योगी आदित्यनाथ - आक्रामक साधु या बेहतरीन जननायक राजनेता
- मनोज कुमार मिश्र
उत्तर प्रदेश में आज 25 मार्च को योगी आदित्यनाथ जी पुनः मुख्यमंत्री पद को शपथ लेंगे। उत्तरप्रदेश आज इतिहास बनाने जा रहा है जब कोई मुख्यमंत्री पुनः जनता के द्वारा चुनकर वापस आएगा इससे पहले ये मौका उत्तर प्रदेश ने किसी को भी नहीं दिया था। यूँ तो कई ऐसे राजनेता हुए हैं जिन्होंने के बार उत्तर प्रदेश की बागडोर संभाली यथा कांग्रेस के स्व गोविंद बल्लभ पंत, चंद्रभानु गुप्ता, नारायण दत्त तिवारी, भारतीय क्रांति दल के चौधरी चरण सिंह, बसपा की मायावती, जनता दल/समाजवादी पार्टी के मुलायम सिंह इत्यादि परंतु लगातार 5 वर्षों का शासन करने के उपरांत पुनः जनता का विश्वास जीत कर सिर्फ योगी जी ही आये हैं। उत्तर प्रदेश की राजनीति बड़ी ही उथल पुथल वाली रही है। इस प्रदेश ने इस देश को लगभग सभी प्रधानमंत्री दिए हैं एक नरसिम्हाराव या मोरारजी देसाई को छोड़कर। अतः किसी राज नेता का प्रदेश में उत्थान न केवल प्रदेश की अपितु देश को भी एक निर्णायक दिशा दे जाता है। आज के दिन बीजेपी में योगी जी की छवि प्रखरवक्ता, जुझारू सेवक एवं तुरंत फैसले लेने वाले नायक की बन गयी है जिसे जनता का अपूर्व समर्थन प्राप्त है। ज्ञात हो कि उत्तर प्रदेश में धमाकेदार वापसी के साथ ही ब्ज्प ने अपने मत प्रतिशत में भी बढ़ोतरी दर्ज की है। जहां 2017 में उसे 39.67% मत मिले थे वहीँ 2022 में 41.29% मत मिले। बीजेपी ने इस बार अपनी 50 सीटें गंवा कर भी अपने प्रभामंडल का विस्तार किया है। जीती हुई 275 सीटों में से 255 पर खुद बीजेपी ने जीती हैं जो 403 सदस्यीय विधान सभा में बहुमत के 202 के आंकड़े से 53 सीट ज्यादा है। ओमप्रकाश राजभर के योगी सरकार को समर्थन देने से इस गठबंधन में 6 सीटों की और बढ़ोत्तरी हो गयी है। इस प्रकार बीजेपी गठबंधन दो तिहाई बहुमत के साथ सरकार बना रही है।
योगी की इस प्रचंड जीत ने बहुत सारे मिथक तोड़े हैं। जो उत्तर प्रदेश हर चुनाव में मुस्लिम मतों के लिए होने वाले जमावड़े और पीर फ़क़ीर औलिया और इमाम शाही इमामों की चरण वंदना के लिए जाना जाता था वो इस बार पूरी तरह भगवामय पाया गया। वोटों के लिए राजनीतिक पार्टी के नेतागण भभूत और भस्म रमाकर मंदिर मंदिर घूमते देखे गए। कांग्रेस के नेत्री प्रियंका वाड्रा तो संस्कृत के मंत्रोच्चार भी चुनाव मंच पर करती पाई गईं। परंतु जनता ने इन नकली हिंदुओं से अपनी दूरी बनाई रखी। मुस्लिम वोट इस बार पूरी तरह अप्रासंगिक हो गया। जहकन मुस्लिम मतदाता निर्णायक भूमिका में थे वे सीटें स्वाभाविक तौर पर सपा की झोली में गईं पर जहां वे चु आवों का रुख मोड़ने की ताकत रखते थे वे सीटें इस बार बीजेपी के पास ही रहीं। यह देश की हिन्दू संस्कृति और चेतना का उभार है जो बीजेपी के लिए सहायक सिद्ध हो रहा है। उस पर योगी जी की प्रचंड प्रशासनिक छवि ने इस जीत को मूर्त रूप देने में कोई कसर नहीं रखी। कोरोना विभीषिका के इस कठिन दौर में गरीबो में मुफ्त राशन की आपूर्ति ने बहुत मदद की। कानून व्यवस्था में सुधार सभी को खुली आँखों से नज़र आया और रही सही कसर अदालती आदेशों का तोड़ निकाल कर प्रशासनिक अध्यदेशों ने कर दिया। प्रदेश में कोई बड़ा दंगा नहीं हुआ। प्रधान मंत्री आवास के वितरण में कोई धांधली नहीं हुई।
आखिर इस करिश्माई व्यक्तित्व वाले नेता की सफलता का रहस्य क्या है। जहां देश के सभी लोग मोदी जी को बेहद ईमानदार और कठोर प्रशासक के रूप में जानते है वहीं योगी जिनकी छवि मूलतः मुस्लिम वर्चस्व पर रोक लगाने वाले की है। कम ही लोग यह जानते हैं कि योगी जी गणित से स्नातकोत्तर हैं और 26 वर्ष की आयु से ही सांसद रहे हैं। गोरखपुर से 5 बार लगातार सांसद रहे योगी जी इस बार गोरखपुर से ही विधायक चुने गए हैं। अपने निडर प्रखर और दो टूक बयानों के लिए विपक्षियों के बीच हमेशा आलोचना और निंदा का पात्र बने योगी जी ने हर समस्या के मूल में जाकर उसका निदान खोजने की कोशिश की है। चाहे बच्चों में इंसेफेलाइटिस की समस्या हो या प्रदेश के गन्ना किसानों की भुगतान की समस्या, दंगे में सरकारी संपत्ति के विनाश का मामला हो या भूमि अतिक्रमण योगी जी ने अपने निर्णयों से जीवन के हरेक पहलू को छुआ है। किसी समय में विदेशी पत्र पत्रिकाओं से वायलेंट मोंक की उपाधि पाने वाले योगी जी ने अपने कार्य से बताया है कि उनकी इस देश को कितनी जरूरत है और शायद इस बात को बीजेपी का नेतृत्व भी समझ रहा है। देश के विभिन्न बीजेपी शासित प्रदेशों के मुख्यमंत्री ने योगी जी की राजनीति शुरू कर दी है चाहे वो आसाम के हेमंत विस्वा शर्मा हों या मध्यप्रदेश के मामा शिवराज सिंह या उत्तराखंड के पुष्कर सिंह धामी। आने वाले दिनों में देश की राजनीति बड़ी करकट बदलने वाली है शायद उसकी धुरी योगी के आने वाले दो साल तय करें। फिलहाल के लिए उनको मुबारकवाद और शुभकामनाएँ।
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