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असम-मेघालय विवाद का समाधान

असम-मेघालय विवाद का समाधान

(अशोक त्रिपाठी-हिन्दुस्तान समाचार फीचर सेवा)

हमारे देश की पूर्वोत्तर सीमा बहुत संवेदनशील है। एक तरफ साम्राज्यवादी चीन है तो दूसरी तरफ बांग्लादेश। इनके बीच असम और मेघालय पिछले 50 साल से सीमा विवाद में उलझे हुए थे। केन्द्रीय गृहमंत्री अमित शाह को एक गौरव और मिला है। इससे पूर्व उनके कार्यकाल में ही जम्मू-कश्मीर से धारा 370 को निष्प्रभावी किया जा चुका है। नागरिकता कानून और समान नागरिक संहिता की हवा भी चल रही है। इसी के बीच गृहमंत्री अमित शाह ने असम और मेघालय के मुख्यमंत्रियों को एक मेज पर बैठाकर सीमा विवाद का पटाक्षेप करा दिया। यह विवाद 1972 में उस समय शुरू हुआ था जब मेघालय को असम स्टेट से अलग कर दिया गया था। दोनों राज्य 884.9 किलोमीटर की लम्बी सीमा को साझा करते हैं। अलग राज्य बनाये जाने के बाद ऊपरी ताराबरी, गजांग रिजर्व फारेस्ट, हाहिम, लेगपोह, बोरदुआर, बोकलापारा, नौगवा, मातमूर खानापारा-पिलंग कोटा, देश देमोरिया ब्लाक- एक और दो, खंडुली और रेटाचेरा में भूमि विवाद चल रहा था। विवाद के दौरान हिंसा की घटनाएं भी हो चुकी हैं। सीमा विवाद सुलझाना बहुत जरूरी हो गया है क्योंकि असम-मिजोरम सीमा विवाद में ही गत वर्ष 26 जुलाई (2021) को भीषण हिंसा हुई थी। इसमें 6 जवानों की मौत हो गयी थी। असम के मुख्यमंत्री हिमंता विस्वासरमा और मेघालय के मुख्यमंत्री कोनराइड संगमा को समझौते का पालन करना होगा।

लंबे अरसे के बाद पूर्वोत्तर के इन दोनों राज्यों के बीच सीमा विवाद पर जारी वार्ता सफल हुई है। मेघालय के मुख्यमंत्री कोनराड के संगमा ने इस बैठक के बारे में मीडिया को बताया था, मुझे एक आधिकारिक सूचना मिली है कि गृह मंत्री अमित शाह ने 29 मार्च को शाम साढ़े चार बजे इस बैठक की तारीख तय की है। यह पत्र सीधे गृह मंत्रालय के अतिरिक्त सचिव की ओर से आया है। पूर्वोत्तर के इन दोनों राज्यों ने 12 विवादित स्थानों में से छह में सीमा विवाद को सुलझाने के लिए इसी साल 29 जनवरी को एक अंतर-राज्य सीमा समझौते पर हस्ताक्षर किए थे। तब दोनों राज्यों के मुख्यमंत्रियों ने भी केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह के साथ संयुक्त बैठक की थी। तय किया गया कि अगली बैठक में इस सीमा विवाद समझौते को अंतिम रूप देने को लेकर फैसला लिया जाएगा। दोनों मुख्यमंत्रियों ने सीमा विवाद को लेकर गृह मंत्री अमित शाह को जो सिफारिशें सौंपी थीं, उसके मुताबिक कुल 36.79 वर्ग किलोमीटर जमीन में से असम अपने पास लगभग आधी यानी 18.51 वर्ग किलोमीटर विवादित भूमि रखेगा और बाकी 18.28 वर्ग किलोमीटर जमीन मेघालय को देगा। मेघालय को 1972 में असम से अलग राज्य के रूप में बनाया गया था और इसने असम पुनर्गठन अधिनियम, 1971 को चुनौती दी थी, जिससे साझा 884.9 किलोमीटर लंबी सीमा के विभिन्न हिस्सों में 12 क्षेत्रों से जुड़े विवाद पैदा हुए थे। भारत में जितने भी राज्यों का गठन हुआ था वह भाषा के आधार पर हुआ था लेकिन पूर्वोत्तर में अलग राज्यों का गठन पहाड़ियों की स्थलाकृति के आधार पर हुआ। लिहाजा जो अधिसूचित जिले की सीमा थी वो उस समय की आबादी के बीच से गुजरी थी। अर्थात मेघालय के खासी और गारो समुदाय के काफी लोग मैदानी इलाके में रह गए थे। बाद में इन लोगों के विकास को लेकर विवाद शुरू हो गया। ऐसे लोग भी है जो असम की जमीन पर बसे हुए हैं लेकिन उनका नाम मेघालय की मतदाता सूची में है। इस तरह नक्शे में भी कोई सुधार नहीं किया गया। इन्हीं कारणों से लंगपीह में बड़ी हिंसा हुई और इस घटना के बाद ही दोनों राज्यों के बीच सीमा विवाद को लेकर वार्ता की शुरुआत हुई। दरअसल दोनों राज्यों के बीच सीमा विवाद के कारण अतीत में कई हिंसक घटनाएं हुई हैं। 14 मई 2010 को असम के कामरूप जिले की सीमा से सटे पश्चिमी खासी हिल्स जिले के लंगपीह में असम पुलिस के जवानों द्वारा कथित रूप से की गई गोलीबारी में खासी समुदाय के चार ग्रामीणों की मौत हो गई थी, जबकि 12 अन्य घायल हो गए थे। उस घटना के बाद दोनों राज्यों के मुख्यमंत्रियों के बीच सीमा विवाद के मसले पर बैठक हुई और केंद्र ने सीमा विवाद को निपटाने का फैसला दोनों राज्यों पर छोड़ दिया था।

असम और मेघालय ने उनके विवादित क्षेत्रों पर दावों और काउंटर दावों की जांच करने के लिए 1985 में भारत के सेवानिवृत्त मुख्य न्यायाधीश वाई वी चंद्रचूड़ की अध्यक्षता में एक कमेटी का गठन किया गया था। राज्य के प्रस्तुत नक्शे के आधार पर चंद्रचूड़ कमेटी ने जो सीमांकन किया था उसके आधार पर असम ने लंगपीह पर अपना दावा किया लेकिन उसके बाद मेघालय ने तत्कालीन यूनाइटेड खासी और जयंतिया हिल्स जिला परिषद से उपलब्ध कराए गए नक्शे के आधार पर चंद्रचूड़ कमेटी की सिफारिशों को खारिज कर दिया था। दोनों राज्यों के बीच सीमा विवाद इतना गहरा था कि असम पर जहां विवादित इन क्षेत्रों पर अपने पुश्तैनी दावों के आधार पर पुलिस चैकियां स्थापित करने के आरोप लगे थे वहीं मेघालय ने गुवाहाटी में कोइनाधोरा हिल पर मौजूद तत्कालीन मुख्यमंत्री तरुण गोगोई के सरकारी आवास को अपनी जमीन पर बता दिया था।

बहरहाल, असम-मेघालय के बीच सीमा विवाद को लेकर बातचीत पहले से की जा रही थी लेकिन अब केंद्र और असम में बीजेपी की सरकार है और मेघालय में नेशनल पीपल्स पार्टी की सरकार है जो बीजेपी के साथ है। इसलिए सीमा विवाद को सुलझाने का सही मौका मिला।

असम के साथ मिजोरम, नागालैंड और अरुणाचल प्रदेश की विवादास्पद सीमाओं को लेकर भी दोनों ओर से काफी हिंसा सामने आई है। पिछले साल 26 जुलाई को असम-मिजोरम सीमा पर अब तक की सबसे भीषण हिंसा में असम पुलिस के छह जवानों की मौत हो गई थी और दोनों पड़ोसी राज्यों के लगभग 100 नागरिक और सुरक्षाकर्मी घायल हो गए थे। जांच और विचार के लिए 31 जनवरी को दोनों राज्यों के मुख्यमंत्रियों द्वारा गृह मंत्रालय को मसौदा प्रस्ताव प्रस्तुत करने के दो महीने बाद असम और मेघालय के बीच समझौता ज्ञापन पर हस्ताक्षर किए गए।

असम के सीएम हिमंत बिस्वा सरमा कहते हैं कि अंतरराज्यीय सीमा को लेकर हमारे बीच विवाद के 12 क्षेत्र थे। विवाद के 6 क्षेत्रों का समाधान किया गया है। वहीं, मेघालय के सीएम कोनराड संगमा ने कहा कि सबसे पहले मैं गृह मंत्री अमित शाह को धन्यवाद देना चाहता हूं कि उन्होंने हमें पूर्वोत्तर राज्यों में सीमा विवादों को सुलझाने का निर्देश दिया। आज संकल्प का पहला चरण हो चुका है। यह असम के सीएम हिमंत बिस्वा सरमा के कारण ही संभव हो सका। मेघालय के सीएम ने कहा कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और गृह मंत्री अमित शाह की ओर से सीमा विवाद के हल के लिए जोर दिया गया था। वे चाहते थे कि असम-मेघालय सीमा विवाह का हल हो जाए। क्योंकि अगर भारत और बांग्लादेश सीमा मुद्दों को हल कर सकते हैं तो राज्य क्यों नहीं कर सकते। यह प्रक्रिया लंबे समय से चल रही थी। सबने अपना-अपना काम किया, अपने-अपने तरीके से योगदान दिया। केंद्र और दोनों राज्य सरकारों द्वारा पिछले कुछ वर्षों में इस मामले में अच्छी प्रगति की गई।कोनराड संगमा ने कहा कि सीमा विवाद पिछले 50 वर्षों से है। हम इस साल अपने राज्य की स्वर्ण जयंती मना रहे हैं। 50 साल बाद भी यह मुद्दा बना हुआ था। समाज का एक बड़ा वर्ग इसका समाधान चाहता है। इसलिए हम अमित शाह और असम के सीएम सरमा के बहुत आभारी हैं।
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