दूर नहीं रह सकता
मैं चलता फिरता हूँ
चारों तरफ देखकर।
जिसके चलते मुझको
बहुत मिलते अपने।
जिन्होंने दिया सदा
मुझे बहुत अपनापन।
इसलिए मैं अब तक
हँसता खिल खिलता हूँ।।
सफर जिंदगी का मैं
तन्हा जी नहीं सकता।
बिना मिले जुले मैं
शायद रह नहीं सकता।
इसलिए मैं अपनो से
कभी भी दूर नहीं होता।
यह आदत अच्छी है या बुरी
ये तो मुझे नहीं है पता।।
सुहानी जिंदगी का दौर
सही में निकला जा रहा।
जलते हुये दीपक भी
धीरे धीरे बुझते जा रहे ।
और संसार में जीवो का
आना जाना हो रहा।
यही संसार का चक्र है
जो समयानुसार घूम रहा।।
जय जिनेंद्र
संजय जैन "बीना" मुंबईहमारे खबरों को शेयर करना न भूलें|
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