Advertisment1

यह एक धर्मिक और राष्ट्रवादी पत्रिका है जो पाठको के आपसी सहयोग के द्वारा प्रकाशित किया जाता है अपना सहयोग हमारे इस खाते में जमा करने का कष्ट करें | आप का छोटा सहयोग भी हमारे लिए लाखों के बराबर होगा |

विश्व अग्निहोत्र दिवस : हिन्दू धर्म की विशिष्टता का प्रमाण - अग्निहोत्र

विश्व अग्निहोत्र दिवस : हिन्दू धर्म की विशिष्टता का प्रमाण - अग्निहोत्र

आज  हमारे चारों ओर का वातावरण अत्यंत दूषित हो गया है। जब हम प्रदूषण की बात करते हैं, तो सामान्यतः हम वायु प्रदूषण, जल प्रदूषण, ध्वनि प्रदूषण, भोजन प्रदूषण और भूमि प्रदूषण के विषय में विचार करते हैं । परन्तु यह प्रदूषण भौतिक स्तर तक ही सीमित नहीं है; अपितु वायुमंडल में उत्सर्जित मानसिक तथा आध्यात्मिक प्रदूषण भी सम्मिलित है । मानसिक प्रदूषण लोगों के नकारात्मक विचार जैसे लालच, धोखा, घृणा, विनाश हेतु योजना बनाना, इत्यादि के कारण होता है । यह मानसिक प्रदूषण वातावरण में प्रसारित होता है, इसलिए यह हमारे मन के नकारात्मक विचारों को बढाने वाला वातावरण बना देता है ।

अग्निहोत्र क्या है ?

अग्निहोत्र एक वैदिक हवन पद्धति है। वर्तमान में जब सम्पूर्ण विश्व इस प्रकार के भौतिक प्रदूषण पर शीघ्र ही रोक लगाने हेतु उपाय ढूंढने हेतु प्रयत्नशील है । पवित्र अथर्ववेद (11:7:9) में एक सरल धार्मिक विधि का उल्लेख है । जिसका विस्तृत वर्णन यजुर्वेद संहिता और शतपथ ब्राह्मण (12:4:1) में है । इससे प्रदूषण में कमी आएगी तथा वातावरण भी आध्यात्मिक रूप से शुद्ध होगा । जो व्यक्ति यह पवित्र अग्निहोत्र विधि करते हैं, वे बताते हैं कि इससे तनाव कम होता है, शक्ति बढती है, तथा मानव को अधिक स्नेही बनाती है । ऐसा माना जाता है कि अग्निहोत्र पौधों में जीवन शक्ति का पोषण करता है तथा हानिकारक विकिरण और रोगजनक जीवाणुओं को उदासीन बनाता है । जल संसाधनों की शुद्धि हेतु भी इसका उपयोग किया जा सकता है । ऐसा माना जाता है कि यह नाभिकीय विकिरण के दुष्प्रभावों को भी न्यून कर सकता है । वर्तमान प्रदूषित वातावरण में वायु की शुद्धता तथा विषैली वायु और विकिरण से रक्षा करनेवाली ‘अग्निहोत्र’ विधि अवश्य करें । पर्यावरण की शुद्धि के लिए किए जाने वाले अग्निहोत्र को आज कई लोग सीखकर अपने घरों में भी करने लगे हैं। अग्निहोत्र एक ऐसी-हवन पद्धति है जिसमें समय भी कम लगता है तथा इसे आसानी से किया भी जा सकता है। इस संसार में ईश्वर ने हमें सब कुछ प्रदान किया है, कृतज्ञता स्वरुप हमें प्रतिदिन अग्निहोत्र करने के लिए समय निकालना चाहिए।  इस यज्ञ को स्वयं करना चाहिए व अन्यों को भी ऐसा करने के लिए प्रेरित करना चाहिए । 

अग्निहोत्र के लाभ

अग्निहोत्र से वनस्पतियों को वातावरण से पोषण द्रव्य मिलते हैं और वे प्रसन्न होती हैं । अग्निहोत्र के भस्म का भी कृषि और वनस्पतियों की वृद्धि पर उत्तम परिणाम होता है । परिणामस्वरूप अधिक पौष्टिक और स्वादिष्ट अनाज, फल, फूल और सब्जियों की उपज होती है तथा चैतन्यप्रदायी और औषधीय वातावरण उत्पन्न होता है ।

अग्निहोत्र के लाभ का एक अत्यंत महत्त्वपूर्ण उदाहरण है, भोपाल में दिसंबर, 1984 में हुई गैस त्रासदी । इसमें लगभग 15,000 से अधिक लोगों की जान चली गई और कई लोग शारीरिक अपंगता से लेकर अंधेपन के भी शिकार हुए, तबाही की इस काली रात में हजारों परिवारों के बीच भोपाल में कुशवाहा परिवार भी था । कुशवाहा परिवार में प्रतिदिन सुबह और शाम 'अग्निहोत्र यज्ञ' होता था । इसलिए उस काली रात में भी कुशवाहा परिवार ने अग्निहोत्र यज्ञ करना जारी रखा । इसके बाद लगभग 20 मिनट के अंदर ही उनका घर और उसके आस-पास का वातावरण 'मिथाइल आइसो साइनाइड गैस' से मुक्त हो गया।

कैसे होता है अग्निहोत्र ?

अग्निहोत्र के लिए अग्नि प्रज्वलित करना - हवन पात्र के तल में उपले का एक छोटा टुकडा रखें । उस पर उपले के टुकडों को घी लगाकर उन्हें इस प्रकार रखें (उपलों के सीधे-आडे टुकडोें की 2-3 परतें) कि भीतर की रिक्ति में वायु का आवागमन हो सके । पश्‍चात उपले के एक टुकडे को घी लगाकर उसे प्रज्वलित करें तथा हवन पात्र में रखें । कुछ ही समय में उपलों के सभी टुकडे प्रज्वलित होंगे । अग्नि प्रज्वलित होने के लिए वायु देने हेतु हाथ के पंखे का उपयोग कर सकते हैं अग्नि प्रज्वलित करने के लिए मिट्टी के तेल जैसे ज्वलनशील पदार्थों का भी उपयोग न करें । अग्नि निरंतर प्रज्वलित रहे अर्थात उससे धुआं न निकले ।’

अग्निहोत्र मंत्र

सूर्योदय के समय बोले जानेवाले मंत्र

सूर्याय स्वाहा सूर्याय इदम् न मम
प्रजापतये स्वाहा प्रजापतये इदम् न मम

सूर्यास्त के समय बोले जानेवाले मंत्र

अग्नये स्वाहा अग्नये इदम् न मम
प्रजापतये स्वाहा प्रजापतये इदम् न मम

मंत्र बोलते समय भाव कैसा हो ? : मंत्रों में सूर्य’, अग्नि’, प्रजापति’ शब्द ईश्‍वरवाचक हैं । इन मंत्रों का अर्थ है, सूर्य, अग्नि, प्रजापति इनके अंतर्यामी स्थित परमात्मशक्ति को मैं यह आहुति अर्पित करता हूं । यह मेरा नहीं ।’, ऐसा इस मंत्र का अर्थ है ।  

इस क्रिया में हवनद्रव्य (दो चुटकी चावल, गाय के घी के साथ मिला हुआ) अग्नि में समर्पित करें । हवन करते समय मध्यमा और अनामिका से अंगूठा जोडकर मुद्रा बनाएं (अंगूठा आकाश की दिशा में रखें ।) उचित समय अर्थात सूर्योदय एवं सूर्यास्त के समय (संधिकाल में) अग्निहोत्र करना अपेक्षित है । प्रजापति को ही प्रार्थना कर और उनके ही चरणों में कृतज्ञता व्यक्त कर हवन का समापन करें ।

आवाहन : ‘अग्निहोत्र’ हिन्दू धर्म द्वारा मानवजाति को दी हुई अमूल्य देन है । अग्निहोत्र नियमित करने से वातावरण की बडी मात्रा में शुद्धि होती है । इतना ही नहीं यह करनेवाले व्यक्ति की शारीरिक, मानसिक और आध्यात्मिक शुद्धि भी होती है । इसके साथ ही वास्तु और पर्यावरण की भी रक्षा होती है । समाज को अच्छा स्वास्थ्य और सुरक्षित जीवन जीने के लिए सूर्यादय और सूर्यास्त के समय ‘अग्निहोत्र’ करना चाहिए । अमेरिका, इंग्लैंड, फ्रान्स जैसे 70 देशों ने भी अग्निहोत्र का स्वीकार किया है तथा उन्होंने विविध विज्ञान मासिकों में उसके निष्कर्ष प्रकाशित किए हैं । इसलिए वैज्ञानिक दृष्टि से सिद्ध हुई यह विधि सभी नागरिकों को मनःपूर्वक करना चाहिए ।

सन्दर्भ : सनातन संस्था का ग्रंथ 'अग्निहोत्र'
हमारे खबरों को शेयर करना न भूलें| हमारे यूटूब चैनल से अवश्य जुड़ें https://www.youtube.com/divyarashminews https://www.facebook.com/divyarashmimag

एक टिप्पणी भेजें

0 टिप्पणियाँ