कट्टरता की झंझा में अब
अनुराग बेचारा गुम सुम है
अपनी अपनी ईहा सबकी
पहचान बेचारा गुमसुम है!!
तिनके में भी बल होता है
पर समय -समय का अंतर है
नीचे रहने वाले जन की
चिंताओं मे विषयांतर है!
आशा की किरणें भली -भली
अरमान बेचारा गुम सुम है!!
आगे आनेवाली आँधी
सब कुछ विगाड़ कर जाती है
हारा -सा दिखनेवाले को
बलवान बना कर जाती है।
धोखे में जो सब गवाँ गये
संज्ञान बेचारा गुम सुम है।
पीढिमाँ गुजर जाने पर भी
मौलिकता थोडी़ शेष रहे
अपने परिसर के घेरे में
संधानक वीर विशेष रहे
लेकिन पथ के संरक्षक सा
प्रतिकार बेचारा गुम सुम है।
रामकष्ण
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