चैत्र नवरात्र पर शक्ति आराधना
देवी आराधना से पूर्व होती है कलश स्थापना
(चक्षु स्वामी-हिन्दुस्तान समाचार फीचर सेवा)
भारतीय संस्कृति में नारी को हमेशा सम्मान मिला है। इसीलिए जहां देवताओं का पराक्रम भी पराजित हो जाता है, वहां देवी की शक्ति असुरों और दैत्यों का विनाश करती है। वर्ष में दो नवरात्र होती हैं, जब शक्ति की विधिवत आराधना की जाती है। पहली नवरात्र चैत्र शुक्ल पक्ष प्रतिपदा से शुरू होती है। भारतीय वर्ष का प्रारम्भ भी इसी तिथि से होता है। माना जाता है कि ब्रह्मा जी ने सृष्टि का निर्माण चैत्र शुक्ल पक्ष प्रतिपदा से ही प्रारम्भ किया था। दूसरी नवरात्र शारदीय नवरात्र कहलाती है जो आश्विन महीने के शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा से प्रारम्भ होती है। इस वर्ष चैत्र नवरात्र 2 अप्रैल शनिवार से प्रारम्भ हो रही है। इसी दिन कलश की स्थापना होगी और माता शैलपुत्री की पूजा की जाएगी। तीन अप्रैल रविवार को माँ ब्रह्मचारिणी की पूजा होगी जबकि तीसरे दिन चार अप्रैल को माँ चन्द्रघंटा की आराधना की जाएगी। चतुर्थ नवरात्र अर्थात् 5 अप्रैल मंगलवार के तमाम श्रद्धालु हनुमान जी का भी व्रत रखेंगे। साथ ही माता कूष्मांडा की आराधना की जाएगी। इसी प्रकार 6 अप्रैल को माता स्कंदमाता, 7 अप्रैल को माता महागौरी और 10 अप्रैल रविवार को माता सिद्धिदात्री की उपासना की जाएगी। इस बीच अष्टमी को तमाम श्रद्धालु महागौरी की पूजा के बाद हवन करके कन्याओं को भोजन कराते हैं जबकि तमाम श्रद्धालु नवमी को हवन करके कन्या भोज का आयोजन करते हैं।
देवी उपासना से पूर्व कलश स्थापना की जाती है। इसके लिए शुभ मुहूर्त भी देखा जाता है।
मनवांछित फल की प्राप्ति के लिए बहुत-से लोग पूरे नौ दिन तक उपवास भी रखते हैं। नवमी के दिन नौ कन्याओं को जिन्हें माँ दुर्गा के नौ स्वरूपों के समान माना जाता है, श्रद्धा से भोजन कराया जाता है और दक्षिणा आदि दी जाती है। चैत्र नवरात्र में लोग लगातार नौ दिनों तक देवी की पूजा और उपवास करते हैं और दसवें दिन कन्या पूजन करने के पश्चात् उपवास खोलते हैं। देवी दुर्गा की पूजा गुप्त नवरात्र में भी की जाती है। आषाढ़ और माघ माह के शुक्ल पक्ष में पड़ने वाले इस नवरात्र को गुप्त नवरात्र कहते हैं। हालांकि अधिकांश लोगों को न तो इसकी जानकारी है और न ही वो गुप्त नवरात्र को मनाते लेकिन तंत्र साधना और वशीकरण आदि में विश्वास रखने या उसे इस्तेमाल करने वालों के लिए गुप्त नवरात्र बहुत ज्यादा महत्व रखती है। तांत्रिक इस दौरान देवी मां को प्रसन्न करने के लिए उनकी साधना भी करते हैं।
चैत्र नवरात्रि हिंदुओं द्वारा मनाया जाने वाला एक बेहद प्रमुख पर्व है। इसमें देवी दुर्गा के नौ अलग-अलग रूप- शैलपुत्री, ब्रह्मचारिणी, चंद्रघंटा, कुष्मांडा, स्कंदमाता, कात्यायनी, कालरात्रि, महागौरी और सिद्धिदात्रि की बहुत हीं भव्य तरीके से पूजा की जाती है। नवरात्र में माँ दुर्गा को खुश करने के लिए उनके नौ रूपों की पूजा-अर्चना और पाठ किया जाता है। इस पाठ में देवी के नौ रूपों के अवतरित होने और उनके द्वारा दुष्टों के संहार का पूरा विवरण है। कहते है नवरात्र में माता का पाठ करने से देवी भगवती की खास कृपा होती है। अगर देखा जाए तो एक साल में चैत्र, आषाढ़, आश्विन और माघ के महीनों में कुल मिलाकर नवरात्र चार बार आते हैं लेकिन हिन्दू पंचांग के अनुसार नवरात्र का त्योहार वर्ष भर में दो बार मनाया जाता है। चैत्र माह में आने वाली नवरात्र को चैत्र नवरात्र और शरद ऋतु में आने वाली नवरात्र को शारदीय नवरात्र के नाम से जाना जाता है। चैत्र नवरात्र हिन्दू धर्म के धार्मिक पर्वों में से पहला पर्व है। इससे पूर्व कुछ स्थानों पर होली के आठवें दिन शीतला अष्टमी की पूजा की जाती है। इसके बाद चैत्र नवरात्र को अधिकांश हिन्दू परिवार बड़ी ही श्रद्धा के साथ मनाते हैं। हिन्दू पंचांग कैलेंडर के अनुसार नए वर्ष के प्रारंभ से राम नवमी तक इस पर्व को मनाया जाता है। इसी नवरात्र से नव संवत्सर का प्रारम्भ होता है। नवरात्र के नौवंे दिन रामनवमी मनायी जाती है। इसी दिन अयोध्या में राजा दशरथ के घर भगवान राम ने अवतार लिया था। (
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