खिल रहा कमल
---:भारतका एक ब्राह्मण.
संजय कुमार मिश्र"अणु"
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नेताओं नें
जातिगत विद्वेष फैला
पैदा किया सामाज में
जातिय दलदल
और उस के सद परिणाम से
सर्वत्र खिल रहा कमल
एक दिन सदन में
जब जनमत घीरी थी
ये सच कह रहा हूँ मैं कि
अटल सत्ता गीरी थी
अभी पीछले कल
लोग कहकर चिढाते थे
कभी भगवा और कमंडल
अवसरवादी लोग
बनाते रहे अवसर पर
क्षेत्रपों से गठबंधन
कि जनता को लड़वाकर
हम लुटते रहे देश का धन
निर्बाध संपति चल अचल
लुटते रहे सब देश
बनाकर समाज सेवक का भेष
धीरे-धीरे जनता जागी
और अनुभव किया द्वेष-विद्वेष
और उनसबका छल
आज अपने दम पर
वो पहुंचा सत्ता के शीर्ष पर
वो सब बिलबिला रहे हैं आज
औंधे मुंह गीर कर
थे तरह-तरह के साथी
पंजा,सायकिल और हाथी
पर कोई तिकड़म काम न आया
बना दिया जनता फुटपाथी
एकदम निकम्मा और निर्बल
अब खोज रहे हैं सब
अपने-अपने हार का कारण
जो कभी किया करते थे खुलेआम
सरे बाजार जनमत का चीरहरण
और जनता की बेबसी देख
हसा करता था खल
आज वो जमात रो रहा है
ये सोच की आखिर क्या हो रहा है
समझ कुछ नहीं आ रहा
कि जगा कौन और कौन सो रहा है
पछता रहा है सबके सब
खुद सर पीट और हाथ मल
उधर फैली है खामोशी
देख इधर की ताजपोशी
आज खुशी मना रहे होगें
अटल,सुषमा और जोशी
देख मोदी-योगी का राजयोग
पूर्ण बहुमत अपूर्व जनबल
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