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विपरीत परिस्थितियों में

विपरीत परिस्थितियों में 

प्रेम की घड़ी में गिरने वाले 
आंसू के समान 
नहीं है कोई कविता

बरसों से प्रतीक्षारत आंखों में 
थी जिसकी तलाश 
उसके मिल जाने के समान 
नहीं है कोई गीत

उड़ते बादलों को 
जब समेट लेती है हवा 
अपनी बाहों में 
तब धरती पर गिरने वाली 
बारिश की पहली 
बूंद के समान 
नहीं है कोई ग़ज़ल

विपरीत परिस्थितियों में भी
जो मनुष्य तलाश ले 
अपने भीतर 
छुपी असीम संभावनाओं को
लिख ले अपने पुरुषार्थ से
अपना भविष्य
उसके समान नहीं है
कोई कहानी। 

-- वेद प्रकाश तिवारी
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