बेटे का फर्ज
मां-बाप तीर्थ समान श्रद्धा से सेवा पूरी कीजिए
पाल पोसकर योग्य बनाया दुख ना कभी दीजिए
बुढ़ापे की लाठी बन बेटे का फर्ज निभा लेना
आशीषों से झोली भर पुण्य जरा कमा लेना
श्रवणकुमार सुकुमार पुत्र लेकर अंधे मां-बाप
चारों धाम तीर्थ कराया सह सर्दी बरखा ताप
मर्यादा पुरुषोत्तम राम जब चले गए वनवास
दशरथ आज्ञा पालन कर जनमन हुये खास
जन्मदाता भाग्य विधाता जो धरती के भगवान
पुत्र रत्न पाकर हो हर्षित जीवन का देते ज्ञान
तिरछे नैन कटू वाणी से हृदय छलनी ना कर देना
स्वर्ग बसा उन चरणों में सुख से झोली भर लेना
बेटों का यह फर्ज नहीं जो वृद्धाश्रम तक पहुंचाये
जिसने तुमको योग्य बनाया उनको आंख दिखाये
सारे तीर्थों का पुण्य मिले उनके आशीष में जीवन
महक जाए घर की फुलवारी खिले सुहाना उपवन
उनकी हर इच्छा पूरी कर बेटे का धर्म निभा लेना
संस्कारों का पोषण कर नव पीढ़ी को सीखा देना
भारत मां के अमर सपूत प्राण न्योछावर कर जाते
सरहद पर रणवीर खड़े जो माटी का फर्ज निभाते
रमाकांत सोनी नवलगढ़
जिला झुंझुनू राजस्थान
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