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होली पर्व का वैज्ञानिक आधार

होली पर्व का वैज्ञानिक आधार

 भारत में मनाया जाने वाला होली पर्व भी विज्ञान पर आधारित है। इसकी प्रत्येक क्रिया प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से मानव स्वास्थ्य और शक्ति को प्रभावित कराती है। एक रात में ही संपन्न होने वाला होलिका दहन, जाड़े और गर्मी की ऋतू संधि में फूट पड़ने वाली चेचक, मलेरिया, खसरा तथा अन्य संक्रामक रोग कीटाणुओं  के विरुद्ध सामूहिक अभियान है। स्थान- स्थान पर प्रदीप्त अग्नि आवश्यकता से अधिक ताप द्वारा समस्त वायुमंडल को उष्ण बनाकर सर्दी में सूर्य की समुचित उष्णता के अभाव से उत्पन्न रोग कीटाणुओं  का संहार कर देती है। होलिका प्रदक्षिणा  के दौरान 140 डिग्री फारनहाईट तक का ताप शरीर में समाविष्ट होने से मानव के शरीरस्थ समस्त रोगात्मक जीवाणुवों को भी नष्ट कर देता है।

 रंगोत्सव का पर्व हमको यही सिखाता है,
गैर से भी गले मिलो, भेदभाव मिटाता है।
ऊँच नीच- छोटा बडा, दुश्मन से भी प्यार,
मिल बाँट गुजिया खाना, प्रेम भाव दर्शाता है।

डा अ कीर्ति वर्द्धन
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