महादुष्ट है मुनि वेष
---:भारतका एक ब्राह्मण.
संजय कुमार मिश्र"अणु"
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अपने स्वार्थ में
वह अभी लगातार
निकल रहा वामी से
करने को जीवन पर वार
साथ के एक दो लोग
पाल रखा हैं उसीका रोग
जाकर जगह-जगह
बस उगल रहा है गरल
लगा दंभ का ललकार
कहना की हम हैं हित
जबकि आचरण है विपरीत
सब जान रहे हैं लोग
उसका उचित और अनुचित
उसका घर से लेकर द्वार
कहना बस खुद को महान
जैसाकि विवस्वान
कहता मैं सबको जानता हूँ
चाहे वो नया हो फिर पुरान
एकदम पक्का लबार
न लोक-लाज है और न भय
गाल बजा रहा है कर निश्चय
बताता सबको गलत एक साथ
लगाकर सबको पय
दे घृणित और निकृष्ट विचार
खोदता रहा है जो अबतक कब्र
वही खुदको बता रहा संरक्षक
निकलकर अपनी वामी से
देखो घुम रहा है तक्षक-भक्षक
बहाकर माया की अश्रुधार
करना होगा प्रतिकार
कुचलना होगा उसका फण
नहीं तो विषाक्त हो जायेगा
धरती का रक्षक कण-कण
उसे पहचान और कर प्रहार
इस बार ....... बस एक बार
कर प्रतिकार ... कर संहार
देखो रवि हुआ अस्त
और इधर बढ रहा राकेश
देख कुटिल मुस्कान सब गये जान
ये महादुष्ट है मुनि वेष
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