अज्ञेय के जन्म दिवस पर विशेष...
हिंदी साहित्य में प्रयोगवादी काव्य धारा के प्रवर्तक अज्ञेय:-वेद प्रकाश तिवारी
समकालीन भारतीय साहित्य में सच्चिदानंद हीरानंद वात्स्यायन 'अज्ञेय' एक चमकते हुए सितारे की तरह हैं । उनका समग्र लेखन दूर से ही चमकता है । हलांकि अज्ञेय को दक्षिणपंथी लेखक के रूप में देखा जाता है । इस आधार पर कुछ प्रगतिशील लोगों द्वारा उनकी आलोचना भी की जाती है । मगर इसके बावजूद अज्ञेय के लेखन के आगे कोई टिकता नहीं है । कविता हो कहानी हो, उपन्यास हो या साहित्य की अन्य विधायें अज्ञेय ने भरपूर लेखन किया है और जितनी भी जितना भी लिखा है उसका खास महत्व है । इसलिए उनके आलोचक भी उनको खुलकर न सही मगर मन ही मन उनको स्वीकारें बिना नहीं रह सकते । अज्ञेय एक प्रतिभा की तरह आए आगे और जो कुछ उन्होंने हिंदी साहित्य को दिया वह इतिहास बन गया । हिन्दी साहित्य में प्रयोगवादी काव्यधारा के प्रवर्तक के रूप में अज्ञेय का महत्वपूर्ण स्थान है। वे एक साथ कथाकार, ललित-निबन्धकार, अध्यापक और संपादक के रूप में जाने जाते हैं। तार सप्तक के प्रकाशन से उन्होंने जिस प्रयोगवादी काव्यधारा का श्रीगणेश किया, आगे चलकर उसी का विकास ‘ नई कविता ‘ के रूप में हुआ ।
अज्ञेय जी के पिता पण्डित हीरानंद शास्त्री प्राचीन लिपियों के विशेषज्ञ थे। इनका बचपन इनके पिता की नौकरी के साथ कई स्थानों की परिक्रमा करते हुए बीता। कुशीनगर में अज्ञेय जी का जन्म 7 मार्च, 1911 को हुआ ।
लखनऊ, श्रीनगर, जम्मू घूमते हुए इनका परिवार 1919 में नालंदा पहुँचा। नालंदा में अज्ञेय के पिता ने अज्ञेय से हिन्दी लिखवाना शुरू किया। इसके बाद 1921 में अज्ञेय का परिवार ऊटी पहुँचा ऊटी में अज्ञेय के पिता ने अज्ञेय का यज्ञोपवीत कराया और अज्ञेय को वात्स्यायन कुलनाम दिया।
1942 में द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान , वह भारतीय सेना में शामिल हो गए और एक लड़ाकू अधिकारी के रूप में कोहिमा फ्रंट में भेजे गए।उन्होंने 1946 में सेना छोड़ दी। वे कुछ समय केलिए मेरठ ( उत्तर प्रदेश ) में रहे और स्थानीय साहित्यिक समूहों में सक्रिय रहे। इस अवधि के दौरान, उन्होंने अन्य लेखकों के अंग्रेजी में कई अनुवाद प्रकाशित किए, और उनकी अपनी कविताओं, जेल के दिनों और अन्य कविताओं का एक संग्रह प्रकाशित किया । अज्ञेय ने 1940 में संतोष मलिक से शादी की, और 1945 में उन्हें तलाक दे दिया। उन्होंने 7 जुलाई 1956 को कपिला वात्स्यायन से शादी की । 1969 में वे अलग हो गए। 4 अप्रैल 1987 को 76 साल की उम्र में नई दिल्ली में उनका निधन हो गया।
अज्ञेय के अपने अनेक काव्य – संग्रह हैं , जिनमें प्रमुख हैं – चिन्ता , इत्यलम , भग्नदूत , हरी घास पर क्षणभर ,अरी ओ करूणा प्रभामय , बाबरा अहेरी , इन्द्रधनु रौंदे हुए हैं आंगन के पार बार ।
उनकी एक प्रसिद्ध कविता है-
सांप
सांप तुम सभ्य तो हुए नहीं
नगर में बसना भी तुम्हे
नहीं आया
एक बात पूछूं--(उतर दोगे?)
तब कैसे सीखा डसना----विष कहाँ से पाया ?
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