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‘मारो फिरंगी को’ नारा देने वाले मंगल पांडे

‘मारो फिरंगी को’ नारा देने वाले मंगल पांडे

(अशोक त्रिपाठी-हिन्दुस्तान समाचार फीचर सेवा)

  • निर्धारित सजा से दस दिन पहले दे दी गयी थी फांसी
  • बैरकपुर छावनी के जल्लादों ने फांसी देने से कर दिया था इनकार

अंग्रेजों की गुलामी को नकारने और भारत देश को आजाद कराने के लिए 1857 में ही संग्राम शुरू हो गया था। इसको प्रथम स्वाधीनता संग्राम का नाम भी दिया गया। इसके प्रमुख नायक उत्तर प्रदेश के मंगल पांडे थे। भारतीय स्वतंत्रता संग्राम मंे उत्तर प्रदेश का महत्वपूर्ण योगदान रहा है। महारानी लक्ष्मीबाई, बेगम हजरत महल, चंद्रशेखर आजाद, राम प्रसाद बिस्मिल, रानी लक्ष्मीबाई की महिला सेना दुर्गा दल की सेनापति झलकारीबाई जैसे सैकड़ों नाम हैं। इनमंे चित्तू पांडे और धनसिंह गुर्जर जैसे स्वाधीनता सेनानियों को बहुत कम लोग जानते हैं। स्वाधीनता संग्राम के प्रथम नायक मंगल पांडे के बारे मंे भी आज की पीढ़ी को बताया जाना चाहिए। स्वतंत्रता की डायमंडल जुबली (हीरक जयंती) मनाते समय उत्तर प्रदेश के स्वनामधन्य क्रांतिकारियों को नमन करना चाहिए और उनकी स्मृति मंे स्थल भी बनाए जाने चाहिए। स्वाधीनता सेनानी मंगल पांडे से तो ब्रिटिश साम्राज्य इतना डर गया था कि उनको निर्धारित सजा से 10 दिन पहले ही फांसी पर लटका दिया गया था।

यह दिन था 08 अप्रैल 1857। बंगाल की बैरकपुर छावनी का माहौल उस दिन बहुत उदास और बोझिल सा था। सुबह जब रेजिमेंट के सिपाही रातभर की नींद के बाद तड़के उठने की तैयारी कर रहे थे, तभी उन्हें पता चला कि तड़के मंगल पांडे को फांसी दे दी गई है। इसके बाद पूरी छावनी में तनाव पसर गया। किसी को अंदाज नहीं था कि मंगल पांडे को समय से 10 दिन पहले ही फांसी पर चढ़ा दिया जाएगा। उनकी फांसी की सजा तो 18 अप्रैल को मुकर्रर की गई थी। ब्रितानी हुकूमत के खिलाफ आजादी की लड़ाई की पहली चिंगारी असल में मंगल पांडे ने भड़काई थी। वो हमारे ऐसे नायक थे, जिन्होंने पूरे देश को झकझोर कर जगा दिया था। ईस्ट इंडिया कंपनी के खिलाफ क्रांति की शुरुआत करने वाले मंगल पांडे ने बैरकपुर में 29 मार्च 1857 को अंग्रेज अफसरों पर हमला कर घायल कर दिया था। कोर्ट मार्शल के बाद उन्हें 18 अप्रैल 1857 को फांसी देनी तय की गई थी लेकिन हालत बिगड़ने की आशंका के चलते अंग्रेजों ने गुपचुप तरीके से 10 दिन पहले उन्हें फंदे पर लटका दिया। वह कलकत्ता (अब कोलकाता) के पास बैरकपुर की सैनिक छावनी में 34वीं बंगाल नेटिव इंफैंट्री की पैदल सेना के सिपाही नंबर 1446 थे। उनकी भड़काई क्रांति की आग से ईस्ट इंडिया कंपनी हिल गई थी।

मंगल पांडे को बैरकपुर में 29 मार्च की शाम अंग्रेज अफसरों पर गोली चलाने और तलवार से हमला करने के साथ ही साथी सैनिकों को भड़काने के आरोप में मौत की सजा सुनाई गई। उस समय बैरकपुर छावनी में फांसी की सजा देने के लिए जल्लाद रखे जाते थे लेकिन उन जल्लादों ने मंगल पांडे को फांसी देने से साफ मना कर दिया। तब अंग्रेजों ने बाहर से जल्लाद बुलाए। बैरकपुर में कोई जल्लाद नहीं मिलने पर ब्रिटिश अधिकारियों ने कलकत्ता से 04 जल्लाद बुलाए। यह समाचार मिलते ही कई छावनियों में ईस्ट इंडिया कंपनी के खिलाफ असंतोष भड़क उठा। इसी वजह से आनन फानन में करीब चुपचाप मंगल पांडे को 8 अप्रैल 1857 की तड़के फांसी पर लटका दिया गया। इतिहासकार किम ए. वैगनर की किताब ‘द ग्रेट फियर ऑफ 1857: रयूमर्स, कॉन्सपिरेसीज एंड मेकिंग ऑफ द इंडियन अपराइजिंग’ में बैरकपुर में अंग्रेज अफसरों पर हमले से लेकर मंगल पांडे की फांसी तक के घटनाक्रम के बारे में सिलसिलेवार तरीके से जिक्र किया गया है। ब्रिटिश इतिहासकार रोजी लिलवेलन जोंस की किताब ‘द ग्रेट अपराइजिंग इन इंडिया, 1857-58 अनटोल्ड स्टोरीज, इंडियन एंड ब्रिटिश में बताया गया है कि 29 मार्च की शाम मंगल पांडे यूरोपीय सैनिकों के बैरकपुर पहुंचने को लेकर बेचैन थे। उन्हें लगा कि वे भारतीय सैनिकों को मारने के लिए आ रहे हैं। इसके बाद उन्होंने अपने साथी सैनिकों को उकसाया और ब्रिटिश अफसरों पर हमला किया।
क्रांतिकारी मंगल पांडे का जन्म 19 जुलाई, 1827 को उत्तर प्रदेश के बलिया जिले के नगवा गांव में हुआ था। उनके पिता का नाम दिवाकर पांडे और माता का नाम अभय रानी था। उस दिन की याद में भारत सरकार ने बैरकपुर में शहीद मंगल पांडे महाउद्यान बनवाया। साथ ही उनके नाम और फोटो वाली स्टैंप को दिल्ली के कलाकार सीआर पाकराशी से तैयार करवाकर 5 अक्टूबर, 1984 को जारी किया। वैगनर लिखते हैं कि मंगल पांडे ने दो अंग्रेज अफसरों पर गोली चलाई, लेकिन दोनों बार उनका निशाना चूक गया। इसके बाद उन्होंने अपनी तलवार से हमला कर अंग्रेज अफसर को घायल कर दिया। इसके बाद उनके एक साथी ने उन्हें पकड़ लिया। इसके बाद उससे छूटकर भागे मंगल पांडे ने अपनी बंदूक को जमीन पर रखकर पैर के अंगूठे से अपने ही ऊपर गोली चला दी। इसमें वह जख्मी हो गए और उनके कपड़े जल गए। अस्पताल में उनका इलाज किया गया। करीब एक हफ्ते में जब वह ठीक हो गए तो उनके खिलाफ कार्यवाही शुरू हुई। उन्हें गिरफ्तार कर कोर्ट मार्शल किया गया और फांसी की सजा दी गई। मंगल पांडे ने ही ‘मारो फिरंगी को’ नारा दिया था। मंगल पांडे को आजादी का सबसे पहला क्रांतिकारी माना जाता है। जोंस लिखती हैं कि घटना के चश्मदीद गवाह हवलदार शेख पल्टू के मुताबिक सार्जेंट मेजर जेम्स ह्वीसन हंगामे की आवाज सुनकर पैदल ही बाहर निकले। इस पर मंगल पांडे ने ह्वीसन पर गोली चलाई, लेकिन ये गोली ह्वीसन को नहीं लगी। उनके साथी शेख पल्टू ने अंग्रेज अफसरों को बचाया। मंगल पांडे ने इसके बाद घोड़े पर सवार होकर अपनी तरफ आ रहे लेफ्टिनेंट बेंपदे बाग पर गोली चलाई। इस बार भी उनका निशाना चूक गया। फिर उन्होंने बेंपदे को अपनी तलवार के वार से जख्मी कर दिया। मंगल पांडे के बाद 21 अप्रैल को ईश्वरी प्रसाद को भी फांसी पर चढ़ा दिया गया। इस बगावत के निशान मिटाने के लिए ब्रिटिश अफसरों ने 34वीं इंफैंट्री को ही भंग कर दिया। इस पूरे घटनाक्रम से पहले 26 फरवरी, 1857 को सुअर और गाय की चर्बी वाले कारतूस पहली बार इस्तेमाल करने का समय आया तो बेरहामपुर की 19वीं नेटिव इंफैंट्री में तैनात मंगल पांडे के समझाने पर कई सैनिकों ने ऐसा करने से इनकार दिया। दरअसल, उस समय कारतूसों को इस्तेमाल से पहले मुंह से खींचना पडता था।
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