चुनाव और कांग्रेस की दुर्दशा -मनोज मिश्र
देश में हुए 5 राज्यों के चुनावों का आज परिणाम आ गया। इन चुनावों में बीजेपी को 4 राज्यों में खासी सफलता मिली पर पंजाब जैसे सीमांत राज्य में आप जैसी अपेक्षाकृत नई पार्टी को सत्ता की कमान मिली है। खासतौर पर उत्तर प्रदेश और उत्तराखंड से लेकर गोवा और मणिपुर जैसे भिन्न राज्यों में बीजेपी का प्रदर्शन सराहनीय है। पर जो बात गौर करने लायक है वह है इन चुनाव में कांग्रेस जैसी बड़ी पार्टी की दुर्गति होना है। जहां उत्तर प्रदेश में उसे सिर्फ 2 सीटें मिली वहीं पंजाब जैसे राज्य में जहां वह सत्तासीन थी मात्र 18 सीट पर सिमट गई। इसी प्रकार गोवा में पिछले चुनाव के प्रदर्शन से 8 सीटें काम ला पाई वहीं मणिपुर में 24 सीटें खो कर मात्र 4 सीटों पर सिमट गई। उत्तराखंड में कांग्रेस से अच्छे प्रदर्शन की उम्मीद थी यहां तक कयास लगाए जा रहे थे कि उत्तराखंड में इस बार कांग्रेस सत्ता में वापसी करेगी पर यहां भी उसे मात्र 18 सीटों पर ही संतोष करना पड़ा। देश की दूसरी सबसे बड़ी पार्टी और लोकसभा में मुख्य विपक्षी पार्टी जो भारत की आज़ादी की झंडाबरदार मानती है की यह दशा बड़ी विचारणीय है। कांग्रेस के राजकुमार और राजकुमारी आज राजनैतिक परिदृश्य पर ओझल हैं और यही उनकी कमजोरी है। कांग्रेस के ये दोनों ही चेहरे स्वयं को आम आदमी से ऊपर मानते हैं। आम आदमी को तो खैर छोड़ ही दीजिए ये अपनी ही पार्टी के पुराने अनुभवी और राजनैतिक समझ रखने वाले नेताओं और कार्यकर्ताओं से भी मिलना जरूरी नहीं समझते। अगर कभी ये किसी आम आदमी के साथ नज़र भी आते हैं तो वह भी स्टेज मैनेज्ड ही होता है। सोशल मीडिया के इस जमाने में इन झूठों की पोल भी तुरंत ही खुल जाती है। मूल रूप से यह कांग्रेस की कार्यकारी अध्यक्ष सोनिया गांधी की व्यक्तिगत असफलता भी है। उदाहरण के लिए पंजाब में कांग्रेस की सरकार मजे से चल रही थी पर अमरिन्दर सिंह की नकेल कसने के लिए सिद्धू को राहुल गांधी ने उतार दिया। नतीजे के रूप में चन्नी पंजाब के मुख्यमंत्री बन गए और जमीनी रूप से जुड़े न होने की वजह अपने द्वारा लड़ रहे दोनों सीटों से हार गए। यही नहीं जिन सिद्धू पर भरोसा करके राहुल जी ने अपना कप्तान बदल दिया वह भी अपनी सीट नहीं निकाल सके। यानी राजनीतिक परिपक्वता पर व्यक्तिगत पसंद भारी पड़ गयी। हमने ये पहले भी देखा है जब आसाम में कांग्रेस ने अपना बहुत ही बढ़िया कार्यकर्ता हेमंत विश्वा शर्मा को खो दिया था। आज वे बीजेपी की तरफ से आसाम के मुख्यमंत्री हैं। मणिपुर एक जमाने में कांग्रेस का गढ़ होता था पिछले चुनाव में भी मणिपुर में कांग्रेस को 28 सीट आयी थीं हालांकि जोड़ तोड़ से बीजेपी ने ही सरकार बनाई है। इस बार बीजेपी ने अपने बूते 32 सीटें हासिल की हैं और उनके गठबंधन की सरकार बनने जा रही है। इसी प्रकार अगर गोवा के चुनाव परिणाम का आकलन करें तो पाएंगे कि यहां भी बीजेपी ने अपने बूते 20 सीट जीत चुकी है और महाराष्ट्रवादी गोमांतक पार्टी का उसे समर्थन है। अतः स्थिर और मजबूत सरकार बीजेपी की ही बनेगी। पिछले चुनाव में जहां कांग्रेस छल का शिकार हो गयी थी और सत्ता गंवा बैठी थी वहीं इस बार वे सत्ता के कहीं आसपास भी नहीं है। कांग्रेस में जो आवाज़ें गुपचुप रूप से शीर्ष नेतृत्व के खिलाफ उठ रही थीं और G23 के रूप में बाहर आ रही थी अब उन आवाज़ों को और बल मिलेगा। ऐसा लगता है कि प्रियंका गांधी को चुनावी रण में उतारना भी कोई काम नहीं आया। "लड़की हूँ लड़ सकती हूँ"- के लोक लुभावन नारे से प्रियंका ने चुनाव की कमान तो संभाली पर राजस्थान और छत्तीसगढ़ में महिलाओं पर हो रहे अत्याचारों पर उनकी चुप्पी इस नारे को खोखला बना गयी। यहां तक कि जिस लड़की, प्रियंका मौर्य, ने यह नारा दिया था वह न केवल बीजेपी में चुनावों के बीच में शामिल हो गयी बल्कि कांग्रेस नेतृत्व पर पैसे लेकर टिकट बेचने का आरोप भी लगा दिया। कांग्रेस ने शायद अपने परंपरागत वोट बैंक पर इतना भरोसा है कि वो उनकी फिक्र ही नहीं करती और सिर्फ मुस्लिम वोटों के लिए मुखर दिखती है। अन्यथा उत्तराखंड में मुस्लिम यूनिवर्सिटी का वादा वो नहीं करती। दिक्कत यह है कि आज का जमाना सोशल मीडिया का है और घटना की हकीकत तुरंत सामने आ जाती है पर कांग्रेस नेतृत्व अभी तक अपने छल छद्म और टूलकिट की राजनीति नहीं छोड़ पा रही है। कांग्रेस के नेतृत्व की आभा अब शनैः शनैः क्षीण हो रही है और शायद देश कांग्रेस मुक्त भारत की ओर बढ़ रहा है।
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