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साहित्य सम्मेलन में चर्चित कवयित्री डा सुमेधा पाठक की काव्य-संग्रह ‘नदी की प्रेमकथा’ का हुआ लोकार्पण|

साहित्य सम्मेलन में चर्चित कवयित्री डा सुमेधा पाठक की काव्य-संग्रह ‘नदी की प्रेमकथा’ का हुआ लोकार्पण|

महिला दिवस के अवसर पर चर्चित कवयित्री डा सुमेधा पाठक की काव्य संग्रह ‘नदी की प्रेमकथा’ का हुआ लोकार्पण | डॉ सुमेधा पाठक किसी परिचय की मोहताज नहीं है वो एक संवेदनशील और समाज में जग्रृति लानेवाली एक विदुषी साहित्यकार हैं, जिनके काव्य में प्रकृति, प्रेम और जीवन के प्रति मंजुल राग की रस-धार प्रवाहित होती रहती है। उनकी काव्य-कल्पनाओं में, प्रकृति का अत्यंत उदात्त स्थान है। उनके मानस-कुंज में प्रकृति केवल सौंदर्य ही नहीं लुटाती, वह जननी तो है ही, प्रेम भी करती है। उनकी नूतन काव्य-कृति ‘नदी की प्रेम कथा’ इसका सुंदर आख्यान प्रस्तुत करती है।यह बातें रविवार को बिहार हिन्दी साहित्य सम्मेलन में आयोजित पुस्तक लोकार्पण समारोह एवं कवि-सम्मेलन की अध्यक्षता करते हुए, सम्मेलन अध्यक्ष डा अनिल सुआलभ ने कही। डा सुलभ ने कहा कि सुमेधा जी की रचनाओं में एक दिव्य माधुर्य है और परिष्कृत चिंतन की गहराई भी, जो इनके साहित्य को गरिमापूर्ण और पठनीय बनाती हैं।पुस्तक के लोकार्पण के पश्चात अपने संबोधन में चाणक्य राष्ट्रीय विधि विश्वविद्यालय की विदुषी कुलपति न्यायमूर्ति मृदुला मिश्र ने कहा कि कवयित्री ने नारी-विमर्श को बड़ी शक्ति दी है। द्रौपदी और गांधारी जैसी स्त्री-पात्र के माध्यम से इन्होंने नारी-चेतना को सकारात्मक उत्तेजना प्रदान की है। इनकी लेखनी को सरस्वती और बल दें, इसकी प्रार्थना करती हूँ। भारतीय प्रशासनिक सेवा के अवकाश प्राप्त अधिकारी और बिहार विद्यापीठ के अध्यक्ष डा विजय प्रकाश ने कहा कि सुमेधा जी की लोकार्पित पुस्तक अत्यंत सुंदर और प्रभावशाली है। इनमे अनेक रचनाएँ हैं जो इतिहास से प्रश्न करती हैं। इन्हें प्रश्नवाचक कविताएँ कहनी चाहिए। यह काव्य की एक नई विधा हो सकती है।वरिष्ठ साहित्यकार भगवती प्रसाद द्विवेदी ने पुस्तक पर अपने विचार रखते हुए कहा कि स्त्री जननी है। इसलिए वह स्वाभाविक रूप से सर्जिका है। इसलिए प्रत्येक कवि का मन स्त्री का होना चाहिए। लेखिका का मत है कि वह स्वयं-सिद्धा बने। उसे किसी पुरुष-वैशाखी की आवश्यकता न हो। इन्होंने गहरी संवेदना के साथ प्रतिकार को स्वर दिया है।विशिष्ट अतिथि और अनुग्रह नारायण महाविद्यालय में हिन्दी विभाग के अध्यक्ष डा कलानाथ मिश्र, विदुषी कवयित्री और प्राध्यापिका डा मंगला रानी, भारत सरकार के हिन्दी सलाहकार समिति के सदस्य वीरेंद्र कुमार यादव, डा मधु वर्मा, सुनील कुमार पाठक तथा वरिष्ठ पत्रकार ज्ञानवर्द्धन मिश्र ने भी अपने विचार व्यक्त किए।इस अवसर पर आयोजित कवि सम्मेलन में सम्मेलन के उपाध्यक्ष मृत्युंजय मिश्र ‘करुणेश’, डा शंकर प्रसाद, कवि बच्चा ठाकुर, कवयित्री आराधना प्रसाद, डा ब्रह्मानंद पाण्डेय, भावना शेखर, डा करुणा पीटर ‘कमल’, डा अर्चना त्रिपाठी, डा शालिनी पांडेय, डा सुषमा कुमारी, ओम् प्रकाश पांडेय ‘प्रकाश’, कुमार अनुपम, डा शकुंतला अरुण, डा रेखा भारती, कौसर कोल्हुआ कमालपुरी, पं गणेश झा, डा विनय कुमार विष्णुपुरी, जय प्रकाश पुजारी, डा प्रणव पराग, अर्जुन प्रसाद सिंह, श्याम बिहारी प्रभाकर, डा विजय कुमार पाण्डेय, नूतन सिन्हा आदि कवियों ने अपने काव्य-पाठ से उत्सव को और भी रसमय बना दिया। अतिथियों का स्वागत सम्मेलन के प्रधानमंत्री डा शिववंश पाण्डेय ने तथा धन्यवाद-ज्ञापन कृष्णरंजन सिंह ने किया। मंच का संचालन कवि सुनील कुमार दूबे ने किया।समारोह में, सम्मेलन के भवन अभिरक्षक डा नागेश्वर प्रसाद यादव, नरेंद्र कुमार झा, बाँके बिहारी साव, डा अरुण कुमार मिश्र, डा वीना कुमारी, डा एच पी सिंह, हृदय नारायण झा, संगम कुमार रंजन, राकेश कुमार मिश्र, शम्मी कपूर, अम्बरीष कांत समेत बड़ी संख्या में प्रबुद्धजन उपस्थित थे।
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