भारत की नारी शक्ति को नमन
(चक्षु स्वामी-हिन्दुस्तान समाचार फीचर सेवा)
भारत में नारी का सम्मान ही नहीं बल्कि उसकी पूजा-आराधना भी की गयी है। महिषासुर और शुम्भ-निशुम्भ का वध करने के लिऐ देवताओं ने शक्ति की आराधना की थी और आदिशक्ति ने उन महाबलियों का संहार किया जिनको देवता भी पराजित नहीं कर सके थे। वही नारी-क्षमता आज भी वंदनीय है। साक्षी मलिक जैसी महिला पहलवान ने भारत का नाम रोशन किया तो अभी युद्ध ग्रस्त यूक्रेन से आठ सौ भारतीयों को वापस लाने वाली महाश्वेता को भी नमन करना होगा। रूसी राकेटों-बमों के धमाके के बीच 10 दिनों तक महाश्वेता ने हवाई जहाज उड़ाया।
कोलकाता की रहने वाली महाश्वेता 4 सालों से बतौर पायलट भारतीय एयरलाइन में सेवारत हैं। एक दिन सुबह उनके पास फोन आया कि दो घंटे में सामान के साथ तैयार हो जाएं उन्हें एक मिशन पर जाना है। घरेलू फ्लाइट उड़ाने वाली महाश्वेता के लिए यह बात हैरान करने वाली थी। वह इसके लिए बिल्कुल भी तैयार नहीं थीं। उनके पास इतना भी वक्त नहीं था कि वह अपने माता-पिता को सूचना दे पातीं। उन्हें यह भी नहीं पता था कि इसके बाद उनकी जिंदगी बदलने वाली है। बाद में उन्हें पता चला कि उनका चयन मिशन गंगा के लिए हुआ है जिसे भारत सरकार ने यूक्रेन में फंसे भारतीयों के लिए चलाया था।
अगले 10 दिनों से ज्यादा वक्त तक लगातार काम करते हुए महाश्वेता ने यूक्रेन से 800 से ज्यादा भारतीयों को वापस देश में लाने का काम किया। हालांकि वह इस बात का श्रेय खुद लेने से बचती हैं और उनका मानना है कि यह उनके अकेले के वश का नहीं था। यह पूरी टीम का प्रयास था। वह सौभाग्यशाली हैं, जो उन्हें इस दल का हिस्सा बनने का मौका मिला। महाश्वेता बताती हैं कि जब उन्हें बताया गया कि यूक्रेन से भारतीयों को लाने के लिए उन्हें करीब-करीब 4000 मील की उड़ान भरनी होगी, तो वह परेशान भी थीं और डरी हुई भी थीं। उनको लग रहा था कि पता नहीं वह इस मिशन से वापस लौट पाएंगी या नहीं। उनके माता-पिता की भी वही प्रतिक्रिया थी, जो किसी भी आम माता-पिता की होती है। वे चिंतित थे और सोच रहे थे कि जब सभी यूक्रेन से लौट रहे हैं तो ऐसे में उनकी बेटी को वहां जाने की क्या जरूरत है। ऐसे में उन्हें सुषमा स्वराज के इन शब्दों ने बहुत संबल दिया, ‘अगर तुम मंगल पर भी फंसे होगे तो भारतीय दूतावास तुम्हारी मदद जरूर करेगा।’
अपने अनुभवों को साझा करते हुए महाश्वेता बताती हैं कि जब वह भारतीयों को वापस ला रही थीं तो इस घटना ने उन्हें अंदर से बदल कर रख दिया। वह खुद को अचानक अपनी उम्र से ज्यादा बड़ा महसूस कर रही थीं। जब उनके जहाज ने भारत की जमीन को छुआ और भारतीयों ने अपनी सरजमीं को देखा तो वे उनका शुक्रिया अदा करने लगे। उस वक्त उन लोगों की आंखों में कुछ ऐसा था जिसने मेरे अंदर एक नए इंसान को जन्म दिया। महज 17 साल की उम्र से हवा में उड़ान भर रही महाश्वेता ने हमेशा माना है कि आकाश की कोई सीमा नहीं है बल्कि आकाश तो एक शुरुआत है। यह बात साबित भी हुई। जब वह भारत लौट कर आईं तो तमाम राजनेता, पत्रकारों और सितारों के साथ साथ सौरभ गांगुली ने भी उनके इस प्रयास की खूब सराहना की। एयरफोर्स में जाने की तमन्ना रखने वाली महाश्वेता का वो सपना तो पूरा नहीं हो सका, लेकिन अब वो चाहती हैं कि एक दिन वह बोइंग 787 ड्रीमलाइनर उड़ाएं।
साक्षी मलिक ने भी देश का ऊंचा किया नाम डीटीसी में बस कंडक्टर का काम करने वाले सुखबीर मलिक की बेटी साक्षी मलिक जिनका जन्म 3 सितम्बर 1992 को हुआ है, 2016 रियो ओलम्पिक खेल में भारत की तरफ से प्रवेश करने वाली पहली भारतीय महिला है और जहा हमारे देश में पहलवानी पुरुषो के लिए माना जाता है ऐसे में साक्षी मलिक ने पहली बार में ही भारत के लिए ओलम्पिक में कास्य पदक जीता और पूरे देश का नाम रोशन किया।
साक्षी मलिक ने अपनी पढाई की शुरुवात रोहतक के वैश्य पब्लिक स्कूल से पूरी की थी, इसके बाद वे रोहतक के एक पब्लिक स्कूल भी गई। साक्षी ने अपने कॉलेज की पढाई रोहतक के महर्षि दयानंद यूनिवर्सिटी से की थी। ओलम्पिक की तैयारी के लिए वे पिछले एक साल से रोहतक के ‘साई’ (स्पोर्ट्स अथॉरिटी ऑफ इंडिया) होस्टल में रह रही थीं। उन्हें वजन नियंत्रित करने के लिए बेहद कड़ा डाइट चार्ट फॉलो करना पड़ता था। कड़े अभ्यास के बावजूद वे पढ़ाई में अच्छे मार्क्स ला चुकी हैं। कुश्ती की वजह से उनके कमरे में स्वर्ण, रजत व काँस्य पदकों का ढेर लगा है। साक्षी ने 12 साल में ट्रेनिंग शुरू की और फिर देश के बहुत से इवेंट में हिस्सा लेकर विजयी रही। अन्तराष्ट्रीय तौर पर साक्षी ने अपने जीवन का पहला खेल 2010 में जूनियर वर्ल्ड चैम्पियनशिप में खेला था। यहाँ उन्होंने 58 किलोग्राम केटेगरी में ब्रोंज मैडल जीता था। इसके बाद 2014 में साक्षी को अन्तराष्ट्रीय तौर पर पहचान मिली, जब उन्होंने डेव इंटरनेशनल रेसलिंग टूर्नामेंट में 60 किलोग्राम केटेगरी में गोल्ड मैडल जीता। उसी साल ग्लासगो कॉमनवेल्थ गेम्स में साक्षी ने क्वार्टर फाइनल जीता था, इसके बाद सेमीफाइनल में कैनेडा से 3-1 से विजयी रही। साक्षी का फाइनल मैच नाइजीरिया की एमिनेट से था, जिसे वे हार गई। यहाँ साक्षी को सिल्वर मैडल मिला।इसके बाद सितम्बर 2014 में ताशकेंट में वर्ल्ड चैम्पियनशिप मुकाबला हुआ। यहाँ साक्षी क्वार्टरफाइनल से ही बाहर हो गई थी, लेकिन सामने वाली टीम से साथ 16 राउंड तक वे लड़ती रहीं। बाद मंे 2015 में दोहा में एशियन चैम्पियनशिप हुई, इसमें 60 किलोग्राम के 5 राउंड हुए थे। यहाँ साक्षी ने 2 राउंड जीत कर तीसरा नंबर हासिल किया था और ब्रोंज मैडल जीता था। ब्राजील में आयोजित रियो ओलम्पिक-2016 की महिला कुश्ती में साक्षी मलिक ने किर्गिस्तान की पहलवान एसुलू तिनिवेकोवा को हराकर भारत के लिए काँस्य पदक जीता। मैच के पहले पीरियड में वे किर्गिस्तान की पहलवान एसुलू तिनिवेकोवा से 0-5 से पिछड़ गई थीं। दूसरे पीरियड में शुरुआत में पिछड़ने के बाद साक्षी ने जबर्दस्त वापसी की और 8-5 से दूसरा सेट जीतकर कांस्य पदक जीतने में कामयाब हुईं और भारत की झोली में पदक डाला।मैच के पहले पीरियड में किर्गिस्तान की खिलाड़ी ने शुरू में ही साक्षी के पैर को पकड़कर खींचा और इस तरह दो अंक हासिल किए। उसके चंद सेकंड बाद एक और अंक हासिल किया। उसने वैसे ही दूसरे मूव में दो अन्य अंक हासिल किए। इसके चलते साक्षी पहले पीरियड में 0-5 से पिछड़ गई थीं।
दूसरे पीरियड का पहला मिनट बिना स्कोर के ही गुजर गया। दूसरे मिनट में साक्षी ने विरोधी को मैट पर गिराकर दो अंक हासिल किए। चंद सेकंड बाद वैसे ही दूसरे मूव में दो अन्य अंक हासिल कर मुकाबले को 4-5 तक पहुंचाया। जब साक्षी महज एक अंक पीछे रह गईं तो किर्गिस्तान की खिलाड़ी थोड़ा बेचैन दिखी और मौके का फायदा उठाकर तत्काल एक और अंक हासिल कर साक्षी ने स्कोर 5-5 की बराबरी पर पहुंचाया।उसके बाद तीसरे मिनट के अंतिम क्षण में एक और शानदार मूव के जरिये साक्षी ने दो अंक बनाए और मैच समाप्त होने पर 7-5 से जीत हासिल की।
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