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सम्प्रेषण का सशक्त माध्यम है विज्ञापन

सम्प्रेषण का सशक्त माध्यम है विज्ञापन

सत्येन्द्र कुमार पाठक 
मानव सभ्यता के उदय और संप्रेषण की आवश्यकता के लिए विज्ञापन का अस्तित्व है । मानव सभ्यता के प्रारंभिक चरण में मानवीय को अनुशासित, नियंत्रित करने तथा जनमत को स्वपक्ष में प्रभावित करने के लिए जो प्रयास किए जाने में विज्ञापन की पृष्ठभूमि  है। विश्व का प्रथम विज्ञापन भारत में डेढ हजार वर्ष पूर्व विज्ञापन भारतीय बुनकर व्यापारी संघ द्वारा  प्राचीन गुप्तकालीन मध्यप्रदेश का  दशपुर में स्थित एक सूर्य-मंदिर की दीवारों में लगवाया गया था।  प्राचीनकाल में शासक प्रजा को जिन नियमों से अनुशासित करना चाहते थे । नियमों को प्रजा की जानकारी के लिए सार्वजनिक स्थानों पर भिति ,  पटूट आदि पर खुदवा दिया जाता था। धार्मिक सूचनाओं, राजाज्ञाओं और सरकारी आदेशों को शिलालेखों पर विज्ञापन के रूप में उत्कीर्ण कराने की प्रथा भारतीय सम्राट अशोक के समय में विद्यमान  थी। सम्राट अशोक ने शिलालेखों पर अनेक सूचनाएँ उत्कीर्ण कराई। प्राचीन भारतीय समाज में विज्ञापन का लक्ष्य धार्मिक विचारों का प्रचार करना था। सम्राट अशोक के स्तंभों और भिक्ति संदेशों, गुफा चित्रों आदि को 'आउटडोर' विज्ञापन का पूर्वज कह सकते हैं। 'इंडोर विजुअल' संप्रेषण कला के पूर्वज के रूप में अजंता, साँची और अमरावती की कलाओं एवं बिहार का जहानाबाद जिले के बराबर पर्वत समुहमे स्थित गुफाओं , भित्ति चित्रों को अध्ययन  है।"
 तीन हजार वर्ष पूर्व मिस्त्र में विज्ञापनों का उपयोग श्रीमंतों के घरों से भागे हुए दासों को पकडने वालों के लिए  पुरस्कार देने की घोषणा के लिए किया जाता था। श्रीपत्र या भोजपत्र पर लिखे जाते थे। ढाई ह्जार वर्ष पूर्व मकान किराए पर दिए जाने के विज्ञापन का उल्लेख भी मिलता है-"आगामी १ जुलाई से आरियोपोलियन हवेली में  दुकानें भाडे पर दी जाएँगी। दुकानों में ऊपर रहने के कमरे हैं।   विज्ञापनों के प्रारंभिक स्वरुप की चर्चा में इजिप्ट में थीब्ज के उत्खनन  के दौरान प्राप्त पांडुलिपि के अवशेष तीन ह्जार वर्ष पूर्व  उदूधृत  है।  शैवाल से तैयार किए गए कागज पर विज्ञापन के रूप में शीम  भगोडे दास को लौटानेवाले को एक सोने का सिक्का इनाम में दिए जाने की घोषणा की गई है। छपाई के आविष्कार से पहले प्राचीनकाल में विज्ञापनों के लिए अन्य रास्ते तलाश करते थे। ग्रीस, रोम और चीन में विज्ञापन के लिए चित्रलिपि का प्रयोग किया जाता था। उत्पादक अपनी वस्तुओं पर  चिह्र, चित्र ,  अंकित कर देते थे, ताकि उनके उत्पाद को पहचानने में ग्राहकों को किसी प्रकार की असुविधा न हो। ग्रीस और रोम के व्यापारी अपनी दुकानों के प्रवेश-द्वार पर माल के चिह्र इस रूप में चित्रित करते थे । डिक सटफेन के अनुसार-"बुनकरों का चक्र बुनकर को इंगित करता था।  मानवीय सभ्यता के विकास के साथ-साथ विज्ञापन के स्वरुप में भी बदलाव आता चला गया है। व्यापारिक चिह्रों को लकडी, धातु अथवा पत्थर पर चित्रित कर सूचना-पटूट का निर्माण किया गया। विज्ञापन के प्रारंभिक चरण में विक्रेता ऊँची आवाज में बडे रोचक और नाटकीय अंदाज में अपने माल की खूबियों को वर्णित करता था। यानी गलियों और सडकों पर फेरीवाले आवाज लगाते हुए अपनी वस्तुओं का विज्ञापित करते थे। बाद में चना बेचनेवालों के ये बोल बहुत चर्चित भी हुए-'बाबू मैं लाया मजेदार चना जोर गरम, मेरा चना बना है आला' अनोखे स्वरों दवारा अपने माल को विज्ञापित कर खरीदारों को आकर्षित करने की यह कला आज भी बनी हुई है। गाँवों, कस्बों और शहरों की गलियों में ठेले और साइकिल पर अपना सामान बेचनेवाले छोटे-छोटे विक्रेता इसी कला का सहारा लेते हैं। पंद्रहवीं शताब्दी में मुद्रण कला के आविष्कार के साथ हुआ। नए विचारों के प्रवाह को जन-जन तक पहुँचाने के लिए मुद्रण कला का सहारा लिया गया। गुटनबर्ग ने ४२ पंक्तियों की विश्व की पहली मुद्रित पुस्तक 'बाइबिल' का प्रकाशन किया। मुद्रण कला के आविष्कार और विस्तार के साथ ही यातायात व संचार के विभिन्न साधन भी उपलब्ध हुए। सन १४७३ ई. में इंग्लैंड में विलियम कैक्टसन ने सर्वप्रथम अंग्रेजी भाषा में पहला विज्ञापन एक परचे के रूप में प्रकाशित किया। साहित्यकार व इतिहासकार सत्येन्द्र कुमार पाठक ने कहा कि  इतिहासकार फेंक प्रेस्वी के अनुसार-'मक्यूरियम ब्रिटानिक्स' पुस्तक में एक विज्ञापित घोषणा के रूप में विज्ञापन का पहला रूप सामने आया। हेनरी सैंपसन के अनुसार-सन १६५० में सर्वप्रथम विज्ञापन का स्वरुप  पुस्तक में देखने को मिला, जिसमें चोरी किए गए बारह घोडों को लौटाने पर पुरस्कार की घोषणा विज्ञप्ति के रूप में छपी थी। विज्ञापन की ऐतिहासिक पृष्ठभूमि इंग्लैंड के समाचार-पत्रों में विज्ञापन के रूप में प्रकाशित घोषणाओं में दिखाई देती है। उसके बाद चाय, काँफी, चाँकलेट, किताब आदि के विज्ञापनों के साथ-साथ खोई-पाई वस्तुओं के विज्ञापन प्रकाशन की प्रथा चल पडी। अमेरिका में विज्ञापन का विकास का रूप -सन १८७० में अमेरिका में पहला विज्ञापन प्रकाशित हुआ था । अमेरिका में सन १८४१ में पहली विज्ञापन एजेंसी वाल्नी पाँल्मर स्थापित थी। अमेरिका का पहला विज्ञापन ८ मई, १७०४ में 'बोस्टन न्यूज लैटर' में प्रकाशित हुआ। धीरे-धीरे सचित्र विज्ञापन की प्रथा भी शुरु हो गई। विज्ञापन में आधुनिक तकनीक का प्रयोग किया जाने लगा। औदयोगिक क्रांति के फलस्वरुप विज्ञापन की दुनिया में तेजी से बदलाव आने लगा। आज उच्च प्रौदयोगिकी के युग में विज्ञापन संसार को वैविध्यपूर्ण बना दिया है। समाचार पत्रों के मालिकों के लिए राजस्व का माध्यम विज्ञापन है । भारत में  25 मार्च 1788 को  कलकत्ता गजट में भारतीय भाषा में प्रथम  विज्ञापन बांग्ला भाषा में प्रकाशित हुआ था।विज्ञापन की दुनिया में तेजी से बदलाव आने लगा। आज उच्च प्रौदयोगिकी के युग में विज्ञापन संसार को वैविध्यपूर्ण बना दिया है। विज्ञापन उदयोग एक आकर्षक उदयोग बन चुका है।
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