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अपनी हथेलियों पर सरसों उगा रहा था मैं नामक गजल पर जमकर बरसी तालियां

अपनी हथेलियों पर सरसों उगा रहा था मैं नामक गजल पर जमकर बरसी तालियां

गायन,वादन कला के सिद्धहस्त प्रतिमान अनिल चंचल के धरणीधर रोड स्थित आवास पर गंगा-जमुनी तहजीब के तहत एक कविगोष्ठी सह मुशायरा का भव्य आयोजन हुआ। इस कार्यक्रम की अध्यक्षता मशहूर शायर शब्बीर हसन शब्बीर तथा संचालन प्रसिद्ध उद्घोषक आफताब राणा ने किया। मुख्य अतिथि के रूप में औरंगाबाद बार एसोसिएशन के सम्मानित अध्यक्ष रसिक बिहारी सिंह ने अपनी उपस्थिति दर्ज कराई। सर्वप्रथम आयोजक अनिल चंचल ने आगत कवियों शायरों को पाटल पुष्प देकर स्वागत किया, तदुपरांत काव्य गोष्ठी की विधिवत शुरुआत की गई।
युवा कवि नागेंद्र दुबे ने झूठ के हो रहे चौमुखी विकास पर व्यंग्य करते हुए कहा- "झूठ का पर्याय हैं वे खेलते हैं खेल, याद रखना तोड़ते हैं झूठ से वे मेल। झूठ खाते झूठ पीते बोलते हैं झूठ,स्याह खद्दर ओढ़कर ही बेचते हैं झूठ।" भागदौड़ की दुनिया में सुकून के दो पल गुजारने की नसीहत देते हुए सैफुद्दीन खान सैफ ने कहा कि- "उदास राह में दिल बेकरार है क्यूं, जरा करीब तो आओ मंजिल मिलेगी तुम्हें।" गुलफाम सिद्दीकी की ये मार्मिक पंक्तियां -"इसी चमन में कबूतर हैं नीलकंठ भी हैं, खुदा करे न कभी इस चमन में आग लगे" पर दर्शक दीर्घा में उपस्थित साहित्य सेवियों द्वारा बेतरतीब तालियां बरसायी गईं। धनंजय जयपुरी की श्रृंगार रस से ओतप्रोत कविता- "तुम आन बसी हमारे मन में दिन रैन न चैन मिले मुझको" पर श्रोता-दर्शक भाव विभोर हो गए। विनय मामूली बुद्धि ने अपनी रचना पेश करते हुए कहा कि- " मैं शुद्ध अक्षरों की अशुद्धि हूं, जी हां मैं ही विनय मामूली बुद्धि हूं। इनकी हास्य व्यंग्य से ओतप्रोत रचना को सुनकर दर्शक लोटपोट हुए बिना नहीं रह सके। पेशे से दंत चिकित्सक परंतु शेरो शायरी पर भी अपनी मजबूत पकड़ रखने वाले डा यूसूफ ने अपनी दमदार उपस्थिति दर्ज कराते हुए कहा कि-"मुद्दत हुई इस पर ठहरा हुआ हूं मैं, भूले से कभी तू भी मेरा नाम लिया कर। अपनी जात से वाबस्ता कर मुझे, होकर खफा मुझसे ना मेरी जान लिया कर।" भारत स्तर के विभिन्न कवि सम्मेलन व मुशायरे में अपनी नगमानिगारी की दमदार उपस्थिति कराने वाले मशहूर शायर इकबाल अख्तर दिल ने अपनी ग़ज़ल पेश करते हुए कहा कि-" कुछ ऐसे ख्वाब का पैकर बना रहा था मैं, इस हथेली पर सरसों उगा रहा था मैं। "संचालन के क्रम में आफताब राणा ने कहा कि- "जब दुआ के हाथ पत्थर हो गए, तो हर शजर बे समर हो गए।"
ज्योति रंजन ने बड़े ही सधे अंदाज में "आने से उसके आए बहार जाने से उसके जाए बहार बड़ी मस्तानी है" नामक गाने की प्रस्तुति से उपस्थित जनसमूह का मन मोह लिया।
धन्यवाद ज्ञापन के क्रम में अनिल चंचल ने एक नगमा- "बड़ी दूर से आए हैं प्यार का तोहफा लाए हैं" गाकर दर्शकों को मंत्रमुग्ध कर दिया।इस अवसर पर कलीम राहत, परवेज,अत्ताउल्लाह इत्यादि ने भी अपनी अपनी रचनाएं प्रस्तुत कर उपस्थित जनसमूह का मनोरंजन किया।
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