सनातन धर्म
धर्म ग्रंथ सिखाते हमें
सभ्यता संस्कार
आधुनिकता की दौड़ में
क्यों भूल गए व्यवहार
धर्म के ठेकेदारों ने
कुछ अधर्मी गद्दारों ने
आडंबर रचने वालों ने
सच्चाई से बचने वालों ने
आदर्शों को रखा ताक पे
जैसे कांटा लगा आंख में
आदर भाव का नाम नहीं फिर
पुनीत पावन काम नहीं फिर
यज्ञ हवन जप पूजा होती
संकीर्तन होता अविराम
सुरभित मन का कोना कोना
घर बनता वृंदावन धाम
राम-राम हर जुबां पे रहता
सच के सिवा कुछ न कहता
बड़ो का हो आदर सत्कार
भावी पीढ़ी को मिले संस्कार
गौमाता की जहां हो सेवा
मां के आशीषों में मेवा
बुजुर्गों का होता सम्मान
अपना भारत तभी महान
जहां होता नारी सम्मान
अतिथि होता देव समान
सिखाता सनातन धर्म हमारा
धीरज धर्म अरू नीति ज्ञान
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