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मुल्तान (वर्तमान पाकिस्तान) का वह मंदिर जहाँ से होली की शुरुआत हुई, अब खंडहर बन चुका है;:-लेखक - अतुल मालवीय

मुल्तान (वर्तमान पाकिस्तान) का वह मंदिर जहाँ से होली की शुरुआत हुई, अब खंडहर बन चुका है;:-लेखक - अतुल मालवीय

क्या बात है कि हस्ती मिटती जा रही है हमारी, क्यों हम नहीं बचा पा रहे नामोनिशां हमारा?
मुहम्मद बिन कासिम ने मुल्तान के सूर्य मंदिर स्थित 330 खजानों से 13300 मन सोना लूटा;
किस तरह “सूफी संस्कृति” सनातन धर्म को नष्ट कर इस्लाम की पोषक बनी?
वर्तमान में पाकिस्तान के अंतर्गत पंजाब का “मुल्तान” (संस्कृत के मूलस्थान का अपभ्रंश) एक समय हिंदू संस्कृति का गढ़ था| इसे कश्यप पुरी भी कहा जाता था| बारहमासी पर्वतीय नदियों से अभिसिंचित इसकी शस्य श्यामला भूमि रत्नगर्भा थी| लहलहाते खेत जैसे सोना उगला करते थे| आर्य संस्कृति जितनी यहाँ फलीफूली, शायद ही अन्यत्र किसी स्थान पर विकसित हुई हो| देवालयों में हो रहे पूजापाठ, घाटों पर स्नान कर चंदन और त्रिपुंड लगाये लोगों की संपन्नता देखते ही बनती| हिंदुओं के इस पवित्र तीर्थस्थान में जब भारत के कोने कोने से यात्री आते तो इस नगर की भव्यता और समृद्धि देखकर ईर्ष्या भी करते और लौटकर अपने अपने नगरों, गाँवों में जाकर इसका बखान करते हुए फूले नहीं समाते थे|
ऐसी मान्यता है कि भगवान विष्णु के परम भक्त प्रह्लाद को मारने के लिए उसके पिता और विष्णु को अपना सबसे बड़ा दुश्मन समझने वाले असुरराज हिरण्यकश्यप ने आग में जलाने के लिए जिस स्थान पर अपनी बहिन “होलिका” को चिता में प्रह्लाद को लेकर प्रवेश कराया वह यहीं मुल्तान में स्थित है| जैसा कि सर्वविदित है “होलिका दहन” की परम्परा की शुरुआत इसी प्रसंग से हुई| भगवान विष्णु के नृसिंह अवतार द्वारा हिरण्यकश्यप का वध किये जाने के उपरांत “भक्त प्रह्लाद” ने होलिका दहन वाले स्थान पर एक भव्य विष्णु मंदिर का निर्माण कराया जो युगों युगों तक सनातन धर्मियों की श्रद्धा का केंद्र बना रहा|
आठवीं शताब्दी के प्रारंभ से ही अरब से आये बर्बर आक्रमणकारी “मुहम्मद बिन कासिम” ने मुल्तान और सटे हुए सिंध के क्षेत्र पर न सिर्फ हमले किये बल्कि नागरिकों का नरसंहार शुरू कर दिया| हिंदू राजा हुरंकास का बनाया हुआ विशाल प्राचीन “सूर्य मंदिर” इन बर्बर लुटेरों का पहला निशाना बना| तत्कालीन राजा जेसुबिन ने यथाशक्ति इस मंदिर और मुल्तान को बचाने का प्रयास किया परंतु वीरगति को प्राप्त हुए| इतिहासकारों का आकलन है कि इसी सूर्य मंदिर प्रांगण में पानी का एक ऐसा विशाल फव्वारा बना हुआ था जिसकी सैकड़ों धाराएं पैंतीस फुट ऊंचे तक जाकर वापिस आती थीं| मुहम्मद बिन कासिम ने इसी फव्वारे को खोदकर उसके नीचे तीस अलग अलग चैम्बरों में से खज़ाना निकाला तो उसकी आँखें फटी की फटी रह गयीं| एक दो या सैकड़ों नहीं पूरा तेरह हज़ार तीन सौ मन सोना इन खजानों में से निकला जिसे वर्तमान ईराक के बसरा शहर भिजवा दिया गया|
मूर्तिभंजक बर्बर हमलावरों ने न सिर्फ मुल्तान (मूलस्थान) की सांस्कृतिक एवं धार्मिक पहचान को मटियामेट कर दिया बल्कि वहाँ कत्लेआम मचा दिया| हज़ारों निरीह नागरिक मारे गए, बच्चियों और महिलाओं को अगवा कर लिया गया उन्हें संपत्ति की तरह लूटकर बंटवारा कर लिया, शहर में बलात धर्मपरिवर्तन कर इस्लाम थोप दिया गया| कहते हैं कि कालान्तर में मुल्तान “सूफी संस्कृति” और विभिन्न सूफी संतों की दरगाहों का एक बड़ा केंद्र बन गया| दरअसल, ये तथाकथित सूफी संत और कोई नहीं बल्कि हिंदुओं का तेज़ी से और अधिकाधिक इस्लाम में धर्मांतरण करवाने वाले चालाक लोग हुआ करते थे| जहाँ मुसलमान हिंदू भक्ति संतों की समाधियों पर जाना पाप समझते हैं वहीं हम हिंदू बड़ी संख्या में, बल्कि मुसलमानों से भी अधिक बढ़चढ़कर उनकी दरगाहों पर अपना माथा घिसते रहते हैं जिन्होंने हमारे धर्म, हमारी संस्कृति को मिटाने में सर्वाधिक सक्रिय भूमिका निभाई|
इतना सब हो जाने के बावजूद भारत की आजादी के समय मुल्तान में लगभग एक चौथाई संख्या हिंदुओं की बची हुई थी, जिनमें से अधिकांश या तो मार दिए गए या किसी तरह अपनी जान बचाकर भारत पलायन कर गए| जो तीन चार प्रतिशत अब भी बाकी रह गए, कालांतर में वे भी हिंसक धर्मपरिवर्तन की भेंट चढ़ गए| एक समय हिंदुओं के बड़े तीर्थस्थल और धार्मिक केंद्र रहे मुल्तान में आज हिंदुओं की संख्या उँगलियों पर गिनने लायक बची हुई है| आजादी के समय तक भक्त प्रह्लाद द्वारा निर्मित “होलिका दहन” के मूलस्थान वाला जो विष्णु मंदिर बचा हुआ था, कालांतर में वह भी अपनी शोभा खोता गया| इसके पराभव का पीड़ादायक चरम देखने को मिला 6 दिसम्बर 1992 के पश्चात जब अयोध्या में विवादित “रामजन्मभूमि-बाबरी मस्जिद” ढांचा गिराया गया तब उसकी हिंसक प्रतिक्रिया पाकिस्तान एवं बांग्लादेश में देखने को मिली| उसी हिंसा की भेंट चढ़ गया ये बचाखुचा “विष्णु मंदिर” जिसे कट्टर जिहादियों ने खंडहर बना दिया|
आज भी इस स्थान पर इक्कादुक्का पुजारी और हिंदू समुदाय के लोग “होलिका दहन” की परंपरा को संगीनों के साये और मार दिए जाने के भय के बीच प्रतीकात्मक रूप से निभाते हैं| आप सभी से निवेदन है कि होली के इस पर्व पर चाहे होलिका दहन हो या रंग खेलना, मुल्तान के इस मूल होलिका दहन वाले स्थान, सूर्य मंदिर और विष्णु मंदिर को मन ही मन अवश्य याद कर लिया करें और साथ ही ये भी याद रखें कि जिस महान संस्कृति पर गर्व करते हुए हम फूले नहीं समाते वह किस तरह नष्ट होती जा रही है, उजड़ती जा रही है, मुल्तान इसका एक उदाहरण मात्र है, ऐसे असंख्य प्रसंग और स्थान हैं| हमें इन सबसे क्या लेना देना या हमें क्या फर्क पड़ता है वाली सोच हम आखिर कब तक रखेंगे?
फिर भी यदि मस्तिष्क की घंटी न बजी हो तो सोशल मीडिया पर होली की शुभकामनाओं के संदेश या कॉपी किये हुए ग्राफ़िक्स सैकड़ों की संख्या में एक दूसरे को भेजते हुए मस्त रहें, लोगों के मोबाइलों की मेमोरी की ऐसीतैसी करते रहें, रंग खेलने के बाद उसे छुड़ाने के लिए साबुन के स्थान पर “मुल्तानी मिट्टी” का प्रयोग करें फिर दारू या भांग के नशे के प्रभाव में गहरी नींद सो जायें| इस विश्वास के साथ कि आपकी त्वचा के साथ साथ हमारी संस्कृति भी सुरक्षित रहेगी| आखिर पाकिस्तान की विचारधारा के प्रवर्तक, मुस्लिम लीग के संस्थापक और मशहूर शायर “अल्लामा मुहम्मद इकबाल” साहब अपने “कौमी तराने” में लिख गए हैं, जिसे जब सोकर उठें तो प्रेम से बाकायदा तरन्नुम में गाइये, हैंगओवर मिटाने में सहायक होगा –
यूनान-ओ-मिस्र-ओ-रोमा सब मिट गए जहाँ से
अब तक मगर है बाकी नामों निशाँ हमारा
कुछ बात है कि हस्ती मिटती नहीं हमारी
सदियों रहा है दुश्मन दौर-ए-जमां हमारा
सारे जहाँ से अच्छा हिन्दोस्तां हमारा

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