औरंगाबाद में वीर कुंवर सिंह प्रतिमा स्थल पर विजयोत्सव का कार्यक्रम सम्पन्न
उल्लेखनीय तथ्य:
- बाबू वीर कुंवर सिंह की विशाल प्रतिमा औरंगाबाद में स्थापित की गई है.
- वीर कुंवर सिंह स्मारक समिति द्वारा विजयोत्सव का भव्य आयोजन किया गया.
- शहर के सैकड़ों नागरिकों ने हाथ में राष्ट्रीय ध्वज लेकर प्रभात फेरी की प्रतिमा पर माल्यार्पण किया.
- संगोष्ठी का आयोजन किया गया जिसमें विद्वानों ने अपने विचार व्यक्त किए
- बाबू शेर सिंह क्रांतिकारियों के बीच भीष्म पितामह के रूप में जाने जाते थे.बायपास ओवरब्रिज के पास जगदेव नगर स्थित पंचदेव मंदिर परिसर में स्थापित बाबू वीर कुंवर सिंह जी की प्रतिमा पर माल्यार्पण एवं संगोष्ठी आयोजित कर विजयोत्सव मनाई गई.
बाबू वीर कुंवर सिंह स्मारक समिति के सौजन्य से आयोजित इस कार्यक्रम में शहर के सैकड़ों लोगों द्वारा हाल में ही स्थापित बाबू वीर कुंवर सिंह की विशाल प्रतिमा पर माल्यार्पण किया गया तथा माल्यार्पण के पश्चात हिंदी के सेवानिवृत्त प्रोफेसर डॉक्टर सिद्धेश्वर प्रसाद सिंह की अध्यक्षता में एक विचार गोष्ठी का आयोजन किया गया.
इस संगोष्ठी में भूगोल के सेवानिवृत्त प्रोफेसर डॉ रामाधार सिंह, लोकप्रिय शिक्षक एवं कवि राम किशोर सिंह, पंचदेव धाम के प्रवर्तक इंजीनियर वीरेंद्र सिंह, संस्कृत के विद्वान एवं मानस मर्मज्ञ डॉ महेंद्र पांडे, वीर कुंवर सिंह विश्वविद्यालय के प्रोफेसर विजय कुमार सिंह के द्वारा बाबू वीर कुंवर सिंह कृतित्व एवं व्यक्तित्व पर प्रकाश डाला गया.
हिंदी साहित्य में वीर कुंवर सिंह के व्यक्तित्व पर लिखे गए साहित्य एवं कविताओं की चर्चा प्रोफेसर सिद्धेश्वर प्रसाद सिंह द्वारा उनके उद्बोधन के क्रम में गई. शिक्षक रामकिशोर सिंह द्वारा बाबू कुंवर सिंह के जीवनी पर कविता प्रस्तुत की गई. 'अस्सी साल की उम्र में मरदानी दिखाये वीर बांके कुंवर सिंह' कविता की प्रस्तुति से उपस्थित लोग मंत्रमुग्ध हुए. इंजीनियर वीरेंद्र प्रसाद सिंह द्वारा आयोजन को और बड़ा एवं सुदृढ़ करने के प्रति प्रतिबद्धता व्यक्त की गई. डॉ महेंद्र पांडे द्वारा क्रांति के समय की स्थितियों एवं बाबू कुंवर सिंह के व्यक्तित्व के विभिन्न पक्षों को रखा गया.
प्रोफ़ेसर विजय कुमार सिंह द्वारा संबोधन के क्रम में बताया गया कि बाबू वीर कुंवर सिंह तब 80 साल के थे, तब जब इस उम्र में तो अच्छे खासे लोग बिस्तर पकड़ लेते हैं वीर कुंवर सिंह ने ऐसा पराक्रम दिखाया कि अंग्रेज भी कांप उठे थे. ब्रिटिश इतिहासकार होम्स ने बाबू वीर कुंवर सिंह बारे में लिखा है कि ‘उस बूढ़े राजपूत ने ब्रिटिश सत्ता के विरुद्ध अद्भुत वीरता और आन-बान के साथ लड़ाई लड़ी. यह गनीमत थी कि युद्ध के समय कुंवर सिंह की उम्र 80 के करीब थी. अगर वो जवान होते तो शायद अंग्रेजों को 1857 में ही भारत छोड़ना पड़ जाता.'
माल्यार्पण के समय कोपरेटिव चेयरमैन संतोष कुमार सिंह, शिक्षक शिव नारायण सिंह, कवि धनंजय जयपुरी, कांग्रेस नेता राकेश कुमार सिंह 'पप्पू', शैलेंद्र सिंह, भाजपा के पूर्व जिला अध्यक्ष इंद्र देव सिंह यादव, राम सुरीठ सिंह, सुनील कुमार सिंह, हृदयानंद सहाय, सिंहम कुमार सिंह, लालदेव सिंह, रामाश्रय सिंह, अरुण कुमार सिंह, धर्मेंद्र सिंह, राम आशीष सिंह, गोरख सिंह, अरुण कुमार सिंह, दिलीप कुमार सिंह, नरेंद्र कुमार सिंह मुख्य रूप से उपस्थित रहे.
समारोह के अंत में धन्यवाद ज्ञापन राहुल कुमार के द्वारा किया गया तथा मंच संचालन नागेंद्र कुमार दुबे द्वारा किया गया.
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