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रिश्ते टूटे,अपने छूटे

रिश्ते टूटे,अपने छूटे

 साथ रही तकदीर   

पगडंडी से राजमार्ग तक
खूब चलै जी भर
सौलागरी नहीं निभ पायी
फिर भी गया निखर
उठते गये हरे मंसूबे
गिरता गया शरीर। 

कोशिश की जल पाये दीपक
जहाँ अँधेरा था
संदेहौ के अविच्छिन्न 
जालों ने  घेरा था। 
किंतु  उजाला छाते छाते
बहसी हुई समीर। 

मंचों से चिल्लाने वालों ने
बरसयी धूप
आगबबूले चेहरोंमे उभरे
कितने  समरूप
छत विक्षत हो गिरी किंतु
है अभी पडी़ तहसीर।
रामकृष्ण
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