नारी
अबला नहीं सबला हूं रणचंडी दुर्गा हूं मैं
खडग खप्पर धारणी हूं रक्तबीज संहारिणी हूं
अथाह प्रेम का सागर हूं नारी शक्ति समेटे भारी हूं
करती धूप में मजदूरी मैं भारत की सबला नारी हूं
स्वाभिमान भरा रग में मेहनत कर खाना सीखा
परिवार पोषण हेतु खून पसीना बहाना सीखा
अबला नहीं सबला हूं रचती हूं नित नये कीर्तिमान
अंतरिक्ष छूकर लहरा दिया परचम नहीं अभिमान
सेवा सुरक्षा शिक्षा में सृजन में हाथ रहा मेरा
कमान देश की रखने में पल पल साथ रहा मेरा
धीरज धरा की भांति है हर दुख दर्द सह लेती हूं
निवाला औरों को खिलाकर खुद भूखी रह लेती हूं
नारी उत्पीड़न सीमा जब हद से पार हो जाती है
क्रोधाग्नि नैनों में उठती रणचंडी बन जाती है
लक्ष्मी रूप में जन्म लेती गृहलक्ष्मी बन जाती हैं
परिवार का पोषण करती अन्नपूर्णा कहलाती है
सदा मां का दर्जा मिला वात्सल्य उमड़ता भावों में
संघर्षों में पली सदा रह लेती विपदा में अभावों में
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