जब दो हज़ार सैनिकों" की पूरी "टैंक ब्रिगेड" को मात्र 120 भारतीय जवानों की छोटी सी बटालियन ने धूल चटा दी:
लेखक - अतुल मालवीय
उस देश की सरहद को कोई छू नहीं सकता जिसकी रक्षा स्वयं भगवती "तनोट माता" करती हैं: लोंगेवाला का वह ऐतिहासिक युद्ध जिसमें पाकिस्तान की "दो हज़ार सैनिकों" की पूरी "टैंक ब्रिगेड" को मात्र 120 भारतीय जवानों की छोटी सी बटालियन ने धूल चटा दी:
मिलिये "बॉर्डर" के असली हीरो मेजर कुलदीप सिंह से :-देश व्यक्तियों या नागरिकों का समूह नहीं होता| राष्ट्र लोगों से नहीं बल्कि भावनाओं से बना करते हैं, सुरक्षित रहते हैं, महान कहलाते हैं| भारत और पाकिस्तान में यही मूलभूत फर्क है| भारतीय जहाँ देश को मातृभूमि एवं सर्वोपरि मानते हुए बलिदान के लिए तत्पर रहते हैं वहीं पाकिस्तानी "कौमी" सोच रखते हैं| यही भावना दोनों देशों के सैनिकों में भी स्वाभाविक रूप से पायी जाती है|
कुछ युद्ध ऐसे होते हैं जो इतिहास के पन्नों पर अपनी लाल स्याही तो छोड़ ही जाते हैं, हमारे दिलोदिमाग पर भी अनंत काल तक अमिट रहते हैं| हमारा कर्तव्य है कि ऐसे युद्ध प्रसंगों को, उनमें वीरता का अभूतपूर्व प्रदर्शन करने वाले सैनिकों को, उससे जुड़े वाकयों को न सिर्फ स्वयं याद रखें बल्कि आने वाली पीढ़ियों को भी बतायें| ऐसा करना उन सैनिकों का सम्मान तो होगा ही, साथ ही आने वाले समय में युवकों को सैनिक बनने, देश के लिए समर्पित रहने के लिए प्रेरित भी करेगा|
ऐसा ही युद्ध हुआ था आज से ठीक "पचास वर्ष" पूर्व भारत के "जैसलमेर" से सटी रेगिस्तान में स्थित "लोंगेवाला" गाँव के नजदीक भारत-पाक सीमा पर| पूर्व में बांग्लादेश का उदय हो रहा था, पाक अपनी वहाँ हार को पश्चिमी सीमा पर जीत में बदलकर भारत से सौदेबाज़ी का कुत्सित प्लान बना रहा था| पाकिस्तान ने सोचा कि अमेरिकी और चीनी "T-59" टैंकों की पूरी ब्रिगेड से रातों रात भारत की छोटी सी बीएसएफ की लोंगेवाला चौकी पर कब्जा कर लिया जाए जिससे रेत के ऊंचे धोरों से उन्हें सामरिक फायदा पहुँच सके| योजना थी कि चूंकि भारत के पास रात में उड़ने वाले लड़ाकू हवाई जहाज़ नहीं हैं, वायुसेना कोई मदद कर नहीं पायेगी कुछ घंटों में लोंगेवाला और सुबह होने के पूर्व ही "रामगढ़" और "जैसलमेर" शहरों पर पाकिस्तानी झंडा फहरा रहा होगा|
लेकिन कहते हैं - "तेरे मन कछु और है, दाता के कछु और"| चालाकी और बेईमानी किसी काम नहीं आती जब तक आपके साथ सत्य और ईश्वर नहीं हों| जिसे नापाक इरादों वाले पाक सैनिकों ने मात्र बीस पच्चीस जवानों वाली सीमा सुरक्षा बल की चौकी समझकर अंधाधुंध गोले बरसाने शुरू कर दिये, वहाँ स्वयं शक्ति की अधिष्ठात्री देवी " तनोट माता" अपने छोटे से मंदिर के साथ विराजमान थीं| बीएसएफ का साथ देने पंजाब रेजिमेंट की आर्टिलरी सहायता के साथ ही वीर राजपूत रेजिमेंट के लगभग एक सौ जवान आ चुके थे| मुकाबला असंभव दिख रहा था| कहाँ कंधों पर लांचर और मशीनगनें संभाले मुट्ठीभर भारतीय जवान और कहाँ विशालकाय टैंकों की सुरक्षा में आग बरसाती दो हज़ार संख्या की पाकिस्तानी ब्रिगेड|
भारतीय सैनिकों को कमांड कर रहे थे पंजाब रेजिमेंट के मेजर कुलदीप सिंह चांदपुरी| उन्होंने अपने साथियों को दशमेश गुरु गोविंदसिंह की याद दिलाते हुए "सवा लाख से एक लडाऊं" के गुरु के नारे के साथ दुश्मन पर टूट पड़ने का हुक्म दिया| कुलदीप सिंह ने पाकिस्तानियों को ललकारते हुए सिंहगर्जना की कि तुम्हें चेतावनी देता हूँ, जान की सलामती चाहते हो तो वापिस लौट जाओ वरना लोंगेवाला में तुम्हारी कब्रों के लिए ज़मीन कम पड़ जायेगी| पाकिस्तानी कमांडर ब्रिगेडियर मुस्तफा हैरत और भ्रम में पड़ गया| उसने सपने में भी नहीं सोचा था कि मात्र 120 लोग 2000 की टैंक ब्रिगेड का सामना करने का साहस कर सकते हैं| उसने सोचा कि सामने दुश्मन हज़ारों की संख्या में है| सोच का कारण? यदि पाकिस्तानी सेना के 120 और भारत के 2000 होते तो वे क्या करते? निस्संदेह पीठ दिखाते हुए, दुम दबाकर भाग खड़े होते|
"तनोट माता" मंदिर के चारों तरफ बमबारी से धूल के गुबार जब छंटते तो दिखता कि आसपास तबाही मचा देने वाले गोले मंदिर को छू तक नहीं सके| जवानों को पिछले अनेक युद्धों के अनुभव के आधार पर भरोसा था कि जब तक "तनोट माता" का मंदिर सुरक्षित है तब तक "भारत माता" को कोई आँच नहीं आ सकती| उधर टैंकों को आगे बढ़ने से रोकने के लिए मेजर कुलदीप सिंह ने कंटीली बाड़ लगा दी| हालांकि टैंक चाहते तो उसे रौंदते हुए आगे बढ़ जाते लेकिन पाकिस्तानी सेना को टैंकरोधी माइंस का भ्रम हो गया और इससे दो घंटे का समय मिल गया| मेजर कुलदीप सिंह चाहते थे कि भोर का उजाला हो जाये तो वायुसेना की सहायता मिल जायेगी| दो घंटे बाद प्रलय मचाते हुए पाक टैंक पुनः आगे बढ़े| उनको नष्ट करने का कोई उपाय न देख मातृभूमि की रक्षा के लिए कृतसंकल्प भारतीय जांबाज सैनिक अपने प्राणों पर खेलकर उनके निकट जा जाकर अपने हाथों से ही बमों को टैंकों के फ्यूल टैंक खोलकर डालने लग गए| गोलियों से छलनी हो जाने के बावजूद भारतीय सैनिक इस तरह एक के बाद एक टैंक को ब्लास्ट कर उड़ा देते| ध्वस्त टैंक अपने साथ अन्य टैंकों और असंख्य पाकिस्तानी सैनिकों को भी ब्लास्ट में उड़ा देता|
पाक सैनिक समझ नहीं पा रहे थे भारतीय सैनिकों को घुप्प अँधेरे में भी दिखाई कैसे पड़ जाता है और उनके अचूक निशानों से एक के बाद एक पाक सैनिक ज़मीन पर गिरते जा रहे हैं| मेजर कुलदीप सिंह और उनके सहयोगियों ने स्ट्रेटेजी बनायी थी कि जब पाकी टैंकों को ब्लास्ट में उड़ाया जा रहा होगा तब उसी ब्लास्ट की रोशनी में हमें टार्गेट सेट कर लेना है कि गोला कहाँ फेकना है या गोली का निशाना किन पाक सैनिकों को बनाना है| आसमान में पूरब की ओर से हल्की लालिमा दिखाई देने तक बाजी बराबरी की हो चुकी थी तभी आसमान में भारतीय वायुसेना के लड़ाकू विमान दिखाई दिये जिन्होंने बम बरसाते हुए लोंगेवाला युद्ध का भारत के पक्ष में निर्णायक फैसला कर दिया|
रात में लोंगेवाला, सुबह तक रामगढ़ और जैसलमेर पर कब्जा कर भारत सरकार पर दवाब बनाने का "पाक" का "नापाक" इरादा चूरचूर हो गया था| जहाँ मेजर कुलदीप सिंह चांदपुरी को भारत सरकार ने "महावीर चक्र" से सम्मानित किया वहीं पाकिस्तान सरकार ने कायरता का प्रदर्शन करने, लापरवाही बरतने एवं सही निर्णय न लेने के कारण भारी जानमाल की क्षति और पराजय का जिम्मेदार ठहराते हुए कमांडर मुस्तफा पर सैन्य अदालत में मुकदमा चलाया| "तनोट माता" का मंदिर वर्तमान में और अधिक भव्यता और शान से खड़ा हुआ है, जहाँ चारों ओर आज भी भारी भरकम गोलों के निशान देखे जा सकते हैं| तनोट माता पर स्थानीय नागरिकों और भारतीय सैनिकों की अगाध श्रद्धा है| लोगबाग दूर दूर से दर्शन करने और मान्यता मांगने आते हैं| कहते हैं कि देवी किसी सच्चे भक्त को निराश नहीं करतीं| मन्नत पूरी हो जाने पर यहाँ भक्तगणों द्वारा "रूमाल" बाँधने का रिवाज़ है|
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