वर्तमान का कबीर
दूजा नहीं कबीर जगत में, आडंबर पर चोट करे,
घर की चाकी पूजन कहता, मूर्ति पूजा विरोध करे।
मांस मदिरा कहे त्यागना, हिंसा मानवता पर भारी,
लिये लुकाठी खड़ा आंगना, जोर-जोर से शोर करे।
15वीं शती के महान संत कबीर ऐसे काल में अवतरित हुए जब इस्लाम व सनातन धर्म के अनुयायियों में संघर्ष चरम पर था। तब कबीर ने मध्य मार्ग का चयन किया। कबीर के बारे में कहा जाता है कि वह पढ़े-लिखे नही थे यानी शाब्दिक ज्ञान से वंचित थे परंतु व्यक्तिगत आध्यात्मिक, अनुभव व विचारों की दिव्यता जिसे वह सरल भाषा में व्यक्त करते थे, उनकी वाणी से फूटते थे तब उनके शब्द ही कविता बन जाते थे। आधुनिक काल में कबीर की वाणी पर अनेकों शोध व अन्य कार्य जारी हैं। परन्तु कबीर की वाणी की तरह ही अपनी दो टूक बात को दोहा शैली में प्रस्तुत कर पुनः समाज को जागृत करने का प्रयास संभवतः इससे पूर्व किसी ने नहीं किया होगा। जी हां यहां चर्चा हो रही है "दूजा नहीं कबीर" दोहा संग्रह की जिसके रचयिता हैं भिवानी हरियाणा के डॉ मनोज भारत। ग्राम सांवड तहसील चरखी दादरी में जन्मे मनोज जी का रचना संसार बहुत व्यापक है। श्रीमद्भागवत गीता जैसे महान ग्रंथ का काव्य रूपांतरण सहित उनके हिस्से में अनेकों अनेक ऐसी कृतियां हैं जिन पर उन्हें हरियाणा साहित्य अकादमी से सम्मानित किया गया है। 2019 में प्रकाशित "दूजा नहीं कबीर" भी उनकी ऐसी ही एक कृति है जिसे पुर्ण दोहा शैली में लिखा गया है। इस संग्रह के दोहों को 34 शीर्षकों में बांटा गया है, जिसमें रिश्ते- समाज, भाषा- प्रेम, गांव- त्यौहार, मौसम व लोकतंत्र यानी सभी विषयों पर लिखा गया है।
कभी हरियाणा में बेटों की तुलना में बेटियों की संख्या कम होती थी यानी या कहें कि वहां पर कन्या हत्या अथवा कन्या भ्रूण हत्या हुआ करती थी। तब कबीर की भांति समाज को सचेत करते हुए डाक्टर मनोज कहते हैं-
बेटा लेता जन्म है, बेटी ले अवतार,
सौ जन्मों के पुण्य से, पाता है परिवार।
पिता को परिवार की धुरी यूं ही नहीं कहा जाता कभी हमने भी कहा था--
अंदर से कोमल भये और बाहर बने कठोर,
पिता अकेला जीव है, जिसका और न ठौर।
उसी पिता की महिमा तथा चिंताओं का वर्णन करते हुए मनोज जी कहते हैं--
जब दर्पण के सामने, बेटी करे सिंगार, बाबुल के मुख पर तभी, बढी लकीरें चार।
कुल कुटुम्ब संतान हित, पिसता रहता मौन,
देता सब मांगे बिना, देव पिता सा कौन?
जिस प्रकार कबीर ने समाज के अंदर व्याप्त हर विषय पर अपनी आवाज बुलंद की उसी प्रकार मनोज जी की लेखनी ने भी प्रत्येक विषय को छुआ है। पत्नी को भी अपने दोहों में महिमामंडन करते हुते मनोज जी कहते हैं-
तात कभी बेटी सखी, ब्रह्मा विष्णु महेश,
मां सी देवों में बड़ी, पत्नी सदा सुरेश।
डॉ भारत ने नारी, प्रेम, परिवार आदि सभी विषयों को इस पुस्तक में स्थान दिया है। आचार्य चाणक्य को नीतिशास्त्र का रचियता माना जाता है। उन्हीं नीति की बातों को दोहों में समेट कर जन मानस को संदेश देने का सकारात्मक प्रयास देखिए--
तू-तू मैं- मैं में अगर, आ जाए जो मौन, एक हाथ ताली नहीं, झगड़े का फिर कौन?
कबीर की भांति ही डॉ मनोज जी निरंतर सुधार की बात करते हैं तभी तो वह बच्चों को सुलेख के लिए प्रेरित करते हुए कहते हैं कि
अक्षर सीधी रेख में, बिल्कुल एक समान,
मानक मोहक वर्ण ही, लिखिए देकर ध्यान।
बार-बार जी ना भरे, कितना पढ़ कर देख,
ऐसा होना चाहिए, सुंदर सुखकर लेख।
डॉ मनोज जी दोहा छंद के सशक्त हस्ताक्षर हैं। यह सच है की दोहा छंद भाव दृष्टि से अत्यंत दुसाध्य छंद है। मगर यह भी तो सच है कि अगर साधक कुछ करने की ठान ले तो कोई भी कार्य दुसाध्य हो ही नहीं सकता। जैसा कि उन्होंने स्वयं "आत्मिका" में लिखा है कि "भिवानी की धरती साहित्यक उर्वरा है। अनेक साहित्य मनीषियों ने अपनी रचनाओं से साहित्य क्षितिज पर अपना नाम दर्ज किया है।"
और आज भिवानी के साहित्य क्षितिज पर एक ध्रुव तारे के रूप में डॉ मनोज भारत का नाम भी अंकित हो गया है। श्री देवेंद्र देव मिर्जापुरी के शब्दों में कहूं तो "डॉ मनोज भारत में अपने काव्य ग्रंथ में दोहों के माध्यम से भाव व्यंजना के साहित्यक उपवन में शब्द- रस, सौरभ बिखेर कर एक अनूठा काव्य मां वाणी को समर्पित किया है जो भविष्य के साहित्यक अनुचरों के लिए एक प्रेरणा स्तंभ के रूप में कार्य करेगा।"
"दूजा नहीं कबीर" दोहा संग्रह का साहित्य जगत में अभिनंदन होगा, ऐसा हमारा पूर्ण विश्वास है।
शुभकामनाओं के साथ
डॉ अ कीर्तिवर्धन ,विद्या लक्ष्मी निकेतन,53 महालक्ष्मी एनक्लेव ,मुजफ्फरनगर 25100 00 उ प्र
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