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होली

होली 

                उषा किरण श्रीवास्तव 


नये सालों के स्वागत का ये
 बस शुरूआत है होली ,
कि अंतर्मन में खुशियों से
 भरी उल्लास है होली ।

चरणों में चढाते देवता 
और देवियों को हम ,
फिर एक दूजे में मिल खो
 जाते हैं गुलाल की होली, 
नये सालों,,,,,,,,,,,,

न जाने कब से चलती आ
 रही त्योहार ये होली, 
सनातन धर्म संस्कृति की है
 पहचान ये होली, 
नये सालों,,,,,,,,,,,,,,,

प्रकृति ने भी छेडा है  
बसंती राग धरती पर ,
 विरासत में मिली है पूर्वजों 
से आज ये होली, 
नये सालों,,,,,,,,,,,,,,,,,,,

चलो खुशियां मनाये और
मिल के फाग गाऐ हम, 
बडे सौभाग्य से हमको
 मिली संस्कार की टोली, 
नये सालों,,,,,,,,,,,,,,,,,
कि अंतर्मन,,,,,,,,,,,,,, 
 
मुजफ्फरपुर, बिहार  ।
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