बहुत से ओरिजिनल स्ट्रक्चर समाप्त होते गए। जैसे कि हमलोग रिसेंट में अफगानिस्तान में बौद्ध स्तूप और मूर्तियों को ले कर देखे।
खैर आज जब इंडिया के मंदिरों के स्ट्रक्चर और इंजीनियरिंग की बात पुनः शुरू हुई तो हम जरा फॉरेन घूमना ही पसंद किए।.. आगे और भी है।😊
✍🏻गंगवा, खोपोली से।
शिव की सार्वभौमिकता को जानना हो तो विश्व की अनेक सभ्यताओं के प्राचीन अध्यायों का अवलोकन करना होगा। मिस्र , हड़प्पा , बेबीलोन और मेसोपोटामिया की सभ्यता में पितृ शक्ति की उपासना के प्रतीक मिले हैं। ये प्रतीक ही शिव आस्था की वैश्विकता को सिद्घ करते हैं। जहां आगमो शिव है वेदों में शिव रुद्र हैं, वहीं पुराणों में अद्र्घनारीश्वर हो जाते हैं। यह एक गंभीर आध्यात्मिक चिंतन है। नारी को शक्ति के रूप में स्वीकार किया गया। माना गया कि शिव अर्थात कल्याण, शक्ति के बिना संभव नहीं है। शक्ति के अनेक रूप हैं। प्रतीकात्मक दृष्टि से सब ज्ञान, धैर्य, वीरत्व, जिज्ञासा, क्षमा, सत्य तथा अन्य सात्विक आचरणों का प्रतिनिधित्व करते हैं।
१) प्राचीन मिस्र, नील नदी के निचले हिस्से के किनारे केन्द्रित पूर्व उत्तरी अफ्रीका की एक प्राचीन सभ्यता थी, जो अब आधुनिक देश मिस्र है।
नील नदी के उपजाऊ बाढ़ मैदान ने लोगों को एक बसी हुई कृषि अर्थव्यवस्था और अधिक परिष्कृत, केन्द्रीकृत समाज के विकास का मौका दिया, जो मानव सभ्यता के इतिहास में एक आधार बना।
5500 ई.पू. तक, नील नदी घाटी में रहने वाली छोटी जनजातियाँ संस्कृतियों की एक श्रृंखला में विकसित हुईं, जो उनके कृषि और पशुपालन पर नियंत्रण से पता चलता है और उनके मिट्टी के मूर्ति , पात्र और व्यक्तिगत वस्तुएं जैसे कंघी, कंगन और मोतियों से य स्पष्ट दिखता है की पशुाप्ति ( शिव ) ही है उन्हें पहचाना जा सकता है। ऊपरी मिस्र की इन आरंभिक संस्कृतियों में सबसे विशाल, बदारी को इसकी उच्च गुणवत्ता वाले चीनी मिट्टी की , पत्थर के उपकरण और तांबे के मार्तिओं में पशुपति शिव जोड़ी बैल ( नंदी ) उनके देवता के रूप जाना जाता है।
मिस्र में शिव : कल्याण के शिवांक के अनुसार उत्तरी अफ्रीका के इजिप्ट (मिस्र) में तथा अन्य कई प्रांतों में नंदी पर विराजमान शिव की अनेक मूर्तियां पाई गई हैं। वहां के लोग बेलपत्र और दूध से इनकी पूजा करते थे।
माउंट ऑफ ओलिव्स पर टैम्पल माउंट या हरम अल शरीफ यरुशलम में धार्मिक रूप से बहुत पवित्र स्थान है। इसकी पश्चिमी दीवार को यहूदियों का सबसे पवित्र स्थल कहा जाता है। यहूदियों की आस्था है कि इसी स्थान पर पहला यहूदी मंदिर बनाया गया था। इसी परिसर में डॉम ऑफ द रॉक और अल अक्सा मस्जिद भी है। इस मस्जिद को इस्लाम में मक्का और मदीना के बाद तीसरा सबसे पवित्र स्थल माना जाता है। यह स्थान तीन धर्मों के लिए पवित्र है- यहूदी, ईसाई और मुसलमान। यह स्थान ईसा मसीह की कर्मभूमि है और यहीं से ह. मुहम्मद स्वर्ग गए थे।
यहूदियों के गॉड : यहूदी धर्म के ईश्वर नीलवर्ण के हैं, जो शिव के रूप से मिलते-जुलते हैं। कृष्ण का रंग भी नीला बताया जाता है। यहूदी धर्म में शिवा, शिवाह होकर याहवा और फिर यहोवा हो गया। शोधकर्ताओं के अनुसार यहां यदुओं का राज था, यही यहूदी कहलाए।
✍🏻जगन्नाथ करंजे
महाशिवरात्रि की कहानी.....
आपके पूर्वानुमान पर, आपके पूर्वाग्रहों पर कोई चीज़ सही सही ना बैठे तो बड़ी समस्या होती है | इस से नैरेटिव बिल्ड करने में दिक्कत हो जाती है | आप ये नहीं कह सकते कि “मैंने तो पहले ही कहा था” तो आपके अहंकार को भी चोट पहुँचती है | ज्ञानी सिद्ध होने में दिक्कत हो जाती है | हिन्दुओं के बारे में पूर्वाग्रहियों को यही सबसे बड़ी दिक्कत रही | उनके रिलिजन के कांसेप्ट पर हम फिट नहीं आते | कई बार हमारे बारे में चुप्पी साधनी पड़ती है | महाशिवरात्रि की कहानी के साथ भी ऐसा ही है |
यही वजह है कि जैसे होलिका दहन का किस्सा सुनाया जाता है वैसे शिवरात्रि के लिए नैरेटिव बिल्ड करने की कोशिश कम होती है | ऐसे में कोशिश की जाती है कि चुप रहकर शिवरात्रि की कहानी को भुला देने की कोशिश की जाए | इस त्यौहार से जुडी कहानी छोटी सी है, और एक व्याध यानि बहेलिये या शिकारी की कहानी है | चित्रभानु नाम के इस शिकारी ने कुछ कर्ज ले रखा होता है जिसे ना चुकाने पर साहूकार उसे बंद कर देता है | संयोग से उसी दिन शिवरात्रि थी और बंद पड़ा चित्रभानु बाहर धार्मिक चर्चा कर रहे लोगों को सुन रहा होता है | शाम में जब उसे खोला गया तो वो कर्ज चुकाने का वादा करके छूटता है |
अब शिकारी था तो वो जंगल में जाकर शिकार के लिए झील के पास एक मचान बनाना शुरू करता है | इस बार किस्मत से वो बिल्व वृक्ष यानि बेल के पेड़ पर मचान बना रहा होता है जो कि शिव का प्रसाद है | मचान बनाने के लिए तोड़ी गई पत्तियां नीचे शिवलिंग पर गिर रही होती हैं | अब हिन्दुओं की कहानी है तो यहाँ अन्य जीव जंतुओं को भी मनुष्यों जैसी ही भावना, और बात-चीत में समर्थ दर्शाया जाता है | इसलिए झील पे जो पहली हिरणी आती है वो भी शिकारी को तीर चढ़ाते देख उस से बात करने लगती है।
वो हिरणी बताती है कि वो गर्भवती है इसलिए उसे अभी मारना उचित नहीं | बच्चे के जन्म तक उसे जीवनदान दिया जाना चाहिए | हिरणी वादा करती है कि प्रसव के बाद वो शिकारी के पास लौट आएगी | अब अकारण की गई भ्रूणहत्या से ठीक एक स्तर नीचे का पाप गर्भवती को मारने पर होता तो शिकारी रुक जाता है | थोड़ी देर और बीती तो दूसरी हिरणी, हिरण के बच्चों के साथ आती है | शिकारी फिर तीर चढ़ाता है लेकिन ये हिरणी भी उसे देख लेती है और वो कहती है कि उसे बच्चों को पिता के पास छोड़ कर आने का अवसर दिया जाये |
शिकारी कहता है कि वो मूर्ख नहीं कि हाथ आये शिकार को जाने दे, और हिरणी कहती है बच्चों को घर से दूर अनाथ करने का पाप उसपर आएगा | शिकारी फिर मान जाता है और हिरणी का बच्चों को घर छोड़ कर आने का वादा मानकर उसे जाने देता है | थोड़ी देर में तीसरी हिरणी आती है और वो भी शिकारी को देखकर उससे प्राणदान माँगना शुरू करती है | उसका कहना था कि उसका ऋतुकाल अभी समाप्त हुआ है इसलिए उसे पति से मिल आने का समय दिया जाए | शिकारी को पता नहीं क्या सूझा था, वो अपने बच्चों के भूखे होने वगैरह का सोचता भी है मगर फिर से हिरणी को जाने देता है |
अब तक रात का चौथा पहर हो गया था | सुबह होने ही वाली थी कि अब एक हिरण वहां पहुंचा | अब जब शिकारी तीर चढ़ाता है तो हिरण बोला कि अगर शिकारी ने तीन हिरणियों और उसके बच्चों को मार डाला है तो उसके जीने का भी कोई ख़ास मकसद नहीं बचा | इसलिए शिकारी तीर चला दे ! चित्रभानु बताता है कि तीन हिरणियां वहां आई तो थी मगर उन सब के लौट आने के वादे पर उसने सबको जाने दिया है | अब हिरण कहता है कि अगर उसे मार दिया तो तीनों हिरणियां अपना वादा तो पूरा कर नहीं पाएंगी, क्योंकि पति तो वो है, उसी से मिलने गई हैं तीनों !
जैसा कि अभ्यास से होता है, वैसे ही, बार बार भलमनसाहत दिखाने से शायद आम हिन्दुओं टाइप, शिकारी चित्रभानु को भी दया दिखाने की आदत पड़ गई थी | अब वो हिरण को भी हिरणियों से मिल कर वापिस आने की इजाजत दे देता है | अब चारों शिकारों को जाने देने वाला शिकारी सोच ही रहा होता है कि क्या करे इतने में हिरण परिवार सहित उपस्थित हो जाता है | हिन्दुओं वाले हिरण थे तो मरने की स्थिति की स्थिति में भी वादा पूरा करने चले आये | पारधी चित्रभानु भी हिन्दू ही था तो वो ऐसा होता देख कर पश्चाताप और ग्लानी से भरा अपने मचान से नीचे उतर आया |
उधर रात भर पेड़ से बेलपत्र गिरने के कारण शिव जी सोच रहे थे ये घने जंगल में पूजा कौन कर रहा है ? तो उन्होंने भी शिकारी पर नजर बना रखी थी ! शिकारी कहता नहीं मार रहा, और हिरण परिवार कहता वादा पूरा होना चाहिए, इसकी बहस हो ही रही थी कि सुबह सुबह भगवान शिव भी पूजा का फल देने प्रकट हुए | हिरण परिवार को कठिनतम परिस्थिति में भी अपना किया वादा निभाने के लिए मोक्ष मिला | शिकारी को हिंसा के त्याग और पश्चाताप के फलस्वरूप मोक्ष की प्राप्ति हुई | ये ही कहानी थोड़े बहुत अंतर के साथ सभी हिन्दू शिवरात्रि की कथा के रूप में जानते हैं |
गुजरात का सोमनाथ हो, या महाकाल उज्जैन, काशी विश्वनाथ का मंदिर हो या फिर त्रयम्बकेश्वर नासिक, बैजनाथ बिहार का मंदिर हो या सुदूर रामेश्वरम, दुर्गम हिमालय का केदारनाथ हो, नेपाल का पशुपतिनाथ या फिर मद्रास का शैल मल्लिकार्जुन हर जगह यही कथा सुनाई जायेगी | ग्रंथों से कम वास्ता रखने वाले अघोरी हों, या भयानक रूप से शिक्षित नागा सन्यासी, सब इसी कथा का श्रवन करेंगे | ये कहानी विविधता में एकता का उदाहरण भी है | बहेलिये की कहानी है, सुनने वाले ब्राह्मण भी होंगे, तो मोक्ष के अधिकार पर जात-पात के बंधन की गुंजाइश भी नहीं रहती |
हिरणियों या हिरण के शिकार से उनके बच्चों यानि अगली पीढ़ी पर असर ना हो ये भी याद दिलाया गया है तो आज के सस्टेनेबल डेवलपमेंट की भी कहानी है | चित्रभानु पेड़ पर बैठा अनजाने ही पूजा कर बैठा था, तो मंदिरों में प्रवेश के लिय ऊँची-नीची जाति की बात करने वालों को भी सुननी चाहिए | हां नैरेटिव बिल्ड करने, साधारण कहानियों में वर्ण भेद, स्त्री विरोध या हाशिये पर के वर्ग का शोषण ढूँढने की कहानी खोज रहे लोगों को थोड़ी निराशा होगी | वो शायद इसे ना पढ़ना-सुनना चाहें | चुप्पी साधकर वो इसे भुलाने या इग्नोर करने की कोशिश जारी रख सकते हैं |
बाकी शिवरात्रि है तो “भक्तों” के साथ साथ “विभक्तों” अर्थात बंटे हुए लोगों को भी शुभकामनाएं !
✍🏻आनन्द कुमार
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