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दरख़्त का दर्द

दरख़्त का दर्द

मैंने पूछा पेड़ प्यारे तुम हमें शीतल छाया देते हो 
प्राणवायु जीवनदायिनी जीवन रक्षा कर लेते हो 

बोला पेड़ पीढ़ियों से हम परोपकार करते आए 
दर्द सहा जाने कितना किंतु बोल नहीं हम पाए 

अंधाधुंध कटाई कर दी नर को लालच ने मारा है 
आओ पेड़ लगाओ मिलकर कितना प्यारा नारा है 

हरे पेड़ को काट काट कितना प्रदूषण फैला देते 
जीवनदाता को भी पीड़ा आखिर क्यों पहुंचा देते 

हम बहारों के संवाहक बन घने मेघों को लाते हैं 
उमड़ घुमड़कर काले बादल वर्षा जल बरसाते हैं 

फल फूल हरियाली से सुंदर सी धरा लहराती है 
उर उमंगे ले हिलोरे चमन कलियां महकाती है 

वृक्ष लताओं से ही वादियां सुंदर सी प्यारी लगती 
धानी चुनरिया ओढ़कर जब धरा मोहक सजती 

निज स्वार्थ के वशीभूत मत पेड़ों को काटो प्यारे 
पेड़ लगाकर प्रकृति का सुख सबको बांटो प्यारे

रमाकांत सोनी सुदर्शन
नवलगढ़ जिला झुंझुनू राजस्थान
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