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मुनिश्री क्षमासागरजी को विनयांजली

मुनिश्री क्षमासागरजी को विनयांजली

सुन सुनता हूँ मैं मुनिश्री 
क्षमासागर जी की कहानी। 
जिसमें न कोई राजा और 
न थी कोई रानी। 
जन्म लिया आशादेवी और 
जीवन कुमार सिंघाई के घर में। 
सन् था वो 1957 का
नाम रखा गया बालक का वीरेंद्र कुमार।
बचपन से पढ़ने लिखने और  
जैनधर्म में बहुत रुची वो रखते थे। 
भूगर्व विज्ञान में लेकर उच्च शिक्षा 
फिर कदम रखे जैनधर्म के पथ पर। 
प्रथम बार जब दर्शन किये 
गुरुवर विद्यासागर के। 
आकर्षित वो होने लगे 
उनकी त्याग तपस्या से। 
मन ही मन वो सोचने लगे
मुझे भी इस पथ पर चलना है। 
अपने आत्म कल्याण के लिए
उन जैसा ही मुझे बनना है। 
छोड़ छाड़ अपने घर द्वार को
वो जा पहुँचे नैनागिर में। 
लेकर क्षुल्लक दीक्षा वो
बन गये तब क्षमा सागर। 
सन् था वो 1980 का और
तब से संग आचार्यश्री के हो लिए। 
कठिन त्याग तपस्या और साधना के
बल पर सब कुछ उन्होंने पा लिया। 
फिर गुरुवर ने उन्हें 
मुनि पद प्रदान किया। 
और भेज दिया फिर  
उन्हें बुंदेलखंड में। 
जैनधर्म की प्रभावना और 
नव युवक को जैन धर्म बतलाने को। 
फिर जो कुछ उन्होंने किया 
जैन धर्म के लिए। 
उसे नहीं जरूरत अब हमें
किसी को बताने की। 
तर्क वितर्क करने वालो को
कैसे वो समझाते थे। 
फिर वो चरणों में गिरकर
क्षमासागर जी के भक्त हो जाते थे। 
कितना कुछ उन्होंने लिखा 
अपनी कलम और ज्ञान से। 
उन्हें पढ़कर ऐसा लगता है
जैसे स्वयं मुनिश्री जी बोल रहे। 
इसलिए तो उन्हें बुंदेलखंड का
गौरव सभी लोगों कहते थे। 
और उनके ज्ञान की चर्चा 
सबसे ज्यादा युवा ही करते थे। 
पर नीति को तो कुछ और करना था
और हम सब से उन्हें दूर ले जाना था। 
इसलिए उन्होंने सन् 2015 मार्च को
सागर में समाधि को धारण कर लिया। 
और खुद का आत्मकल्याण करके
सबका कल्याण कर गये।। 
ऐसे त्यागी तपस्वी और ज्ञानी 
मुनिवर श्रीक्षमासागर जी के 
चरणो में वंदन बराम्बर करता हूँ। 
और उन्हें मैं विनयांजली आज पुन:अर्पित करता हूँ ।।

जय जिनेंद्र 
संजय जैन "बीना" मुंबई
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