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मन तो अहंकार का

मन तो अहंकार का

बुनता है ताना -बाना
जिसमें नहीं  मिलेगा कोई
जाना-पहचाना

टूटे बिखरे बिखरे से 
ननसूवों के पन्ने
बात बात मे आपस में ही 
लग जाते भिड़नै
सोने का  मूल्यांकन मानो 
पीतल का गहना। 

अहंकार के थैले में
गुस्स गुर्राता है
शीतलता का चित्र न तब
मन को   ही भाता है
भले हानि अपनी हो ले
हो ले रोना धोना। 

दंभु के आचरण  पृष्ठ पर
कालनेमि होता
कानों से अनुकूल प्रशंसा
है केवल सीनता
शिलाखण्ड सी प्रक्षेपित बातें
करतीं टोना।
रामकृष्ण
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