Advertisment1

यह एक धर्मिक और राष्ट्रवादी पत्रिका है जो पाठको के आपसी सहयोग के द्वारा प्रकाशित किया जाता है अपना सहयोग हमारे इस खाते में जमा करने का कष्ट करें | आप का छोटा सहयोग भी हमारे लिए लाखों के बराबर होगा |

संग संग

संग संग

- मनोज मिश्र
सब ने सब बातें कह डालीं
अब मेरी बात फलक तक आये
होगी कोशिश मेरी इन नयनों में
कभी अश्रु कहीं छलक न पाए

राग औ अनुराग रहे, रहे प्रीत का समां यहां
प्रेम सरिस बंधन सा पावन कुछ और कहां
बस दो बातें हों सुख दुख की
नहीं और किसी की जगह यहां

कुछ बोलें मुस्कायें खिलखिल आंखें भर आयें
संग खेलें संग इतरायें थोड़ा सा शर्माएं
है ये जगत बड़ा निष्ठुर विशाल
चलो चार कदम संग चल आएँ

दो कदम उठें जीवन आशा के
दो उनको पूरा करने हेतु उठें
हेतु सिद्ध जब एक बने
तो नियत नया कुछ और चुनें

बस यूँ ही कहीं पतली पगडंडी पर
जो इंगित करती अनिश्चित की ओर
कुछ नूतन पाने की आशा हो
और हम उस रास्ते चल आएँ

न है खोने का डर हमराही
जब तेरा है साथ मुझे
भटक भी गए तो क्या होगा
आखिर तुम तो हो साथ मेरे

वो देखो सूरज अस्ताचलगामी
लौट रहे विहग नीड़ों की ओर
गोधूलि से भर उठी है धरती
आतुर निशा करती आने का शोर

साथ तुम्हारा जब है प्रियतम
अंधियारे से डर कैसा
अरुणोदय की आभा से सजी मही
आएगी भोर विस्मय कैसा
हमारे खबरों को शेयर करना न भूलें| हमारे यूटूब चैनल से अवश्य जुड़ें https://www.youtube.com/divyarashminews https://www.facebook.com/divyarashmimag

एक टिप्पणी भेजें

0 टिप्पणियाँ