कब तक हिंदुओं का खून भरेगा बीरभूम की काली के खप्पर”?
जय काली कलकत्ते वाली, तेरा वचन न जाये खाली;
51 में से सर्वाधिक शक्तिपीठों वाला जिला बंगाल का बीरभूम;
इस नववर्ष, नवरात्रि पर हम सब लें एक नया और अनूठा संकल्प;
बीरभूम अर्थात वीरभूमि (वीरों की धरती) बंगाल का वह जिला है जिसे हिंदुओं के “शाक्त” संप्रदाय की सर्वाधिक श्रद्धा और आस्था का केंद्र माना जाता है| सनातन धर्म के तीन प्रमुख अंग रहे हैं – विष्णु (और उनके अवतार – राम, कृष्ण या नृसिंह) के उपासक – “वैष्णव”; महादेव, शंकर अथवा शिव के उपासक “शैव” और दुर्गा, काली या शक्ति के उपासक “शाक्त”| बंगाल हमेशा से शक्तिपूजा अर्थात “शाक्तों” की उपासना का गढ़ रहा है| कलकत्ता के दक्षिणेश्वर मंदिर की “भवतारिणी देवी” को भारत का बच्चा बच्चा – “जय काली कलकत्ते वाली, तेरा वचन न जाये खाली” की तरह जानता है| यही स्थान स्वामी रामकृष्ण परमहंस की कर्मभूमि और उनके परम शिष्य स्वामी विवेकानंद के स्वयं देवी के साक्षात दर्शन का स्थल रहा| बंगाल ही वह भूमि है जहाँ हिंदुओं के लिए पवित्र मानी जाने वाली 51 शक्तिपीठों में से सर्वाधिक पीठें स्थित हैं|
दुर्भाग्य से भारत विभाजन के फलस्वरूप छः शक्तिपीठें बांग्लादेश में रह गयीं – सुगंधा देवी (बारिशल); लक्ष्मी देवी श्रीहट्ट (सिलहट); भवानी देवी, (सीताकुंड, चट्टग्राम); जयंती देवी (सिलहट); जशोरेश्वरी देवी (जैसोर) और अपर्णा देवी (काराटोया)| बांग्लादेश में दिन प्रतिदिन घटते हिंदुओं की संख्या, बर्बर हमलों और हिंसक उपद्रवों के बीच किस तरह दांतों के बीच जीभ जैसे इन शक्तिपीठों की आराधना और जिहादी मुसलमानों से इनकी रक्षा करने के लिए संघर्ष कर रही है, ये जगजाहिर है| पूर्वी पाकिस्तान (अब बांग्लादेश) में आजादी के बाद लाखों हिंदुओं को अपने धर्म और धार्मिक स्थलों की रक्षा करने के लिए प्राणों का उत्सर्ग करना पड़ा है| इस पर लिखा जाये तो एक ग्रंथ भी कम पड़ जायेगा|
वैसे तो प्रत्येक हिंदू के प्राण अनमोल हैं लेकिन चलिये मान लिया कि 1947 में “इस्लामिक रिपब्लिक ऑफ़ पाकिस्तान” बनने के बाद भारत सरकार का भारत के बाहर ज़ोर नहीं चलता होगा लेकिन हमारी पूर्व सरकारें हिंदुओं के उत्पीड़न को महत्वपूर्ण मुद्दा न मानकर इसका राष्ट्रप्रमुख या डिप्लोमेटिक स्तर पर प्रेशर बनाने तक में विफल रहीं| पाकिस्तान तो भारत का शत्रुराष्ट्र घोषित हो गया, हम उस बांग्लादेश में भी हिंदुओं पर हो रही बर्बरता, नरसंहार और धर्मपरिवर्तन को मूक बने देखते रहे जिस बांग्लादेश को आजादी ही हमने दिलाई, जिसका अस्तित्व ही हमारे कारण है| धिक्कार है हम पर – चाहते तो बांग्लादेश का टेंटुआ मरोड़कर उसे बाध्य कर देते कि यदि एक भी हिंदू का खून बहा या एक भी हिंदू धार्मिक स्थल को क्षति पहुँची तो तुम्हारी खैर नहीं|
चलिये, पाकिस्तान शत्रु और बांग्लादेश दूसरा देश था लेकिन इसका चरम देखने को मिलता है स्वयं अपने ही देश के एक राज्य - पश्चिम बंगाल में| जिस तरह विगत कुछ वर्षों से, खासतौर पर जबसे ममता बनर्जी की सरकार वहाँ है, हिंदू उत्पीड़न, सामूहिक हिंसा, अपमान की अनगिनत वारदातें हुईं उनसे लगता ही नहीं कि जहाँ ये सब अविश्वसनीय घटित हो रहा है, वह हमारे देश भारत का ही हिस्सा है| कभी कभी तो लगता है कि ये तो पाकिस्तान और बांग्लादेश भी अधिक बुरा हो रहा है| मुस्लिम वोटबैंक, बांग्लादेश से अवैध रूप से आये करोड़ों मुस्लिम और दुर्दांत समझे जाने वाले रोहिंग्या मुसलमानों को गैरकानूनी रूप से मतदाता बनाकर उनके नाम पर सत्ता हासिल करने का खूनी खेल ममता बनर्जी खुलेआम खेल रही हैं और हम इसे जानते हुए भी कुछ नहीं कर पा रहे| बात बात पर भड़कने, खून की होली खेलने को सदैव तत्पर एक समुदाय हिंदुओं की शांतिप्रियता और सहिष्णुता का लगातार बेजा फायदा उठाये चला जा रहा है| ममता इसे सत्ता में बने रहने के लिए प्रश्रय दे रही है तो भाजपा के अलावा अधिकांश पार्टियाँ ये सोचकर खुश हैं कि इससे भाजपा की केंद्र सरकार एक अजीबोगरीब स्थिति में आ जाती है|
“बीरभूम” में जो हुआ, वह कोई नई बात न होते हुए भी झकझोरने वाला है| ये वही “बीरभूम” है जहाँ भारत में सबसे अधिक देवी की “शक्तिपीठें” स्थित हैं| हिंदुओं के लिए पवित्रतम मानी जाने वाली – नलतेश्वरी देवी (नलहाटी); नंदकेश्वरी देवी (सैंथिया); तारादेवी (तारापीठ); महिषमर्दिनी (बकरेश्वर) और देवी का अट्टहास करता स्वरुप फुल्लारा यहीं स्थित हैं| गत वर्ष जब मित्र श्री सुधीर श्रीवास्तव जी की सुपुत्री के शुभ विवाह में सम्मिलित होने का निमंत्रण हमें मिला था तो हम पतिपत्नी ने आसपास स्थित इन शक्तिपीठों के दर्शन करने की योजना बनाई| कोरोना की गंभीरता के चलते जाना संभव न हो सका लेकिन देवी माता की कृपा हुई तो भविष्य में “बीरभूम” की शक्तिपीठों पर उपस्थिति अवश्य दर्ज करायेंगे|
हे देवी माताओं! हे शक्तिपीठ में विराजमान अधिष्ठात्री शक्तियों! हे काली! हे दुर्गा! हे भवानी! और कितने हिंदुओं के रक्त से आपके खप्परों की प्यास बुझेगी| हे आदिशक्ति! हमें शक्ति दो - इस अन्याय का सटीक प्रतिकार करने की, दमनकारियों को सबक सिखाने की, अत्याचारियों को समाप्त करने की| साथियो, आने वाले 2 अप्रैल को हमारा “नववर्ष” “संवत्सर” शुरू हो जायेगा, देवी का ये सबसे बड़ा पर्व नौ दिनों की “नवरात्रि” उनके विभिन्न रूपों की पूजा है| माना जाता है कि इसी दिन देवी ने इस जगत की रचना की| ऐसे में परस्पर शुभकामनाएं इत्यादि भेजने की फॉर्मेलिटी पूरी करने से बेहतर होगा कि इस पर्व को उस बंगाल में, उस बीरभूम में देवी के भक्तों पर हो रहे अत्याचारों, उत्पीड़न और नरसंहार के विरुद्ध अभियान की तरह मनाया जाये जिसमें देवी अपनी सर्वाधिक शक्तिपीठों में विभिन्न रूपों में विराजमान है|
नववर्ष में संकल्प लें कि अब देवी के खप्परों में भक्तों का नहीं बल्कि असुरों का, नराधमों का, पैशाचिक कृत्य करने वालों का रक्त भरा जायेगा| सरकारों को मजबूर करने की क्षमता हम जनता जनार्दन में ही है| यदि इन घटनाओं पर ममता बनर्जी की सरकार अंकुश न लगाये या उन्हें जानबूझकर बढ़ावा दे तो केंद्र सरकार पर हम सब मिलकर दवाब डालें कि हिंदुओं की जानमाल, धार्मिक स्थलों की रक्षा के मद्देनज़र ममता बनर्जी सरकार को बर्खास्त कर राष्ट्रपति शासन लगा दिया जाये| लेखक - अतुल मालवीय
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