Advertisment1

यह एक धर्मिक और राष्ट्रवादी पत्रिका है जो पाठको के आपसी सहयोग के द्वारा प्रकाशित किया जाता है अपना सहयोग हमारे इस खाते में जमा करने का कष्ट करें | आप का छोटा सहयोग भी हमारे लिए लाखों के बराबर होगा |

प्रधान शिक्षक : एक दोषपूर्ण सरकारी नीति--:भारतका एक ब्राह्मण.संजय कुमार मिश्र 'अणु'

प्रधान शिक्षक : एक दोषपूर्ण सरकारी नीति--:भारतका एक ब्राह्मण.संजय कुमार मिश्र 'अणु'

अभी बिहार सरकार के शिक्षा विभाग ने प्राथमिक और मध्य विद्यालय के कुशल संचालन के लिए एक नया पद सृजित किया है प्रधान शिक्षक का और उसके लिए बिहार लोक सेवा आयोग के माध्यम से रिक्ति विज्ञापन निकाला है।यह जबसे आया है तब से उहापोह की स्थिति बनी हुई है।इसमें निर्दिष्ट निर्देश भी भ्रामक है।अब तक इसमें बहुत सारे निराकरण या कहें की स्पष्टीकरण या सुधी पत्र निर्गत किया गया है।फिर भी बहुत सारी बातें अब भी अस्पष्ट है।
पूर्व में यह पद प्रधानाध्यापक का रहा है।यह पद पहले पदोन्नति से भरे जाते थे।अब सरकार की कुदृष्टि इस पर पड गई है और वह इसे मृत पद घोषित करने में लगी हुई है।नियोजन से पूर्व शिक्षक का पद शैक्षणिक प्रशैक्षणिक प्रमाण पत्रों से भरे जाते थे।जो लोग अपने शैक्षणिक सत्र समाप्त कर शिक्षक प्रशिक्षण प्राप्त करते थे वे हीं शिक्षक बनते थे।शिक्षक प्रशिक्षण महा विद्यालय अपनी आवश्यकता बस अपने प्रशिक्षुओंको क्रमवार नियुक्ति देती थी।कहीं कोई गडबडी नहीं थी।सब कुशल से चल रहा था।
अचानक से केंद्र सरकार नें शिक्षा के विकास के लिए एक योजना शुरु की।नाम पडा सर्व शिक्षा अभियान और इस अभियान के तहत शिक्षक विहीन विद्यालयों में राज्य सरकार अपनी मनमानी से पंचायती राज के तहत विद्यालयों में मैट्रिक और इंटर पास बेरोजगार युवकों को पंद्रह सौ रुपये मासिक पर ग्यारह महीने के लिए शिक्षा मित्रों के रुप में अनुबंधित किया गया।संतोषप्रद सेवा के नाम पर इनका अनुबंध बढता गया।
फिर सरकार ने एन.सी.ई.आर.टी.और आर.आई.टी.के तहत बद्ध होने पर राज्य में शिक्षक पात्रता परीक्षा आयोजित की।उस समय यह स्वीकार किया गया की जो लोग इस परीक्षा को पास करेगें उनकी नियुक्ति शिक्षक के पद पर की जायेगी।बडी तादाद में शिक्षित बेरोजगारों ने इस परीक्षा में शामिल हुए और बडी कम संख्या में लोग इस प्रतियोगिता परीक्षा को पास कर पाये।उन्हे खुशी मिली की अब हमें शिक्षक के पद पर नियुक्त किया जायेगा पर सरकार अपनी भातों से मुकर गई और सभी टी.ई.टी.वालों को नियोजित कर दिया।
जो लोग पंचायती राज व्यवस्था के तहत मुखिया के कृपा से शिक्षामित्र बने थे।वे संख्या में मजबूत थे।वे लोग अपना संगठन बनाकर अदालत और आंदोलन से नियोजन में शामिल हो गये।वे सब समान काम समान वेतन की मांग करने लगे।इधर सरकार इस शिक्षक पद को हीं समाप्त करने पर तुली हुई थी।अदालती लाई में उन्हें वेतनवृद्धि का लाभ दिया पर नियोजन से समझौता नहीं किया।सरकार अपनी बचाव के लिए इन्हे इग्नू के माध्यम से प्रशिक्षण दिलवाया फिर छः माह का संवर्द्धन करवाया।सरकार अदालत के कठघरे में कहती है की मेरे सभी शिक्षक योग्य हैं और बाहर इन बातों से इंकार करती है।
एन.सी.ई.आर.टी.और.आर.टी.ई.ने शिक्षक बनने के लिए टी.ई.टी.अनिवार्य किया तो फिर ऐसा आखिर किस नियम के तहत किया गया।मान लेते है की किसी मजबूरी बस नियम को शिथिल किया गया तो खैर कोई बात नहीं।सब चलेगा पर जो शिक्षक बनने की सारी योग्यता लिये हुए हैं उनको आखिर उनके अधिकार से वंचित क्यों किया जा रहा है?अदालत ने अपने न्याय निर्देश में सरकार को पारा अठत्तर पर गौर फरमाने की बात कहीं पर सरकार ने संवर्ती सूची का फायदा उठाकर आज भी पात्र शिक्षकों के साथ दोयम दर्जे का व्यवहार कर रही है।न्याय निर्णय को भी वो दरकिनार कर गई।
अब नया शिगुफा प्रधान शिक्षक का है।जब शिक्षक बनने के लिए टी.ई.टी.की योग्यता है हीं तो फिर इन योग्य शिक्षकों को प्रधान शिक्षक न बनाकर एक नया पद सृजन करना भी सरकार की बदनियती का नमूना है।वो जानबूझकर प्रधानाध्यापक के पद को मृत पद घोषित करना चाह रही है।वर्ष छेयानबे/अंठानबे में शिक्षक के पद पर नियुक्ति के बी.पी.एस.सी.ने रिक्तियां निकाली,परीक्षा ली।परीणाम प्रकाशित कर योग्य लोगों को बहाल भी किया तो फिर बीच में इसे दरकिनार कर के नया नियोजन फिर टी.ई.टी.और एक बार फिर बी.पी.एस.सी.पर हीं निर्भर होना सरकार के नियत पर संदेह पैदा करता है।
सरकार को चाहिए की वह सभी शिक्षक पात्रता धारी को यथाशीघ्र पदोन्नति कर पद भरे।ये जो प्रधान शिक्षक पद नियुक्ति की प्रक्रिया है वह दोषपूर्ण है।सरकार भले इसे शिक्षा हितैषी कदम कह ले लेकिन शिक्षक हितैषी कदम तो यह बिल्कुल नहीं है।सरकार को यदि ऐसी हीं करनी है तो करे कोई बात नहीं पर पूर्व और पूर्ण तैयारी से करनी चाहिए।ये आननफानन में जो शिक्षा हित में तथाकथित फैसले लिए जा रहे हैं वो एक दिन शिक्षा,शिक्षक और समाज के लिए कहीं घातक न हो इसका भी ख्याल रखा जाय।
और अंत में मैं अपनी बातों को इन पंक्तियों के माध्यम से समाप्त करना चाहूंगा.......
शील,विनय,आदर्श,श्रेष्ठता-
तार बिना झंकार नहीं है।
शिक्षा क्या स्वर साध सकेगी-
जब नैतिक आधार नहीं है।।
स्वार्थ साधना के इस युग में-
जन-जन का कल्याण न भुलें।।
निर्माणों के इस पावन युग में-
हम चरित्र निर्माण न भुलें।।
--------------------------------------------------------------------वलिदाद, अरवल(बिहार)
हमारे खबरों को शेयर करना न भूलें| हमारे यूटूब चैनल से अवश्य जुड़ें https://www.youtube.com/divyarashminews https://www.facebook.com/divyarashmimag

एक टिप्पणी भेजें

0 टिप्पणियाँ