तनिक नहीं कभी पछताते
सच को सच बतलाने से बोलो तुम क्यों हो घबराते।
अन्यायी के साथ खड़े होकर आखिर तू क्या पाते।
क्या तनिक नहीं कभी पछताते ?
अहिंसा की पावन धरती पर हिंसा की खेती करवाकर।
शोणित-धार बहा-बहाकर स्वयं को निर्दोष हो बतलाते।
क्या तनिक नहीं कभी पछताते ?
घृणाभाव मन में भरकर ऊपर से प्रेम हो दिखलाते।
मानव रूप धर दानव का करते काम न शर्माते।
क्या तनिक नहीं कभी पछताते?
रक्तपात भीषण करवाते जो क्रूरतम अत्याचार मचाते।
ऐसे जल्लादों पर "विवेक" क्यों हो दया दिखाते।
क्या तनिक नहीं कभी पछताते?
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