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तुलसी चरित

तुलसी चरित

यूँ तो शिव प्रभाकर ओझा जी से मेरा परिचय बहुत ही पुराना है और मैं उनकी साहित्य साधना से भी परिचित रहा हूँ मगर ‘तुलसी चरित’ की प्रति प्राप्त होने पर मुझे अत्याधिक ख़ुशी हुयी और उनकी प्रतिभा से साक्षात्कार का एक और अवसर भी प्राप्त हुआ। तुलसी जिन्होंने राम को भगवान राम बनाकर रामचरित मानस के रूप में जगत में अधिष्ठापित किया, उनके जीवन चरित्र को 108 मनकों में पिरोना बहुत ही साधना की बात है। यह काम ओझा जी ने सरलता व कुशलता से संपन्न किया है। मैं अपने मित्र तथा अनुज शिव प्रभाकर ओझा को हार्दिक साधुवाद देता हैं और कामना करता हूँ कि वह निरंतर आगे बढ़ते रहें और साहित्य क्षितिज पर अपना अलग मुकाम बनाने में सक्षम हों।
वंदन ‘शिव’ सदा तुम्हे, कृपा कीजो नाथ,
आपकी दया रहे, सरस्वती भी हों साथ।
प्रभावान मुखमंडल रहे, दीजो आशीर्वाद,
मुझ दास सिर पर सदा, रहे आपका हाथ।
तुलसी चरित पढ़कर लगा, तुलसी हैं साक्षात,
जन्म से मृत्यु तक कथा, सदा रही विख्यात।
रामचरित मानस रचा, घर- घर में सम्मान,
तुलसी के सम्मुख सभी, संत लगें अज्ञात।
एक सौ आठ मनकों में, ‘तुलसी चरित’ रच डाला,
जन्म से मृत्यु तलक, जीवन चरित्र बता डाला।
राम-कथा को तुलसी ने, घर- घर तक पहुंचाया,
‘ओझा जी’ ने तुलसी को ही, मनकों में गढ़ डाला।
रामचरित मानस तुलसी ने, अवधि में गढ़ डाला था,
सरल सहज भाषा में रच, स्वांत सुखाय कह डाला था।
वही भाव प्रबल होकर, शिव प्रभाकर के मन के आये,
हुयी प्रेरणा तुलसी की, तुलसी चरित ही रच डाला था।


नरहरि दास ने तुलसी को, राम कथा सुनाई थी,
बचपन में सुनी रामकथा, रामचरित में छायी थी।
तुलसी की यही कथा, जब ‘प्रभाकर’ मन को भायी,
तुलसी चरित रच ‘शिव’ ने, तुलसी की रीत निभायी थी।


मेरी अनुनय और विनय, सुनना तुम भगवान,
प्रभाकर को दीजिये प्रभु, साहित्य का वरदान।
साहित्य का वरदान, प्रभाकर शीर्ष पर छा जाए,
करे नित साहित्य सृजन और प्रेरक बन जाए।
गाता भगवन ‘कीर्ति’, गुणगान औ’ महिमा तेरी,
तुम हो दीनदयाल, सुनो विनय- अनुनय मेरी।


डॉ अ कीर्तिवर्धन
विद्यालक्ष्मी निकेतन,
53- महालक्ष्मी एन्क्लेव,
मुज़फ्फरनगर-251001 (उत्तर-प्रदेश)
08265821800


पुस्तक----तुलसी चरित (108 मनके)रचियता श्री शिव प्रभाकर ओझा
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