‘सुशासन’ पर दबाव
(अशोक त्रिपाठी-हिन्दुस्तान समाचार फीचर सेवा)
बिहार में सुशासन कुमार अर्थात् नीतीश बाबू को आज पुराने दिन जरूर याद आ रहे होंगे जब उनकी फोटो नरेन्द्र मोदी के साथ लगाने पर उन्हांेने आसमान सिर पर उठा लिया था। अब उनकी सरकार उन्हीं नरेन्द्र मोदी के रहम-ओ-करम पर चल रही है और उनके इशारे पर काम भी करना पड़ रहा है। वीआईपी पार्टी के मुखिया रहे मुकेश सहनी को नीतीश कुमार ने अपने मंत्रिमंडल से बर्खास्त कर दिया है क्योंकि उनके सभी विधायक भाजपा में विलय कर गये। मुकेश सहनी ने उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव के दौरान भाजपा से सीधा मोर्चा लिया था, उसकी सजा तो उन्हें मिलनी ही थी लेकिन इस झटके से नीतीश कुमार की कुर्सी का पाया भी हिल गया है। नीतीश ने 25 मार्च को लखनऊ में पीएम को झुककर जिस तरह से सलाम किया था, उसका भी उन्हें लाभ नहीं मिला है।
वीआईपी पार्टी के प्रमुख और विधान परिषद सदस्य मुकेश सहनी को नीतीश कुमार के मंत्रिमंडल से बर्खास्त कर दिया गया है। मुकेश सहनी को मंत्रिमंडल से बर्खास्त किए जाने की स्वीकृति राज्यपाल फागू चैहान ने दे दी। दरअसल बीजेपी से जारी विवाद के बाद 27 मार्च को नीतीश कुमार ने राज्यपाल को पत्र लिखकर मुकेश सहनी को बिहार मंत्रिमंडल से हटाए जाने की सिफारिश की थी। इसके अगले दिन राज्यपाल फागू चैहान ने इस मसले पर अपनी स्वीकृति दे दी। मुकेश सहनी को नीतीश कुमार ने बीजेपी के कहने पर ही मंत्रिमंडल से हटाए जाने की सिफारिश की थी। मुख्यमंत्री नीतीश कुमार समेत बिहार विधानसभा अध्यक्ष, विधान परिषद कार्यकारी सभापति, कई सांसद, मंत्री और विधायक राज्यपाल फागू चैहान द्वारा दिए गए आमंत्रण पर नाश्ता करने राजभवन पहुंचे हैं। इसे लेकर सीएम हाउस से राजभवन तक गहमागहमी बनी हुई थी। राजनेताओं की राज्यपाल से इस मुलाकात को बिहार की सियासत के लिहाज से भी काफी अहम माना जा रहा था।
माना जा रहा है कि उतर प्रदेश के साथ अन्य राज्यों में चुनाव के बाद नीतीश कुमार को इस बात का अंदाजा है कि भले अगले लोकसभा चुनावों तक उनकी कुर्सी को कोई खतरा नहीं लेकिन अब भाजपा के साथ एक दबंग सहयोगी के बजाय एक निर्बल-दुर्बल पार्ट्नर के रूप में रहना, उनकी राजनीतिक मजबूरी है क्योंकि उनके पास संख्या बल नहीं है। हालाँकि उनके समर्थक मानते है कि वर्तमान भाजपा के साथ संबंध पहले की तरह मधुर भले न हों लेकिन सरकार चलाने में कोई दिक्कत नहीं। हां, इस बात को स्वीकार करने में उन्हें कोई परेशानी नहीं कि भाजपा जैसे जमीनी स्तर पर अपने पैर फैला रही है। ऐसे में भविष्य में अगर राष्ट्रीय जनता दल के साथ बिना नीतीश भी सीधा मुकघबला हो तो अब उनकी स्थिति अच्छी रहेगी। नीतीश को मालूम है कि आज भाजपा से मुकाबला वो नहीं कर सकते क्योंकि उनके पास साधन और संसाधन है और इन सभी मामलों को उन्होंने कभी शासन करने के अपने तरीकांे में बहुत महत्व नहीं दिया। इसलिए आज का बिहार की राजनीति की सच्चाई है कि नीतीश कुमार को उपचुनाव में भी जाने के लिए अपने उम्मीदवार को एनडीए का प्रत्याशी घोषित करना पड़ता है और भाजपा और राष्ट्रीय जनता दल अपने बलबूते मैदान में उम्मीदवार उतारती है। नीतीश की राजनीति को उनके शराबबंदी के फैसले ने भी उतना नुकसान पहुंचाया है, जितना उनके विरोधियों ने सोलह वर्षों में उनकी सरकार की विफलताओं को उजागर करके पहुंचाया। शराबबंदी के कारण एक समानांतर आर्थिक व्यवस्था कायम हुई है, जिसके कारण पुलिस का रोब और खौफ कम हुआ, वहीं दलित, अति पिछड़े समाज के लोग बहुसंख्यक जेल जाने वालों को सूची में रहे जो नीतीश के कट्टर समर्थक थे और जेल और बेल के चक्कर में नीतीश से उनकी दूरी बढ़ी, जबकि समांतर व्यवस्था पर उन्हीं जातियों का वर्चस्व है जो समाज में दबंग हैं।
बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार राजनीतिक चर्चा के केंद्र में हैं। मुकेश सहनी की बर्खास्तगी हो या लखनऊ में नीतीश का झुककर सलाम करना। एक तस्वीर और कुछ सेकेंड का एक वीडियो, जो उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के शपथ ग्रहण समारोह में उनका प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को अभिवादन करने की शैली से संबंधित है ।बहस इस बात को लेकर छिड़ी है कि आखिर नीतीश का ऐसे झुकना क्या बिहार के वर्तमान राजनीतिक परिदृश्य में उनकी राजनीतिक मजबूरी है या उन्होंने अपने हालात से समझौता कर राजनीतिक रूप से आत्मसमर्पण कर दिया है। नीतीश कुमार की लखनऊ में ये मुद्रा बिहार की राजनीति में बहस का विषय बनी है। आने वाले समय में वो इसलिए भी किसी न किसी चर्चा का केंद्र रहेगी क्योंकि ये वही नीतीश कुमार है, जिन्होंने 2009 के लोकसभा चुनाव में लुधियाना में एनडीए की एक रैली में उस समय के गुजरात के मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी और अब प्रधानमंत्री, ने जब नीतीश के साथ हाथ उठाकर फोटो खिंचवाया था तो नीतीश आगबबूला हो गए थे, उस रैली में भी नीतीश बहुत नानुकुर करके गए थे और बीजेपी ने ही उन्हें चार्टर प्लेन उपलब्ध कराया था। लेकिन नीतीश मोदी के साथ इस तस्वीर को लेकर बहुत असहज थे। उनका गुस्सा उस समय सातवें आसमान पर चला गया था, जब 2010 जून में भाजपा की राष्ट्रीय कार्यकारिणी की बैठक में भाग लेने के लिए नरेंद्र मोदी आ रहे थे, तब उसी तस्वीर को विज्ञापन के रूप में गुजरात के कुछ संगठनों ने पटना के अखबारों में छपवाया था और नीतीश ने न केवल उस संगठन के खिलाफ एफआईआर कर जांच के लिए पुलिस टीम सूरत भेजी थी बल्कि रात का भोज भी रद्द कर दिया था। लेकिन उन्हीं नीतीश कुमार का इस तरह से अब
नरेंद्र मोदी के सामने झुकना, उनके समर्थकों के अनुसार उनकी वर्तमान राजनीतिक हैसियत का परिणाम है। उस दिन मंच पर भाजपा के सभी मुख्यमंत्री थे, लेकिन नीतीश का स्टाइल सबसे अलग था।
बिहार विधानसभा के बजट सत्र के दौरान तो आमतौर पर शांत रहने वाले नीतीश अपना आपा खो बैठे और विधानसभा अध्यक्ष को सदन के अंदर खरी खोटी सुना दी और जब अपने वाणी के कारण भाजपा सदस्यों के नाराजगी का अंदाजा हुआ तो छुट्टी के दिन उस पुलिस अधिकारी का तबादला कर दिया जिससे विधान सभा अध्यक्ष विजय कुमार सिन्हा और भाजपा के सदस्य शांत हो जाएं। इससे पूर्व भी नीतीश विपक्ष के नेता तेजस्वी यादव के खिलाफ भी ऊंची आवाज में बोल चुके हैं, जो अमूमन उनका स्टाइल नहीं है। इसके अलावा भाजपा के सदस्य सरकार की सदन में और बाहर जमकर बेलगाम अफसरशाही और भ्रष्टाचार को लेकर आवाज उठाते हैं, जिससे आखिरकार नीतीश कुमार का इकबाल कम होता है। नीतीश कुमार कितने अलग- थलग पड़ते जा रहे हैं कि जिस गृह विभाग के मुखिया हैं उनके मातहत पुलिस महानिदेशक उनके बार बार कहने के बाबजूद आम आदमी तो छोड़ दीजिए किसी मीडिया वाले का फोन न तो उठाते हैं न कभी कॉल बैक करते हैं और ये नीतीश कुमार के 16 वर्षों से अधिक के शासन में पहली बार हो रहा है। नीतीश जो लुधियाना में उस समय भाजपा के सामने विधान सभा में संख्या बल में अधिक थे तो उनकी बात सुनी जाती थी। हालांकि भोज रद्द करने के बाद भाजपा के नेता और कार्यकर्ताओं के बीच काफी रोष था। हालांकि उस साल हुए विधानसभा चुनाव में उसका कोई असर नहीं दिखा। लेकिन आज अगर नीतीश संख्या बल में नंबर तीन की पार्टी हैं तो उसमें वर्तमान भाजपा का एक बहुत अहम योगदान इसलिए है, क्योंकि चिराग पासवान का अलग लड़ना और वो भी जनता दल यूनाइटेड के उम्मीदवारों के खिलाफ ही अपना कैंडिडट देना और वो भी अधिकांश पूर्व भाजपा विधायक को टिकट देना, ये दोस्त बनकर पीठ में खंजर घांेपने के समान था लेकिन नीतीश ने सार्वजनिक रूप से मुख्यमंत्री की कुर्सी मिलने के कारण ये बात कभी नहीं कही। अब मुकेश सहनी को अपने मंत्रिमंडल से उन्हंे मजबूरन बर्खास्त करना पड़ा, तो उनकी मजबूरी समझी जा सकती है।
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